भिक्षु सिद्धांतों के व्याख्याकार थे जयाचार्य : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

भिक्षु सिद्धांतों के व्याख्याकार थे जयाचार्य : आचार्यश्री महाश्रमण

भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि। श्रीमद् जयाचार्य का महाप्रयाण दिवस। पूज्य जयाचार्य के परम्पर पट्टधर, महायोगी आचार्य श्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए कहा कि आयारो में कहा है - सब जीवों को जीवन प्रिय होता है। सामान्यतः कोई भी मरना नहीं चाहता। यह हमारी मनोवृत्ति है कि हम जीवन से प्रतिबद्ध रहते हैं। व्यक्ति को सोचना चाहिए कि जैसे मुझे जीवन प्रिय है, वैसे ही अन्य प्राणियों को भी जीवन प्रिय हो सकता है। मैं सभी जीवों को अपने समान समझूं। ऐसी स्थिति में जितना हिंसा से बच सकता हूं, उतना बचने का प्रयास करूं।
जैसे मैं कष्ट नहीं चाहता और सुख चाहता हूं, वैसे ही दूसरे भी यही चाहते हैं। यह अहिंसा से जुड़ा हुआ सूत्र है कि सबको जीवन प्रिय है। अहिंसा की साधना आत्मा के लिए होती है, ताकि आत्मा पर पाप-कर्म का बंध न हो। अपनी वजह से दूसरों को कोई कष्ट न हो, इस बात का ध्यान रखना चाहिए। अहिंसा की साधना साधुओं के लिए तो अनिवार्य होती ही है। सर्व-प्राणातिपात व्रत की साधना कितनी बड़ी अहिंसा की बात है। महाव्रतों की आराधना करना अत्यधिक ऊंची बात होती है।
आज भाद्रपद कृष्ण द्वादशी है, जो जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्म संघ के चतुर्थ आचार्य श्री जयाचार्य से जुड़ा हुआ दिन है। जयाचार्य के नाम के आगे श्रीमद् शब्द जोड़ा गया है। उनका संयम पर्याय अत्यधिक लंबा था। लगभग 78 वर्षों का उनका जीवनकाल था, जिसमें 68-69 वर्षों का संयम पर्याय रहा। यह उनके जीवन की विशेष संपदा थी। उनमें ज्ञान की जो चेतना थी, वह अद्वितीय थी।
श्रीमद् जयाचार्य ने अनेक आगमों पर राजस्थानी भाषा में जोड़ रचना की थी। भगवती सूत्र की जोड़ तो राजस्थानी भाषा में रचित विशेष ग्रंथ है। "भ्रम विध्वंसनम्" से तेरापंथ दर्शन को समझा जा सकता है। "प्रश्नोत्तर तत्वबोध" और "झीणी चर्चा" में कितनी गहरी तत्व-ज्ञान की बातें हैं। और भी अनेक ग्रंथ जयाचार्य की यशोगाथा गाने वाले हैं। वे एक आगम वेत्ता और तत्वज्ञानी थे। वे भिक्षु स्वामी के सिद्धांतों के व्याख्याकार थे। अनुशासन और विधि में भी वे अत्यधिक कुशल आचार्य थे। साध्वीप्रमुखा पद की स्थापना जयाचार्य की ही देन थी। वे ही महासती सरदारांजी को मुखिया के रूप में आगे लाए थे, जिसकी प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है। उन्होंने संघीयकरण की व्यवस्था भी लागू की थी।
