

गुरुवाणी/ केन्द्र
थोड़े से सुख के लिए न छोड़ें साधना : आचार्यश्री महाश्रमण
अलौकिक प्रतिभा संपन्न युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रेरणा-पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि मनुष्य अपनी बुद्धि का उपयोग करता है। बुद्धि का विकास होना भी एक बड़ी उपलब्धि है। बुद्धि का संबंध ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से होता है। जब इसका सघन क्षयोपशम होता है, तो बुद्धि की प्रखरता भी बढ़ जाती है, जिससे व्यक्ति कुशाग्र और विवेकशील बन सकता है। बुद्धि के माध्यम से मनुष्य यह विवेचना कर सकता है कि उसके लिए क्या हितकारी है और क्या अहितकारी ?
बुद्धि सभी में समान नहीं होती। कुछ व्यक्ति गहराई से चिंतन करने वाले होते हैं, जबकि कुछ केवल सतही बातों को ही समझ पाते हैं। बाहरी और गहरी समझ में अंतर होता है। आचारांग सूत्र कहता है— हे धीर पुरुष! तुम अग्र और मूल दोनों का विवेचन करो। अर्थात, समस्या के केवल ऊपरी स्वरूप को ही नहीं, बल्कि उसके भीतरी रहस्य को भी जानना आवश्यक है। कारण और कार्य—दोनों पर विचार करना चाहिए। प्रत्येक कार्य के पीछे एक कारण होता है। यदि कारण मिटा दिया जाए, तो कार्य भी समाप्त हो सकता है। हमें कारणों का भी सूक्ष्म विवेचन करना चाहिए कि उपादान कारण क्या है और निमित्त कारण क्या है। बुद्धि के माध्यम से कारण और कार्य को समझा जा सकता है। यदि हम कारण को जान लें, तो समस्या का समाधान किया जा सकता है। जिस कार्य में अधिक लाभ हो, वही करना चाहिए। साधु को कभी अपनी साधना और तपस्या का निदान नहीं करना चाहिए।
यदि किसी कारणवश ऐसा हो जाए, तो आत्मविश्लेषण कर उसे सुधारने का प्रयास करना चाहिए। निदान एक शल्य के समान होता है—अर्थात, थोड़े भौतिक सुख के लिए साधना को त्याग देना। साधुत्व तो सवा लाख का हीरा है, इसलिए थोड़े से सुख के लिए इसे न छोड़ें। साधना और तपस्या का परित्याग न करें। श्रावक को भी अपनी साधना और तपस्या का निदान नहीं करना चाहिए। यह नासमझी का कार्य हो सकता है। हमें सदैव विवेक रखना चाहिए। थोड़े से भौतिक लाभ के लिए किसी बड़ी उपलब्धि को खो देना उचित नहीं है। धर्म के क्षेत्र में भी सांसारिक सुखों के लिए साधना का त्याग नहीं करना चाहिए। संयम रूपी रत्न हमें प्राप्त है, तो उसकी सुरक्षा करनी चाहिए।
समणियाँ एवं मुमुक्षु बहनें अब प्रस्थान की तैयारी में हैं। भुज में उनका गुरुकुलवास और प्रवास अत्यंत शुभ रहा। जहाँ भी रहें, उनका संयम निरंतर विकसित होता रहे। ईर्या समिति का विशेष ध्यान रखें। मंगल प्रवचन के उपरान्त भुज के उपासक प्रभुभाई मेहता, जीतूभाई भाभेरा व बालक ध्रुवेश भाभेरा ने अपनी प्रस्तुति दी। तेरापंथ कन्या मण्डल-भुज ने अपनी प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी किया।