लोकोत्तम महावीर के सक्षम प्रतिनिधि महातपस्वी महाश्रमण की सन्निधि में पर्युषण पर्वाराधना महाशिविर का हुआ शुभारंभ
जैन शासन के प्रमुख पर्व महापर्व पर्वाधिराज पर्युषण का डायमंड सिटी सूरत में प्रवासरत श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमण जी की मंगल सन्निधि में भव्य एवं आध्यात्मिक रूप में शुभारंभ हुआ। इस महापर्व पर आचार्य श्री की मंगल देशना सुनने के लिए केवल सूरत ही नहीं देश के कोने-कोने से श्रद्धालुओं का आवागमन हुआ है।
वर्तमान युग के महावीर आचार्य श्री महाश्रमण जी ने अपनी अमृत देशना फरमाते हुए कहा कि जैन शासन के महानायक भगवान महावीर को लोकोत्तम कहा गया है। जैन शासन में साधना पद्धति, श्रावक-श्राविकाएं, संघ, यह सब भगवान महावीर के शासन के अंतर्गत है। जैन दर्शन आत्मवाद में विश्वास रखता है, इसमें आत्मा और शरीर को भिन्न-भिन्न माना गया है। एक मत में यह दोनों अलग नहीं एक ही हैं, मृत्यु के बाद कुछ नहीं रहता। दूसरा मत है कि आत्मा अलग, शरीर अलग, जैसे मिट्टी और सोना मिले होने पर भी दोनों का अपना-अपना अस्तित्व है। जैन धर्म में पुनर्जन्म भी मान्य है। जब तक मोक्ष नहीं मिल जाता, तब तक आत्मा नए-नए जन्म लेती है। पुनर्जन्म के सिद्धांत के साथ जैन दर्शन कर्मवाद से भी जुड़ा हुआ है।
भगवती संवत्सरी से पूर्व के सात दिन अपने आप में महत्वपूर्ण हैं। यह विशेष साधना का सुंदर उपक्रम है। पर्युषण के दौरान भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा और उनके संदेशों को जानने का प्रयास करते हैं। आज पर्युषण महापर्व के अंतर्गत प्रथम दिन 'खाद्य संयम दिवस' है। साधना की दृष्टि से खाने पर संयम करना अपने आप में बड़ी बात है। भोजन दो दृष्टि से संयमित किया जाता है- पहला स्वास्थ्य की दृष्टि से और दूसरा साधना की दृष्टि से। आज हमें साधना की दृष्टि से भोजन का संयम करना है। यदि शरीर स्वस्थ रहता है, तो साधना और सेवा कार्य भी अच्छे से संपादित किए जा सकते हैं। व्रत का पालन, विगय वर्जन, और ऊनोदरी अच्छे खाद्य संयम के उपक्रम हो सकते हैं। चतुर्दशी के दिन हाजरी का क्रम रहता है। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने हाजरी का वाचन करते हुए उपस्थित चारित्रात्माओं को अनेक प्रेरणाएं प्रदान की। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने जनता को खाद्य संयम दिवस के पर विशेष प्रेरणा प्रदान करने हुए कहा कि जैन साधना पद्धति के दो महत्वपूर्ण अंग हैं-संवर और निर्जरा। आगम सूत्रों में निर्जरा के बारह प्रकार बताए गए हैं। इनमें प्रारंभिक चार प्रकार आहार के साथ जुड़े हुए हैं। इनके अतिरिक्त भी जैन दर्शन के अंतर्गत आहार के बारे में जगह-जगह पर दिशा निर्देश मिलते हैं। भगवान महावीर ने मुनि मेघकुमार को निर्देश दिया- यतना पूर्वक खाओ, संयम पूर्वक खाओ। यह निर्देश सबके लिए अपने जीवन में अपनाने योग्य है। सब स्वस्थ बनना चाहते हैं, दीर्घायु बनना चाहते हैं, चिर युवा बनाना चाहते हैं, इसके लिए सबको आहार का संयम करना होगा। हमें हित और मित आहार पर ध्यान देना चाहिए।
पर्युषण महापर्व के महत्त्व को उजागर करते हुए मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने कहा कि तीन तरह के व्यक्ति होते हैं- सांसारिक राग-द्वेष में उलझने वाले, सांसारिक भोग विलास में रहते हुए भी अस्तित्व को थोड़ा सुरक्षित रखने वाले, सांसारिक प्रलोभनों में अपने आप को साधना में स्थिर रखने वाले। पर्युषण का अष्टान्हिक महाशिविर हमें तीसरे प्रकार का व्यक्ति बनने की प्रेरणा देने वाला है। हम भीतर की आंख से अपने आप को निहारने का प्रयास करें। साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने इस संदर्भ में गीत का संगान किया। साध्वी रश्मिप्रभाजी ने खाद्य संयम दिवस के संदर्भ में गीत का संगान किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।