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कर्तव्य के बोध और सम्यक् निर्वहन से प्राप्त होती है सफलता : आचार्यश्री महाश्रमण
तेरापंथ के गणनायक आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ लगभग 11 किलोमीटर का विहार कर पुनाडी स्थित नवजीवन होम्स में पधारे। मंगल देशना प्रदान करते हुए परम पूज्यवर ने फरमाया कि व्यक्ति के जीवन में कर्तव्य का महत्वपूर्ण स्थान होता है। पहले कर्तव्य का बोध होना, फिर उसका सम्यक् निर्वाह करना—जिस व्यक्ति के जीवन में यह क्रम चलता है, वह अपने जीवन में मध्यम या उच्च कोटि की स्थिति प्राप्त कर सकता है। व्यक्ति को यह बोध होना चाहिए कि उसका कर्तव्य क्या है।
आचार्यश्री तुलसी की एक प्रसिद्ध रचना है—कर्तव्यषट् त्रिंशिका। इसमें कर्तव्य के महत्व को बताया गया है। जो लोग अपने कर्तव्य और अकर्तव्य को नहीं जानते, उनके साथ कभी ऐसा अनिष्ट हो सकता है, जिसके बारे में उन्होंने कल्पना भी न की हो। ऐसे लोग मनुष्य होते हुए भी पशु के समान होते हैं, क्योंकि वे अपने कर्तव्य से अनभिज्ञ रहते हैं। पशुओं में भी बोध होता है, इसे एक हिरणी के प्रसंग द्वारा समझाया गया है। भक्तामर स्तोत्र में भी कर्तव्य के महत्व को दर्शाया गया है कि कर्तव्य के लिए एक मृग भी शेर से सामना कर सकता है।
साधु का पहला कर्तव्य है—अपने साधुपन का पालन करना। भगवान ऋषभदेव ने भी अपना कर्तव्य समझते हुए लोगों को असि, मसि और कृषि का प्रशिक्षण दिया था। तीर्थंकरों का भी कर्तव्य है—देशना देना और तीर्थ की स्थापना करना। इसी प्रकार श्रावक हों अथवा सामान्य गृहस्थ, सभी को अपने कर्त्तव्य के प्रति जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए। जो व्यक्ति कर्तव्य को समझते हैं और उसका पालन करते हैं, वे जीवन में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। नवजीवन होम्स की ओर से पूज्यवर के स्वागत में ईशानी मोरबिया और प्रतिमा मोरबिया ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।