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चिंतामणि रत्न के समान मनुष्य जीवन का ना करें दुरुपयोग : आचार्यश्री महाश्रमण
भुज शहर के 17 दिवसीय प्रवास का अंतिम दिवस। तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अमृत देशना प्रदान करते हुए कहा कि मनुष्य जीवन अत्यंत महत्वपूर्ण है, इस जीवन में जो धर्म की आराधना की जा सकती है और जो आत्मिक विकास संभव है, वह किसी अन्य योनि में नहीं हो सकता। केवलज्ञान की प्राप्ति भी केवल मनुष्य जीवन में ही संभव है। शास्त्रों में बताया गया है कि यह जीवन हमें क्यों जीना चाहिए, इसे किस उद्देश्य से सार्थक बनाना चाहिए और हमारा लक्ष्य क्या होना चाहिए। गृहस्थों के अपने-अपने सांसारिक लक्ष्य हो सकते हैं, जो आजीविका के लिए आवश्यक हैं, किंतु इनसे भी उच्चतम लक्ष्य पूर्व कर्मों का क्षय कर मोक्ष प्राप्त करना है। इसके लिए संयम और तप की साधना आवश्यक है। साथ ही, शरीर को स्वस्थ रखना भी उतना ही जरूरी है, जिसके लिए उचित भोजन आवश्यक है।
विषय-भोगों से बचकर साधना में प्रवृत्त होना चाहिए। साधुओं को माधुकरी प्रवृत्ति से जीवन यापन करना चाहिए ताकि अतिरिक्त हिंसा न हो। मुंह से स्वाद भी लिया जा सकता है और वाद-विवाद भी किया जा सकता है, किंतु दुर्भावना से प्रेरित विवाद उचित नहीं है। ज्ञान बढ़ाने के लिए वाद-विवाद किया जाए, परंतु व्यर्थ की बहस से बचा जाए। साधक को न तो स्वाद के प्रति आसक्ति होनी चाहिए और न ही अनावश्यक वाद-विवाद में संलग्न होना चाहिए। यदि कहीं कोई अच्छी बात सुनने को मिले, तो मन से उसकी अनुमोदना की जा सकती है।
यदि जीवन का लक्ष्य ऊर्ध्वगमन है, तो बाह्य विषयों और आकर्षणों में उलझने की आवश्यकता नहीं है। आवश्यकतानुसार उनका उपयोग किया जा सकता है, किंतु उनमें आसक्ति नहीं होनी चाहिए। मनुष्य जीवन में उत्कृष्ट धर्म-साधना की जा सकती है, इसलिए इसे व्यर्थ भोग-विलास में न गंवाएँ। मनुष्य जीवन सोने के थाल के समान बहुमूल्य है—इसका उपयोग भोजन के लिए करें, न कि कचरा उठाने के लिए। अमृत को प्राप्त कर उससे पैर न धोएँ, और गजराज को पाकर उस पर लकड़ियों का भार न ढोएँ। मनुष्य जीवन चिंतामणि रत्न के समान बहुमूल्य है, और साधु जीवन भी उसी प्रकार अनमोल है। जो व्यक्ति इस जीवन का दुरुपयोग करता है, वह मूढ़ कहलाता है। गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी धर्म, त्याग और तप की साधना संभव है। यदि हम ऐसा करें, तो मोक्ष की दिशा में अग्रसर हो सकते हैं। भुज प्रवास के संदर्भ में पूज्य प्रवर ने कहा कि मर्यादा महोत्सव एवं दीक्षा समारोह से युक्त यह प्रवास हुआ। इतना श्रावक समाज का श्रम, समय के रूप में योगदान रहा। इतने साधु–साध्वियों, समणियों–मुमुक्षु बहनों का समागमन हुआ। सभा आदि अन्य संस्थाएं भी हैं सभी अच्छा कार्य करते रहे। भुज में खूब धार्मिक चेतना बनी रहे।
पूज्यवर के भुज प्रवास की सम्पन्नता पर मंगल भावना कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस अवसर पर मुनि अनंतकुमारजी ने अपनी भावना व्यक्त की। मर्यादा महोत्सव व्यवस्था समिति के अध्यक्ष कीर्तिभाई संघवी ने टीम सहित गुरुदेव के प्रति मंगल भावना व्यक्त की। तेरापंथी सभा के अध्यक्ष वाड़ी भाई, स्वागताध्यक्ष नरेंद्र भाई, चंदुभाई संघवी, शांतिलाल बागरेचा, अरविंद भाई डोशी, महेश गांधी, तेरापंथ महिला मंडल से अमिता मेहता, लोहाणा समाज से डॉ. मुकेश, बेटी तेरापंथ की ओर से प्रतिभा जैन, भुज सात संघ के अध्यक्ष स्मित भाई झवेरी, जिला शिक्षण अधिकारी भूपेंद्र सिंह बाघेला आदि ने अपनी भावनाएँ अभिव्यक्त कीं। कार्यक्रम में ज्ञानशाला, कन्या मंडल एवं तेरापंथ महिला मंडल की विशेष प्रस्तुति भी हुई। सूरत से समागत गिरीश भाई वकील ने 'आगम बुक' श्रीचरणों में निवेदित की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।