भय को जीत अभय बनने का करें प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

भय को जीत अभय बनने का करें प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

अहिंसा के अग्रदूत अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अमरोली में पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान कराते हुए फरमाया कि जिनेश्वरों को नमस्कार है, जिन्होंने भय को जीत लिया है। प्राणी के भीतर भय एक संज्ञा होती है। सामान्य प्राणियों में चार संज्ञाएं - आहार, भय, मैथुन और परिग्रह संज्ञाएं होती है। भय भी एक वृत्ति है। मूलतः भय आदमी को दुःख का लगता है। अनेक कारणों से व्यक्ति डर जाता है। अनेक भय हमारे भीतर हो सकते है। हम भय को जीतें, अभय बनें। न डरना न डराना, डरना कमजोरी है तो डराना हिंसा का एक अंग हो सकता है।
आज संविधान दिवस है। 26 नवम्बर को भारत संविधान पारित हुआ था। आगे 26 जनवरी को लागू हुआ था। 75 वर्ष बीत गये। संविधान भी त्राण देने वाला बन सकता है। संविधान का ही प्रभाव है कि एक सामान्य घर में पैदा हुआ व्यक्ति राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री बन सकता है। हमारे देश में लोकतांत्रिक प्रणाली है। नियम, व्यवस्था, कानून बड़े से बड़े और छोटे से छोटे सब व्यक्तियों पर लागू होता है। न्यायपालिका का भी कितना महत्व है। इसका अपना अंकुश है। नियम बनाने वाले का पालन कराने वाले और पालन करने वाले का भी महत्व है। आज हमारा देश संविधान के अनुसार चल रहा है। जनता भी एक शक्ति है। सरकार, राजनीति भी देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। नियम का उल्लंघन करेंगे तो दंड देना न्यायपालिका का कार्य है। दंड का भय आदमी को सन्मार्ग पर चलाने वाला सिद्ध हो सकता है।
हमारे देश भारत में कितने महापुरुष हुए हैं। देश को जहां भौतिक विकास चाहिए उसके साथ आर्थिक विकास भी चाहिए, साथ में देश में नैतिकता और आध्यात्मिकता भी रहे। गुरुदेव तुलसी ने अणुव्रत आन्दोलन शुरु किया था। अणुव्रत मानव को अच्छा बनाने वाला आन्दोलन है। आज यहां विद्यालय में आना हुआ है। यहां भी विद्यार्थियों में जीवन विज्ञान के संस्कार रहें। विद्यार्थियों में ज्ञान भी चाहिए साथ में अच्छा चरित्र भी जीवन में होना चाहिए। अच्छा ज्ञान से हम भय से बच सकते हैं और अच्छाईयों का विकास हो सकता है। पूज्यवर के स्वागत में कैलाश माण्डोत, देवेन्द्र माण्डोत, ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। स्थानीय ज्ञानशाला व कन्या मंडल की प्रस्तुति हुई। कार्यक्रम का संचालन मुनि कुमारश्रमणजी ने किया।