संस्कारों और संस्कृति को जीवन व्यवहार में अपनाएं

संस्थाएं

संस्कारों और संस्कृति को जीवन व्यवहार में अपनाएं

मुनि संजय कुमार जी के सान्निध्य में 'धर्म व्यवहार में कैसे लाएं?' विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस अवसर पर मुनि प्रसन्नकुमार जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि शताब्दियों से समाज और परिवारों में आत्म-धर्म का जीवन व्यवहार में समावेश होता रहा है। इससे संस्कारों का निर्माण हुआ है, और आपसी रिश्तों में मिठास, सौहार्द, प्रेम व भाईचारा बना रहा है। उन्होंने कहा कि दिखावे के कारण रिश्तों में मिठास की जगह खटास बढ़ रही है। बड़े-बुजुर्गों के प्रति आदर, सम्मान और विनय का व्यवहार आत्म-धर्म ही सिखाता है।
महिलाओं को परिवार और समाज की संस्कृति के साथ-साथ लज्जा और दया का पाठ आत्म-धर्म के माध्यम से ही मिलता है। वर्तमान समय में हमारी पवित्र संस्कृति और संस्कारों में विरोधाभास देखा जा रहा है। परिवार और समाज में आपसी असंतोष बढ़ता जा रहा है। 'हम दो, हमारे एक' की विचारधारा के बावजूद आपसी सामंजस्य और प्रेम में कमी देखने को मिल रही है। दूसरी ओर, शिक्षा का स्तर भले ही बढ़ा हो, लेकिन अपनों के व्यवहार से उत्पन्न असंतोष और दूरियां समाज में बढ़ रही हैं। इस टूटन और असंतोष के कारण धार्मिक संस्कार धीरे-धीरे परिवार और समाज से पलायन कर रहे हैं। मुनिश्री ने कहा कि यदि शांति और सौहार्द के साथ परिवार और समाज में जीवन व्यतीत करना है, तो संस्कारों और संस्कृति को जीवन व व्यवहार में अपनाना होगा।