

गुरुवाणी/ केन्द्र
श्रामण्य का प्राप्त होना है विशेष उपलब्धि : आचार्यश्री महाश्रमण
तेरापंथ धर्म संघ के नायक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने कच्छी पूज समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि साधु जीवन प्राप्त होना एक बड़ी उपलब्धि होती है। संसार में असंख्य लोग हैं जो साधु नहीं बन पाते और गार्हस्थ्य जीवन में ही रहते हैं। कई मनुष्यों में त्याग और संयम की चेतना विशेष रूप से जागृत होती है, जिससे वे साधु बनने का प्रयास करते हैं और कई इसमें सफल भी हो जाते हैं। साधु दीक्षा बचपन में भी प्राप्त हो सकती है, और यौवन या वार्धक्य में भी। कुछ लोग बचपन में ही साधु बनकर अंतिम समय तक साधुत्व की आराधना करते हैं, जो अत्यंत श्रेष्ठ और महान कार्य है। साधु बनने के मार्ग में कई कठिनाइयाँ आती हैं, लेकिन उन बाधाओं को पार कर साधु बन जाना एक अत्यंत ऊँचा और प्रशंसनीय कार्य है।
आचार्यश्री तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञ ने भी बचपन में ही दीक्षा ग्रहण की थी। उनका संयम पर्याय अत्यंत दीर्घकालिक और महत्वपूर्ण रहा। आचार्य पद का अपना महत्व है, लेकिन साधुत्व ही मूल तत्व है। यदि साधुता है, तो मुक्ति निश्चित है। संयम का संरक्षण बना रहना चाहिए। संयम में रमण करने वाला व्यक्ति ही आगे बढ़ सकता है। श्रामण्य को त्यागने वाला व्यक्ति बाद में पश्चाताप करता है और सांसारिक मोह में फँसकर कठिनाइयों का सामना करता है।
आज माघ शुक्ला चतुर्दशी है, जो हमारे यहाँ हाजरी का दिन माना जाता है। हाजरी में प्रायः साधु-साध्वियां होते हैं, इस बार समणियाँ और मुमुक्षु बाइयाँ भी उपस्थित हैं। इस बार इनका लंबा प्रवास हो रहा है, जिससे उन्हें गुरुकुल में उपासना का अवसर प्राप्त हुआ है। समणियों और साधु जीवन में कुछ अंतर अवश्य है, परंतु दोनों ही संन्यास मार्ग के अंग हैं। समणियां भी धर्मसंघ की अच्छी सेवा करती हैं। कुछ लाडनूं समणीकेन्द्र में रहती हैं तो कई भारत-नेपाल आदि क्षेत्रों में रहती हैं तो कितनी समणियां विदेशों की यात्रा करती हैं और धर्म प्रचार आदि का कार्य करती हैं। समणियों को जितना संभव हो सके, गुरुकुलवास में रहने और प्रशिक्षण आदि का लाभ प्राप्त होता रहे। मुमुक्षुओं को यदि गुरुकुलवास में कभी लम्बे समय तक रहने आदि की सुविधा हो जाए तो उन्हें बहुत कुछ जानने, समझने, साध्वियों की निकट सेवा आदि के माध्यम से अच्छी जानकारी हो सकती है, अच्छा अवसर प्राप्त हो सकता है। वर्ष 2026-27 योगक्षेम वर्ष होगा, जिसमें समणियों और मुमुक्षुओं के प्रशिक्षण और सेवा के विषय में विशेष चिंतन किया जाएगा। उन्हें गुरुकुलवास में सेवा और प्रशिक्षण का अवसर मिल सके, इसके लिए जो भी संभव होगा, वह किया जाएगा।
पूज्यवर ने हाजरी का वाचन का क्रम संपादित करवाते हुए प्रेरणाएँ प्रदान करते हुए फरमाया कि मर्यादाओं के प्रति हमारी जागरूकता बनी रहे और सबमें सौहार्द का भाव बना रहे। हमें पूर्वाचार्यों के साहित्य का ज्ञान प्राप्त होता रहे, विशेष रूप से अतीत के चार आचार्यों का साहित्य अधिक उपलब्ध है। स्वाध्याय और ध्यान का क्रम निरंतर चलता रहे। पूज्यवर ने उपस्थित चारित्रात्माओं एवं श्रद्धालुओं को थोड़ी देर तक प्रेक्षाध्यान का प्रयोग भी कराया। आचार्यश्री की अनुज्ञा से साध्वी देवार्यप्रभाजी ने लेखपत्र का उच्चारण किया। आचार्यश्री ने साध्वीजी को तीन कल्याणक बक्सीस किए। तदुपरान्त उपस्थित चारित्रात्माओं ने अपने-अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र का उच्चारण किया। समणी विपुलप्रज्ञाजी ने अपनी भावना श्रीचरणों में अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।