विलक्षण व्यक्तित्व की विलक्षण कहानी
सोहनां ने दक्षिण भारत में, लीला का वैराग्य जगाया।
अन्तर्यामी! श्री तुलसी ने, सोहनां को लावण्य दिराया।।
संस्था प्रवेश की अनुमति पाई, महाराष्ट्र के जयसिंहपुर में।
संयम की Golden Jubilee भी, महाराष्ट्र के जयसिंहपुर में।।
अभिनिष्क्रमण किया लीला ने, गुरुवर की दक्षिण यात्रा में।
गुरु इंगित पा अर्धसदी पश्चात्, पुनः दक्षिण यात्रा में।।
श्रीमुख से गुरु (तुलसी) ने फरमाया, कभी न भूलना तमिल भाषा।
आशीष बना वरदान गुरु का, पूर्ण करी गुरु की अभिलाषा।।
जन्म हुआ था स्वर्णनगर (KGF) में, पुष्पनगर (बैंगलोर) में संयम पाया।
अन्न नगर में कर प्रयाण, दक्षिण का गौरव खूब बढ़ाया।।
प्रथम बार दक्षिण की यात्रा, सबसे छोटी श्रमणी लावण्य।
पुनः करी जब दक्षिण यात्रा, अग्रगण्य थी श्रमणी लावण्य।।
दक्षिण भारत में जन्म लिया, प्रतिबोध मिला दक्षिण भारत में।
दक्षिण भारत में ग्रुप नियुक्ति, दक्षिण की पहली साध्वी क्षेत्रण भारत में।।
तन की छाया बन करवाई, 4-4 माईतों की सेवा।
पहुंचाई चित्त समाधि सबको, पा गुरु से सेवा का मेवा॥
हुई कसौटी जब-जब तेरी, निखरे बनकर असली कंचन।
गुरुवरत्रय, साध्वीप्रमुखात्रय, अग्रणीद्वय का जीत लिया मन।।
आगम मनीषी दुलहराजजी, स्वामी की तुम सगी भाणजी।
जब-जब जाते गुरुकुल में, तब शिक्षा फरमाते मामाजी।।
घटी अचानक अनहोनी घटना, स्वर्ग सिधारे लज्जावतीजी।
अग्रगण्य की करो वंदना, कृपा बरसाए ज्योतिचरण श्री।।
52 वर्षों पूर्व हुआ, पहला चौमासा चेन्नई में।
52 वर्षों बाद हुआ, अंतिम चौमासा भी चेन्नई में।।
साध्वी सोहनां जी चेन्नई पावस, पश्चात जाओ उत्तर कर्नाटक सिंधनूर में।
साध्वी लावण्य श्री चेन्नई पावस, पश्चात उत्तर कर्नाटक सिंधनूर में।
किंतु दोनों का चातुर्मास पूर्ण न हो पाया सिंधनूर में।।