ज्ञान अर्जित करने का उत्तम माध्यम है श्रोत्र और चक्षु : आचार्यश्री महाश्रमण
डायमंड सिटी सूरत में आध्यात्मिकता का आलोक फैलाने का कार्य कर रहे आचार्य श्री महाश्रमण जी ने महावीर समवसरण में आयारो आगम की अमृत वर्षा करते हुए फरमाया कि सुनी हुई बात यदि आंखों से देख ली जाए तो वह पुष्ट हो जाती है। मनुष्य के पास पांच इंद्रियां होती हैं, उसमें संज्ञी मनुष्य इंद्रिय जगत की दृष्टि से विकसित प्राणी होता है। इसमें भी श्रोत्र और चक्षु मनुष्य के ज्ञान को बढ़ाने वाले होते हैं। कुछ साधु गृह त्याग करने के पश्चात भी गृहवासी की तरह भोग, स्वाद में लीन बनकर असंयम का आचरण करने वाले होते हैं, प्रमाद में रहते हैं तो उनमें साधुता नहीं रहती। दूसरी और कुछ गृहस्थ भी ऐसे होते हैं जिनकी संयम की चेतना जाग जाती है। वे अहिंसा संयम के प्रति सजग, अपने नियमों की अनुपालना करने वाले होते हैं, कितना भी कष्ट आ जाए अपने व्रत को नहीं छोड़ते। जीवन में अनेकों बार गुरु का नियंत्रण और अनुशासन होता है, इससे शिष्य गलतियों से बच सकता है। गुरु का सान्निध्य शिष्यों के लिए रक्षा कवच के समान होता है। शिष्य मर्यादा, अनुशासन, सारणा-वारणा, गुरु इंगित से सीखते हैं।
साधु बनकर जो संयम की निर्मलता का प्रयास रखते हैं, आसक्ति के भाव मन में नहीं लाते और स्वाद को प्राथमिकता नहीं देते, वही शिष्य ऊंची गति को प्राप्त कर सकते हैं। सिर्फ साधु ही नहीं गृहस्थ भी अपनी इंद्रियों का संयम करे, साधना करे तो उनके जीवन का कल्याण हो सकता है। पूज्यप्रवर के आख्यान के पश्चात मुनि उदितकुमार जी ने तपस्या हेतु प्रेरणा दी। तेरापंथ किशोर मंडल एवं तेरापंथ कन्या मंडल ने पृथक पृथक चौबीसी की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।