अंकुश के बिना हाथी चल रहा है और लगाम के बिना घोड़ा चल रहा है। कुगुरु की चाल भी ऐसी ही है, वह साधु का नाम धराता है किन्तु संयम के बिना चल रहा है।

- आचार्य श्री भिक्षु