सुसंस्कारों की अभिनव शाला है ज्ञानशाला

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सुसंस्कारों की अभिनव शाला है ज्ञानशाला

साध्वी मंजूयशा जी के सान्निध्य में तेरापंथ सभा की ओर से केंद्र के निर्देशानुसार ज्ञान शाला दिवस बड़े उत्साह पूर्वक मनाया गया। कार्यक्रम का प्रारंभ ज्ञानशाला के बच्चों द्वारा अर्हम्-अर्हम् की वंदना फले इस मधुर गीत द्वारा हुआ। ज्ञानशाला की मुख्य प्रशिक्षिका ने ज्ञानशाला परिवार की ओर से सभी अतिथियों का हार्दिक स्वागत किया। साध्वीश्री ने अपना उद्बोधन प्रदान करते हुए कहा कि जीवन की तीन अवस्थाएं हैं - बाल्यावस्था, यौवन अवस्था, वृद्धावस्था। जीवन निर्माण की शुरुआत बाल्यावस्था से होती है। माता-पिता आदि अभिभावक गण एवं स्कूल में गुरुजनों से संस्कार एवं शिक्षा प्राप्त होती है। ज्ञानशाला बच्चों में अच्छे संस्कारों के जागरण की शाला है।
उन्होंने आगे कहा कि बच्चे का जीवन कोरे कागज के समान होता हैं। बच्चों के जीवन उपवन को सरसब्ज बनाने के लिए अच्छे संस्कारों की खाद से अच्छा सिंचन मिलता है तभी भावी पीढ़ी का निर्माण होता है। साध्वीश्री जी ने उदाहरणों के माध्यम से बाल परिषद को पवित्र जीवन जीने की प्रेरणा देते हुए एक सुमधुर गीतिका प्रस्तुत की।
कार्यक्रम में 51 बच्चे एवं 17 प्रशिक्षिकाएं उपस्थित थी। इस अवसर पर साध्वी चिन्मयप्रभा जी, साध्वी इंदुप्रभाजी एवं साध्वी मानसप्रभाजी ने गीत एवं भाषण द्वारा अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ के सभा अध्यक्ष विश्वजीत कर्णावट, सकल जैन समाज के अध्यक्ष ईश्वर सिंह सामोता, ज्ञानार्थी नमन बापना, प्रशिक्षिकाओं ने गीत व भाषण द्वारा अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। ज्ञानशाला के बच्चों द्वारा ‘ज्ञानशाला योजना कैसे? क्यों? किस लिए?’ की महत्ता को एक सुंदर परिसंवाद द्वारा प्रस्तुति दी। ज्ञानशाला दिवस कार्यक्रम में लाल डागलिया, गणेश लाल बाफना एवं भगवती लाल चपलोत का पूरा-पूरा आर्थिक सहयोग रहा। रंजना कच्छारा ने आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन संयोजिका सीमा डागलिया ने किया।