

रचनाएं
अर्पित - श्रद्धासुमन
अनुभव के खुले वातायन में
स्वल्प समय की स्वर्णिम स्मृतियां
स्मृति पटल पर तरोताजा हो रही हैं-
मन अपने भाग्य की सराहना कर रहा है।
हे सतिशेखरे ! शासनमाता -
एक कुसुम कली को फूल का आकार मिला
मन का सपना साकार हुआ
नौ महीने तक मां की हरी भरी गोद मिली
मां ने बच्चे का पालन पोषण किया, संवर्धन किया
और किया - सद्संस्कारों का वर्षण
अंगुली पकड़कर चलना सिखाया
संयम पथ पर बढ़ना सिखाया
उस ममतामयी मां ने मुझे स्नेहिल फ्रेम में सहेज लिया।
काश ! ढाई वर्ष का वह गोल्डन चांस सचमुच में -
मेरी लाइफ के लिए गॉड-गिफ्ट था
मैंने ससीम भावों से देखा असीम जीवन दर्शन
गगन के अनगिन तारों में देखा - चमकता ध्रुवतारा
भावनाओं के समंदर में देखा - अमूल्य मोती
लगता है - उन शुभ परमाणुओं का उतना ही संयोग था
बस, हर सांस समर्पित तव चरणों में
अर्पित - श्रद्धासुमन