श्रमण महावीर

स्वाध्याय

श्रमण महावीर

चंपा के नागरिकों ने जागकर देखा, उनकी नगरी शत्रु की सेना से घिर गई है। वे इस आकस्मिक आक्रमण से आश्चर्य-स्तब्ध हैं। 'यह किसकी सेना है? इसने किस हेतु से हमारी नगरी पर घेरा डाला है? क्या पहले कोई दूत आया था? क्या हमारे राज्य की सेना इस आकस्मिक आक्रमण के लिए तैयार है?' यत्र-तत्र ये प्रश्न पूछे जाने लगे। पर इनका समुचित उत्तर कौन दे?
राजा दधिवाहन वहां उपस्थित नहीं था। वह सुभद्र की सहायता के लिए गया हुआ था।
सुभद्र छोटा राजा था। वह चंपा की अधीनता में अपना शासन चलाता था। उसने अपनी रूपसी कन्या की सगाई अहिच्छत्रा के राजकुमार के साथ कर दी। भद्दिला के राजा मदनक को यह प्रिय नहीं लगा। वह उस कन्या को अपने अंतःपुर में लाना चाहता था। उसने सुभद्र को युद्ध की चुनौती दे दी। सुभद्र ने दधिवाहन की सहायता चाही। दधिवाहन अपनी सेना के साथ रणभूमि में पहुंच गया।
वत्स देश का अधिपति शतानीक अंग देश को अपने राज्य में विलीन करने का स्वप्न संजोए बैठा था। एक बार अंग देश की सेना ने उसका स्वप्न भंग कर दिया था, इसका भी उसके मन में रोष था।
शतानीक का सेनापति काकमुख धारिणी के स्वयंवर में असफल हो चुका था। दधिवाहन की सफलता पर उसे ईर्ष्या हो गई। धारिणी के प्रति उसके मन में अब भी आकर्षण था। शतानीक की स्वप्न-पूर्ति और काकमुख की प्रतिशोध-भावना को एक साथ अवसर मिला। काकमुख के संचालन में वत्स की सेना ने स्थल और जल-दोनों ओर से चंपा पर आक्रमण कर दिया। चंपा की सेना इस आकस्मिक आक्रमण से हतप्रभ हो गई। राजा उपस्थित नहीं था, वह युद्ध के लिए तैयार नहीं थी। फिर भी उसने प्रतिरोध किया, किन्तु वत्स की सुसज्जित सेना का वह लम्बे समय तक सामना नहीं कर सकी। राजधानी के द्वार शत्रु सैनिकों के लिए खुल गए। काकमुख के प्रतिशोध की आग बुझी नहीं। उसने चंपा को लूटने की स्वीकृति दे दी। वत्स के सैनिक चंपा पर टूट पड़े।
उन्होंने किसी भी प्रासाद को शेष नहीं छोड़ा। वे राजप्रासाद में भी पहुंच गए। काकमुख ने रानी धारिणी और उसकी कन्या वसुमती का अपहरण कर लिया।
सैनिक अपनी-अपनी बहादुरी बखानते लौट रहे थे। यह मानव जाति का दुर्भाग्यपूर्ण इतिहास है कि मनुष्य दूसरे मनुष्यों को लूटकर प्रसन्नता का अनुभव करता है, दूसरों को अशांति की भट्टी में झोंककर शान्ति का अनुभव करता है।
चंपा के नागरिकों ने क्या अपराध किया था? उन्होंने शतानीक या उसकी सेना का क्या बिगाड़ा था? उसका अपराध यही था कि वे विजेता देश के नागरिक नहीं थे, पराजित देश के नागरिक थे। शक्तिहीनता क्या कम अपराध है? शक्तिहीन निरपराध को हमेशा अपराधी के कठघरे में खड़ा होना पड़ा है। दधिवाहन की सेना शतानीक की सेना के सामने अल्पवीर्य थी। शतानीक की सेना पूरी सज्जा के साथ आक्रामक होकर आई थी। दधिवाहन की सेना युद्ध के लिए तैयार नहीं थी। प्रमाद क्या कम अपराध है। जो अपने दायित्व के प्रति जागरूक नहीं होता, उसे सदा यातनाएं झेलनी पड़ी हैं।
विजेता का उन्माद शक्ति-प्रदर्शन किए बिना कब शान्त होता है? इस अ-हेतुक शक्ति-प्रर्शन में हजारों-हजारों नागरिकों को काल-रात्रि भुगतनी पड़ी। फिर राजप्रासाद कैसे बच पाता और कैसे बच पाता उसका अन्तःपुर? धारिणी और वसुमती को उसी मानवीय क्रूरता के अट्टहास का शिकार होना पड़ा।
काकमुख ने अपने पराक्रम का बखान इन शब्दों में किया, 'मैंने धन की ओर ध्यान नहीं दिया। मैं सीधा राजप्रासाद में पहुंचा। वहां मेरा कुछ प्रतिरोध भी हुआ। पर मैं उसे चीरकर अन्तःपुर में पहुंच गया और महारानी को ले आया। मुझे पत्नी की आवश्यकता है। यह मेरी पत्नी होगी। एक कन्या को भी ले आया हूं। यदि धन आवश्यक होगा तो उसे बेच दूंगा।'