अभातेयुप धार्मिक दृष्टि से तेरापंथ समाज की सेना के रूप में उभरती रहे : आचार्यश्री महाश्रमण
अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद का 58वां वार्षिक अधिवेशन परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी की पावन सन्निधि में प्रारंभ हुआ। युवा शक्ति को प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए युवामनीषी ने फरमाया- अभातेयुप पूरी तरह से सामाजिक संस्था नहीं है। यह धर्म एवं धार्मिकता से जुड़ी हुई संस्था है। कितने युवक और किशोर इससे जुड़े हुए हैं, जिससे संभव है कि वे कई गलत बातों से बच जाते होंगे। युवकों के पास परिवार का दायित्व होता है, व्यापार आदि भी चलाते हैं, और उसके साथ अभातेयुप की गतिविधियों के लिए अपनी सेवाएँ देते हैं, समय निकालते हैं, यह भी एक विशेष बात है। युवकों के पास जो शक्ति होती है, उसका अच्छा उपयोग हो तो समाज और देश के निर्माण में अच्छी सफलता भी प्राप्त की जा सकती है।
युवकों द्वारा ‘युवा वाहिनी’ के अंतर्गत रास्ते की सेवा का एक अच्छा क्रम है। रास्ते की सेवा से युवकों को साधु-साध्वियों की सेवा का मौका मिलता है, गोचरी आदि की जानकारी मिलती है, अच्छे संस्कार आ सकते हैं। ‘तेरापंथ टाइम्स’ तेरापंथ समाज के समाचारों को जानने का अच्छा माध्यम है, जिसके द्वारा तेरापंथ समाज के अनेक समाचार एवं अनेक जानकारियाँ समाज को एवं पढ़ने वालों को प्राप्त हो सकती हैं। अखबार के रूप में तेरापंथ समाज में केवल ‘तेरापंथ टाइम्स’ ही है, जिसमें समाज के साधु-साध्वियों, गुरुकुलवास की न्यूज़ आदि आती हैं। मासिक पत्रिका ‘युवादृष्टि’ भी है। ‘तेरापंथ टास्क फोर्स’ के अंतर्गत आपदा-विपदा में सेवा के लिए युवक आगे आते हैं और लौकिक सेवा के रूप में लोगों को बचाने का कार्य भी करते हैं। अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद धार्मिक दृष्टि से मानो एक अंश में तेरापंथ समाज की सेना के रूप में उभरती रहे और किशोर नई सेना के रूप में सामने आते रहें।
समय-समय पर समीक्षा भी होती रहनी चाहिए। किसी गतिविधि में कोई कमी लगे तो उसकी पूर्ति करें, कोई गलती हो तो उसको खोजें। क्या नई गतिविधि, नया कार्य शुरू किया जा सकता है और क्या छोड़ा जा सकता है, उस पर समीक्षापूर्ण चिंतन करें। संगठन में नया जोड़ने एवं अनपेक्षित पुराने को छोड़ने की प्रक्रिया चलती रहे तो विकास हो सकता है। यह अधिवेशन शुरू हुआ है। तेरापंथ युवक परिषद के सदस्यों में धार्मिक चेतना और भावना पुष्ट होती रहे। युवकों में अपनी शक्ति का अच्छे कार्यों में नियोजन करने का लक्ष्य रहे, अपने जीवन में ईमानदारी का मनोभाव रहे, सद्भावना रहे एवं अच्छे संस्कार भी पुष्ट होते रहें।
आत्मोद्धारक युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम की अमृत देशना फरमाते हुए कहा कि शब्द, रूप, रस, गन्ध व स्पर्श ये पांच इंद्रियों के पांच विषय हैं। इनके प्रति जिसका मोह हो जाता है, वह आदमी उन विषयों के सेवन में, उनके दलदल में निमग्न हो जाता है और उसमें डूब जाता है। विषय सारे मिले या ना मिले पर मानसिक स्तर पर वह उनमें डूबा रह सकता है।
अध्यात्म की साधना के लिए इन्द्रियों और विषयों का संयम आवश्यक होता है। इंद्रियों का संयम दो प्रकार से हो सकता है, इन्द्रियों का निरोध करना और इन्द्रिय विषयों में राग-द्वेष नहीं करना। इन्द्रियां ही आदमी को बाहर के जगत से जोड़ने वाली होती हैं। जो मनुष्य इन्द्रियों का निरोध कर लेता है, मानों इसका बाह्य जगत से सम्पर्क टूट-सा जाता है। बाहर से सम्पर्क तोड़कर मनुष्य जब भीतर की ओर जाता है तो वह साधना की ऊंचाई की ओर बढ़ सकता है। आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी सर्वेंद्रिय संयम का प्रयोग कराते थे। इंद्रियों में अवरोध डाल दें तो विषयों से दूर हो सकते हैं। ध्यान में भी हम इंद्रियों के प्रयोग का निरोध करते हैं।
