एनआरआई समिट सम्पोषण, शांति और समाधि देने वाला सिद्ध हो :  आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

एनआरआई समिट सम्पोषण, शांति और समाधि देने वाला सिद्ध हो : आचार्यश्री महाश्रमण

आयारो आगम के माध्यम से अहिंसा के संदर्भ में समानता रखने की दी अभिप्रेरणा

तेरापंथ धर्मसंघ के अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने सूरत के महावीर समवसरण में आयारो आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए शस्त्र परिज्ञा के विषय में फरमाया कि छ: जीव निकाय के प्रति अहिंसा की भावना पुष्ट रखें, अहिंसा के संदर्भ में समानता रखें। यदि मैं जीना चाहता हूं तो अन्य जीव भी जीना चाहते होंगे। मुझे मारने पर कष्ट होता है तो दूसरों को भी कष्ट होता है। मुझे कोई गाली या अपशब्द कहे तो अप्रिय लगता है तो वही बात दूसरे जीवों को भी अप्रिय लगती है। मुझे सुख प्रिय है तो दूसरे प्राणियों को भी सुख प्रिय होगा। इन समानताओं को तुला के रूप में देखने का प्रयास करें। जिस प्रकार मनुष्य स्वयं जीना चाहता है तो वह दूसरों को भी न मारे, उन्हें जीने का अधिकार दे। गृहस्थ जीवन में पूर्णतया अहिंसा संभव नहीं है। हिंसा के तीन प्रकार बताए गए हैं - आरंभजा, प्रतिरक्षात्मिकी व संकल्पजा हिंसा।
गृहस्थ में आरंभजा हिंसा तो अनिवार्य कोटी की हिंसा है, इससे सर्वथा बचना मुश्किल है। रक्षा के लिए प्रतिरक्षात्मिकी हिंसा भी आवश्यक हो सकती है पर गृहस्थ संकल्पजा हिंसा से बचने का प्रयास करे। होटल, हॉस्टल और हॉस्पिटल में आदि जगहों पर जाना हो तो मांसाहार से बचना चाहिए। मांसाहार युक्त दवाई भी लेने से बचने का प्रयास करना चाहिए। एनआरआई लोगों में भी धर्मिक भावनाओं का संचार होता रहे। समणश्रेणी द्वारा भारत से बाहर जाकर धार्मिक संस्कारों से जोड़ने और उसे सुरक्षित करने का प्रयास किया जाता है। तेरापंथी महासभा भी विदेशों में रहने वाले लोगों से संपर्क कर मीडिया आदि के माध्यम से अपनी संस्कृति व अहिंसा भाव को पुष्ट रखने का प्रयास करती है।
साधु को तो किसी भी हिंसा में नहीं जाना चाहिए। उस पर कोई आक्रमण करे तो समता में रहें। साधु के अहिंसा महाव्रत है। उसकी साधना उच्च कोटि का जीवन है। गृहस्थ साधु नहीं होता लेकिन आरंभजा व प्रतिरोधजा हिंसा से उसका श्रावकपन नष्ट नहीं होता। आचार्य प्रवर की पावन सन्निधि में जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा द्वारा आयोजित द्विदिवसीय एनआरआई समिट 2024 का शुभारंभ हुआ। आचार्य प्रवर ने एनआरआई समिट में संभागी बने लोगों को पावन आशीष प्रदान करते हुए फरमाया कि इतने लोगों का एक साथ पहुंचना अच्छा उपक्रम है। साधु-साध्वियों के संपर्क से धार्मिक पुस्तकों, समणियों से संस्कार व ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। बालपीढ़ी और युवा पीढ़ी दोनों की संभाल करना बहुत महत्वपूर्ण है।
 इनके संस्कार सृजन पर ध्यान दिया जाता रहे। महासभा द्वारा आयोजित एनआरआई समिट से विदेशों में रहने वाले लोगों में धार्मिकता के भाव बने रहें, तेरापंथ धर्मसंघ से जुड़ाव पुष्ट रहे। तेरापंथी महासभा के नए उन्मेष संगठन के लिए अच्छी बात है। यह समिट एनआरआई लोगों को संपोषण देने वाली सिद्ध हो, उनके जीवन में शांति, चित्त में समाधि रहे और अपनी आत्मा के कल्याण के लिए प्रयास करते रहें। इस समिट में 15 देशों से 200 से अधिक श्रद्धालु भाग ले रहे हैं। इस संदर्भ में महासभा अध्यक्ष मनसुखलाल सेठिया, समिट कन्वेनर जयेश जैन, सुरेन्द्र पटावरी व प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष संजय सुराणा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।