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व्यक्तित्व निर्माण में रंगों का महत्व
बसंत ऋतु का आगमन रंगों की नई बहार लेकर आता है। प्रकृति भी इन्द्रधनुषी रंगों की सतरंगी जाजम बिछाकर ऋतुराज का स्वागत करती है। प्रकृति के परिवर्तनशील परिधान को देखकर सृष्टि का कण-कण नवीनता से सराबोर हो जाता है। रंग-बिरंगे फूलों की चादर ओढ़े प्रकृति इठलाती सी नजर आने लगती है। पक्षियों का कलरव, भंवरों की गुंजार मधुर संगीत की भांति कानों को सुहावना लगता है जिससे मन में नई उमंग एवं नई ऊर्जा का संचार होने लगता है। नए पत्तों एवं फूलों से लदे पेड़-पौधे भी अपने सुगंधमय वातावरण से आने वाले हर किसी को अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं। प्रकृति की गोद में हर इंसान कभी दीवाली तो कभी होली की खुशियां लुटाता है। उत्सव की परम्परा में भारत में जितने भी उत्सव मनाये जाते हैं उसमें दीपावली की तरह होली को भी राष्ट्रीय पर्व रूप में माना गया है। दीपावली कृष्ण पक्ष की अमावस्या को आलोकमय बनाती है, तो होली शुक्ल पक्ष की शीतल चांदनी से जीवन को शीतल एवं सरस बनाती है।
विक्रम संवत् कैलेंडर के अनुसार फाल्गुनी पूर्णिमा, अन्तिम महीने का अन्तिम दिन है- होली। इस लोकप्रिय पर्व को समूचा विश्व बड़े ही आमोद-प्रमोद के साथ मनाता है। विशेष रूप से गेहूं, चने, होले आदि की फसल पककर जब किसानों के हाथ में आती है तब अपने श्रम बूंदों की सार्थकता पर किसान भी खुशियों में गुलाल उड़ाते हैं एवं होलिका दहन करते हैं। यह लौकिक पर्व हमें आध्यात्मिक संदेश भी देता है कि हर इंसान अपने कषायों की होली जलाए, आपसी कटु व्यवहार का दहन करे, जिससे जीवन में खुशियों का सावन आए।
अंग्रेजी भाषा में होली का अर्थ है- पवित्रता। व्यक्ति अपने मनोविकारों को दूर कर शुभ-कर्मों के द्वारा पवित्रता का विकास करे। मैत्री, प्रेम व सौहार्द के रंगों से सद्भावनापूर्ण होली खेले। समता की रंगोली से जीवन के उपवन को सजाएं, संवारे। यही आध्यात्मिक संदेश लेकर रंगों पर पावन पर्व आता है। व्यक्ति रंगों की दुनिया में जीता है और रंग व्यक्ति की भावधारा को प्रभावित करते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार हमारा सारा जीवन तंत्र रंगों के आधार पर चलता है। रंग व्यक्ति के मस्तिष्क एवं अवचेतन मन को सबसे अधिक प्रभावित करता है। समस्त प्राणियों के स्वास्थ्य और व्यवहार पर रंगों का विशेष प्रभाव पड़ता है। इसीलिए पश्चिमी जगत में 'कलर थेरेपी' का बहुत प्रचलन रहा है। शारीरिक व मानसिक रोगों की चिकित्सा में भी रंग का विशिष्ट स्थान है। रंग की कमी होने के कारण व्यक्ति शारीरिक, मानसिक रूप से अस्वस्थ हो जाता है। अनेक बीमारियां उत्पन्न हो जाती है। रंग की पूर्ति होते ही व्यक्ति स्वस्थ हो जाता है। जैन दर्शन में लेश्या की चर्चा करते हुए बताया है कि जैसा हमारा भाव होता है वैसा ही रंग होता है और रंग के अनुरुप ही भाग्य बन जाता है। इसी के आधार पर कृष्ण, नील, कापोत, तेजस्, पद्म, शुक्ल लेश्याओं का निर्माण हुआ है। ये शुभ-अशुभ मनोभाव और रंग ही व्यक्तित्व विकास में निमित्त बनते हैं तो कहीं ह्वास के कारण भी बनते हैं। मन के अपवित्र आदि विचारों को प्रशस्त लेश्या व रंगों के स्थान से पवित्र बनाया जा सकता है। लेश्या का भावों के साथ गहरा संबंध है।
जैसा रंग वैसा भाव - रंगों का महत्व अनादिकाल से ही है। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने प्रेक्षाध्यान के माध्यम से भाव परिवर्तन के अनेक प्रयोग बताये हैं और साथ ही रंग चिकित्सा के प्रयोग भी करवाएं हैं। हम जिस रंग के कमरे में रहते हैं उसका भी हमारे विचारों पर प्रभाव पड़ता है। विचार हमारे मन को प्रभावित करते हैं। मन का सीधा असर शरीर पर होता है। रंग पॉजेटिव और नेगेटिव दोनों तरह का प्रभाव डालते हैं।
