

रचनाएं
शासनमाता बनी महान्
विमल रवि की विमल चांदनी,
सबको लगती बड़ी सुहानी।
मलय-निलय की मस्त बहारें,
तब गौरव की गाथा गाएं।
शासनमाता बनी महान्, शासनमाना बनी महान्।।
सागर जिसके चरण पखारें,
उत्तुंग हिमगिरी तुम्हें निहारे।
निर्माणों का नीड़ संवारें,
दिव्य तेज बनकर तुम निखरे।
शासनमाता संघ की शान, शासनमाता बनी महान्।।
संकल्पों के दीप जलाकर,
प्रगति के नूतन द्वार खोलकर।
सपनों को सच कर दिखाकर,
पाई दिव्यदृष्टि संघ दिवाकर।
शासनमाता बनी महान्, शासनमाना बनी महान्।।
आशाओं के नव आस्थान,
करूं संघ उत्थान।
उम्मीदों के नव पायदान,
मेरा संघ महान।
शासनमाता का आह्वान - मेरा संघ महान्।।