जयाचार्य के समय से धर्म संघ का एक नया रूप बना। तेरापंथ महाग्रंथ का द्वितीय प्रकाशन श्रीमद् जयाचार्य ने किया। व्यवस्थाओं में भी उन्होंने कुछ नवीनीकरण किए। "गणपति सिखावण" उनका एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जो आचार्यों के लिए उपयुक्त है। आचार्य श्री तुलसी ने अपने गीत में लिखा है कि आचार्य भिक्षु द्वारा निर्मित तेरापंथ को जयाचार्य ने संवारा था। जयाचार्य का अपने पूर्वाचार्यों के प्रति भी गहरा सम्मान था। उनके जीवन का एक और महत्वपूर्ण पक्ष है - अध्यात्म और साधना। जीवन के अंत में उन्होंने विशेष साधनाएं की। विघ्न के समय भी उन्होंने अनेक गीतिकाओं की रचना की थी। युवाचार्य मघवा की उपस्थिति के कारण उन्हें साधना में सुविधा प्राप्त हुई थी।
जयाचार्य का जीवन एक आलोक स्तंभ के रूप में देखा जा सकता है। जयाचार्य ने जो अवदान हमारे धर्म संघ में दिए, वे हमारे लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। हम उनके प्रति आभारी हैं कि उन्होंने ऐसी सुदृढ़ व्यवस्था हमें दी। उन्होंने अनेक ग्रंथ और पंचम आचार्य के रूप में मघवा जैसे संत धर्म संघ को प्रदान किए। यह धर्म संघ का सौभाग्य था कि उसे इतना ज्ञानी और विशिष्ट श्रुतधर व्यक्तित्व प्राप्त हुआ। उन्होंने व्यवस्था को सबल बनाया। पूज्यप्रवर ने "जय हो कल्लु सुत जग में" गीत का सुमधुर संगान कराया। पूज्यवर के केशलोचन के उपलक्ष में चतुर्विध धर्म संघ ने निर्जरा में सहभागी बनने की कामना व्यक्त की, जिस पर पूज्यवर ने साधु-साध्वियों को एक घंटा आगम स्वाध्याय तथा श्रावक-श्राविका समाज को सात सामायिक की अलग से प्रेरणा प्रदान की।
साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभाजी ने कहा कि चतुर्थ आचार्य जयाचार्य का जीवन आचार्य भिक्षु के साथ जुड़ा हुआ है। जयाचार्य की जीवनकथा तेरापंथ और प्रज्ञा की जीवनकथा है। आचार्य भिक्षु के साथ उनका तादात्म्य भाव गहरा था। आचार्य भिक्षु को समझने के लिए जयाचार्य को समझना होगा और जयाचार्य को समझने के लिए आचार्य भिक्षु को समझना होगा। जयाचार्य का व्यक्तित्व अत्यधिक प्रभावशाली था। उनका आंतरिक व्यक्तित्व फौलादी था। मुख्यमुनि महावीरकुमारजी ने श्रीमद् जयाचार्य के प्रति श्रद्धाभाव में सुमधुर गीत "ये गाथा सच्चे योगी की, ये गाथा सिद्ध प्रयोगी की" का संगान किया। साध्वीवर्या संबुद्धयशाजी ने कहा कि समुद्र जैसी बुद्धि अथाह तत्व को ग्रहण करती है। श्रीमद् जयाचार्य के लिए "प्रज्ञा पुरुष" शब्द का प्रयोग हुआ है। उनकी बुद्धि समुद्र के समान गहरी और तत्व ग्रहण करने वाली थी।
बाल्यावस्था में ही उनकी बुद्धि प्रखर थी। "होनहार वीरवान के होत चिकने पात" कहावत उन पर सटीक बैठती है। उन्होंने अपनी तेजस्विता से तेरापंथ धर्म संघ को तेजस्वी बनाया। उनमें तार्किक बुद्धि के साथ-साथ उत्कृष्ट विनय भाव भी था। उनकी मेधा विलक्षण थी। ठाणे में पूर्व सांसद डॉ. संजीव गणेश नाईक, राजस्थान पत्रिका के संपादक शैलेंद्र तिवारी, टेक्सटाइल युवा ब्रिगेड के अध्यक्ष ललित शर्मा परम पूज्य की सन्निधि में पहुंचे। डॉ. संजीव नाईक ने अपनी भावनाएं अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।