शरीर स्वस्थ, चित्त प्रसन्न और मनोबल रहे मजबूत : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

शरीर स्वस्थ, चित्त प्रसन्न और मनोबल रहे मजबूत : आचार्यश्री महाश्रमण

पूज्यप्रवर आचार्य श्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम का अमृत पान कराते हुए कहा कि खाने-पीने और रहन-सहन में असंयम के कारण अस्वस्थता हो सकती है। यहां तक कि खान-पान में संयम होने पर भी व्यक्ति को तकलीफ हो सकती है। अगर कोई व्यक्ति स्वस्थ है, तो उसे इसका घमंड नहीं करना चाहिए। यह जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है कि स्वस्थ रहकर उसका सही उपयोग किया जाए। यदि बीमारी आ जाए, तो मानसिक समाधि कैसे बनी रहे? चित्त प्रसन्न, शांत और मनोबल अच्छा हो, तो हम स्वस्थ रह सकते हैं। बीमारी का आक्रमण होने पर, यदि मनोबल कमजोर हो, तो अस्वस्थता हावी हो सकती है। मनोबल की कमी से स्वस्थ व्यक्ति भी दुःखी हो सकता है। इसलिए, बीमारी के बावजूद चित्त को शांत और समाधिस्थ रखने का प्रयास करना चाहिए।
चारित्रात्माओं के लिए आचार्यप्रवर ने फरमाया कि यदि कोई बीमारी हो जाए, तो मनोबल और सहनशक्ति अच्छी होनी चाहिए। बीमार व्यक्ति की निष्कपट भाव से सेवा करना एक उत्तम कार्य है। उनकी रुग्णावस्था में प्रसन्न चित्त और मनोयोग से उनकी सेवा करना, अस्पताल में दिखाना जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि हो सकती है। आयारो में कहा गया है कि यदि कर्मों का योग और असातावेदनीय का उदय हो, तब भी मनोबल अच्छा रहे और बीमारी में चित्त शांत रहे। बीमारी कार्य में बाधक न बने। जो कष्ट उदय में आए हैं, उन्हें सहन करने का प्रयास करें और धर्म का लाभ लें।
एलोपैथिक दवाइयों के संदर्भ में आचार्यश्री ने कहा कि दवाइयों की मात्रा और प्रकार का ध्यान रखें। बिना डॉक्टर की सलाह के दवाइयां लेना सही नहीं है। इस प्रकार, बीमारी में भी समता, हिम्मत और मनोबल का भाव बनाए रखें। चारित्रात्माओं को कोई लापरवाही नहीं करनी चाहिए और जागरूक रहना चाहिए, ताकि तकलीफ कम से कम हो। शरीर की स्वस्थता, चित्त की प्रसन्नता और मनोबल मजबूत बने। तन-मन दोनों स्वस्थ और शांत, मजबूत रहें, यही मंगलकामना है। आचार्य प्रवर ने पर्युषण के दिनों में जप-तप और संयम की धर्माराधना करने की प्रेरणा दी। साध्वी रतनश्रीजी (डूंगरगढ़) के देवलोकगमन पर उनका संक्षिप्त परिचय देते हुए पूज्य प्रवर ने मध्यस्थ भावना स्वरूप चार लोगस्स का ध्यान करवाया। स्मृति सभा में साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी, मुख्य मुनि महावीर कुमारजी, मुनि ध्यानमूर्ति जी, साध्वी अखिलयशाजी, साध्वी मुक्तिश्रीजी ने अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। दिल्ली सभा के अध्यक्ष सुखराज सेठिया ने अपने विचार व्यक्त किए।
जयपुर से समागत नवरत्नमल बाफना ने अपनी पुस्तक ‘कामधेनु मां रतनाश्री’ का आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पण किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।