रंगों का प्रभाव और उनका महत्व
लाल रंग— सक्रियता और स्फूर्ति का प्रतीक है। यह रंग जीवनी शक्ति, साहस और आत्मविश्वास को बढ़ाने वाला है। हल्का लाल रंग अध्यात्म का रंग है, जिससे आध्यात्मिक चेतना का जागरण होता है। दर्शन केन्द्र पर अरुण रंग का ध्यान किया जाता है, ध्यान-साधना की गहराई में साधक तीसरे नेत्र को खोलकर ज्ञान-सरिता में अभिस्नात हो जाता है।
पीला रंग— प्रसन्नता का प्रतीक है। ज्ञानतंतु एवं मन पर पीले रंग का विशेष प्रभाव पड़ता है। जिनका बुद्धिबल कमजोर है या जिनके मस्तिष्कीय स्नायु दुर्बल हैं, उन्हें सक्रिय करने के लिए तथा बुद्धि को तीव्र बनाने के लिए पीले रंग का ध्यान किया जाता है। यह रंग वैचारिक उलझनों को दूर कर संतुलित जीवन जीना सिखाता है। पीला रंग बौद्धिक विकास एवं भावना शुद्धि का प्रतीक है। इस रंग से निकलने वाली ऊर्जा हमारे अन्तर्मन को प्राणवान एवं प्रसन्न बनाती है। पीले रंग के परमाणु से व्यक्ति अल्प कषायी एवं अल्पभाषी होता है।
हरा रंग— शीतलता का प्रतीक है। हरे रंग में रोग-प्रतिरोधक शक्ति की अपूर्व क्षमता है। यह कीटाणुओं को नष्ट करने का शक्तिशाली साधन है। लीवर एवं गुर्दे के विकारों को दूर करने के लिए हरे रंग की ऊर्जा सहायक होती है। यह तन-मन को शीतल बनाता है।
नीला रंग— पवित्र विचारों का प्रतीक है। यह मन में पवित्र विचार उत्पन्न करता है और सकारात्मक सोच को बढ़ाता है। यह मस्तिष्क को शांति देने वाला रंग है और नाड़ी संस्थान को राहत पहुंचाता है। हमारे शारीरिक सौदर्य एवं रचनात्मक प्रतिभा को विकसित करता है। इससे जीवन शक्तिशाली बनता है। भय और चिंता से मुक्त होने के लिए नीला रंग लाभप्रद है।
श्वेत रंग— समता का प्रतीक है। श्वेत रंग की प्रधानता से व्यक्ति का चित्त शांत-प्रशांत रहता है। आत्मसंयम, समता एवं उपशम भाव की साधना के लिए सफेद रंग महत्वपूर्ण माना गया है। इससे क्रोध और अहंकार का शमन होता है। सफेद रंग की मात्रा बढ़ने से नई ताजगी, नई उमंग, नया उत्साह बढ़ता है। व्यक्ति की भावधारा सात्विक बनती है, प्रामाणिकता, नैतिकता आदि श्रेष्ठ गुणों के साथ व्यक्तित्व का सुन्दर निर्माण होता है।
काला रंग— जिसमें काले रंग की प्रधानता होती है, उस व्यक्ति का दृष्टिकोण विशेष रूप से नकारात्मक होता है। उसके भीतर आकांक्षा अधिक होती है, उसका व्यवहार आकर्षक नहीं होता, और उसके आभामंडल का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता। उसमें ईर्ष्या, परिग्रह और प्रमाद विशेष रूप से दिखाई देते हैं। हमारे शरीर में जितनी भी ग्रंथियां (ग्लैंड्स) हैं, उनका अपना रंग होता है। जितने भी चैतन्य केन्द्र हैं, उनका भी अपना-अपना रंग है। इसी के आधार पर व्यक्ति के व्यक्तित्व का अंकन किया जाता है।
होली का पौराणिक संदर्भ
होली मनाने के पीछे पौराणिक घटनाओं का उल्लेख मिलता है। राजा हिरण्यकश्यप अन्यायी एवं नास्तिक था। उसका पुत्र प्रह्लाद आस्तिक एवं ईश्वरीय गुणों से युक्त था। विष्णु भक्त प्रह्लाद को पिता हिरण्यकश्यप बार-बार विष्णु-भक्ति करने से रोकता था। जब वह नहीं रुका, तो उसे मारने के लिए अनेक प्रयत्न किए गए, जो विफल हो गए। तब हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से सहायता मांगी। होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था, पर होलिका का यह वरदान उस समय समाप्त हो गया था। इस बात से अनभिज्ञ होलिका, प्रह्लाद को लेकर चिता में जा बैठी। परंतु विष्णु-कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहा और होलिका जलकर भस्म हो गई। तब से प्रतिवर्ष फाल्गुन पूर्णिमा को होलिका दहन की प्रथा चली आ रही है।
ऋतुओं के राजा बसंत के आगमन पर हम सब होली पर्व की गरिमा को बढ़ाएं। यदि हम हर दिन उत्सव की तरह मनाएं, तो जीवन का पूरा नजरिया बदल सकता है। आइए, खिलते हुए गुलाब की तरह जिंदगी को खुशनुमा बनाएं।