दुनिया में रहते हुए भी राग-द्वेष मुक्त रहने का प्रयास करें, ज्ञाता द्रष्टा भाव रहे। शब्द कान में पड़े, उसके प्रति राग-द्वेष न हो। आंख से देखने के बाद भी राग-द्वेष न हो, भोजन किया, किन्तु उसके प्रति राग-द्वेष न हो। राग-द्वेष की रजें विषयों के साथ ना जुड़े, यह इंद्रिय संयम की साधना है। आसक्ति के कारण आदमी इंद्रिय विषयों का सेवन करता है, आत्मा का नुकसान तो करता ही है, शरीर का भी नुकसान करता है। अपनी आत्मा के कल्याण और जीवन को दुःख से मुक्त बनाने के लिए इन्द्रियों की साधना करने का प्रयास करना चाहिए। साधक साधना करता है तो राग-द्वेष मुक्त हो सकता है। चातुर्मास में अनेक तपस्याएं हो रही हैं, यह भी रसनेन्द्रिय का निरोध हो जाता है। भूख को सहना भी अच्छी साधना है। पारणे में भी राग-द्वेष मुक्त रहने का प्रयास हो। हमें इंद्रियों के प्रति निरोध और राग-द्वेष मुक्ति दोनों का यथायोग्य प्रयास करना चाहिए। मंगल प्रवचन के पश्चात आचार्य प्रवर ने मुनि गजसुकुमाल के आख्यान का वाचन किया। अनेक तपस्वियों ने श्रीमुख से तपस्या का प्रत्याख्यान किया।
अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के 58वें वार्षिक अधिवेशन के संदर्भ में अभातेयुप के राष्ट्रीय अध्यक्ष रमेश डागा ने अपने विचार व्यक्त करते हुए अभातेयुप के आयामों की विस्तृत जानकारी देते हुए प्रतिवेदन पूज्य प्रवर को निवेदित किया। अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि योगेशकुमारजी ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि यह गण गुणरत्नों की खान है। तेरापंथ युवक परिषद् आस्थाशील, श्रद्धाशील समर्पित कार्यकर्ताओं के निर्माण का कारखाना है। चाहे प्रसंग स्व साधना का हो, समाज हित का हो, राष्ट्रहित का हो, हर क्षेत्र में यह संगठन सदैव अपनी भूमिका निभाता है। भारत सरकार का विश्वास भी इस संगठन पर बढ़ा है।
बेंगलुरु दक्षिण के सांसद व भाजपा युवामोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या ने परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी को वंदन कर अपने वक्तव्य में कहा कि मेरा सौभाग्य है कि मुझे आपके दर्शन करने व आशीर्वाद प्राप्त करने का सुअवसर मिला है। भारत की आत्मा आध्यात्मिक परंपराओं से जुड़ी हुई हैं और इसमें साधु-संतों के आशीर्वाद और गुरु परंपरा का बड़ा महत्त्व है। भारत को हमेशा भारत बनाए रखने की जिम्मेदारी युवाओं की है। साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने युवकों को संबोधित करते हुए कहा कि युवावस्था में ऊर्जा, समय, और दृष्टिकोण (विजन) तीनों होते हैं, इसलिए यह प्रगति का सबसे महत्वपूर्ण समय है। युवक परिषद का उद्देश्य आध्यात्मिक दृष्टिकोण से सम्यक दर्शन, ज्ञान, चारित्र, और तप की आराधना के माध्यम से दुखों से मुक्ति प्राप्त करना है। परिषदें भिक्षु दर्शन प्रशिक्षण कार्यशाला, बारह व्रतों की कार्यशालाओं, और त्यागी थर्सडे जैसे लोकोत्तर कार्यक्रमों के साथ लौकिक कार्य भी करती है। हमारे युवक ज्ञान संपन्न बनें, संस्कार संपन्न बनें, तत्वज्ञान को समझने का प्रयास करें और ऐसे प्रबुद्ध युवक तैयार हो, जिनके बारे में कहा जा सके कि यह युवक जैन दर्शन, तेरापंथ दर्शन का ज्ञाता है। मंगल प्रवचन के उपरान्त अनिल बैद (गुडगांव) को अभातेयुप द्वारा आचार्य महाप्रज्ञ प्रतिभा पुरस्कार प्रदान किया गया। प्रशस्ति पत्र का वाचन अभातेयुप उपाध्यक्ष पवन माण्डोत ने किया। पुरस्कार प्राप्तकर्ता अनिल बैद ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद ने गीत का संगान किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया तथा पुरस्कार सम्मान समारोह कार्यक्रम का संचालन अभातेयुप के महामंत्री अमित नाहटा ने किया।