

रचनाएं
चरणों शीश झुकाएँ
ममतामयी करुणामयी माँ के चरणों शीश झुकाएँ,
श्रद्धा सुमन चढ़ाए होऽऽऽ, सुमिरन दीप जलाएँ।।
उस रत्नकुक्षि धात्री मां छोटी घर जन्मी कन्या,
था वर्ण गेहुआं फिर भी मुखमण्डल छटा अनन्या।
जब आब अलौकिक बिखरी आलोकित था हर कोना,
थे चकित-2 सब परिजन पाकर वो रत्न अमोला,
बैद वंश की महाज्योति से होऽऽऽ रोशन दशों दिशाएं।।
व्यक्तित्व निराला मैया वाणी का विषय न बनता,
इक बार चरण जो आता वो तेरा बनकर रहता।
कर्तृत्व ऋचाएं तेरी वो गूंजे हर अधर-2 पर,
लेखन सम्पादन कौशल पर न्यौच्छावर विद्वदवर,
अति प्रभावी प्रवचन शैली होऽऽऽ दिल छूती रचनाएं।।
मां तेरा स्नेहिल आंचल कितनों का था आश्वासन,
इक झटके में ही तोड़ा तुमने ममता का बन्धन।
सदियां नहीं भूल सकेगी उपकार अनंत तुम्हारे,
इक बार धरा पर आओ हम दिल से तुम्हें पुकारे,
क्या थी जल्दी क्या थी विवशता होऽऽऽ जो यों छोड़ सिधाए।।
तर्ज : धरती सुनहरी