स्वावलम्बी जीवन की प्रतिमान

स्वावलम्बी जीवन की प्रतिमान

परमश्रद्धेय आचार्यप्रवर के चैन्नै चातुर्मास में पूजयप्रवर की मंगलमय देशना सुन सपरिवार गुरू चरणों में समर्पित हो जाना, ऐसा अद्भुत इतिहास रचने वाली, दृढ़ मनोबली, स्वावलम्बी जीवन की प्रतिमान, तपस्या की तरणी में सवार होकर संयम जीवन को पार पहुंचाने वाली ‘साध्वी धैर्यप्रभा जी’ ने अल्पकालीन संयम पर्याय में ही अपना काम सिद्ध कर लिया। सध्वी धैर्यप्रभा जी की संयम के प्रति दृढ़ आस्था थी। उनका संयम जीवन सबको विस्मित करने वाला था। उनकी संयम चर्या विशेष संकल्पों से भावित थी। वे एक उत्साही साध्वी थी। किसी भी कार्य को करने में तत्पर रहती थी। रंगाई-सिलाई आदि कार्य सीखने की ललक रहती थी। वह धुन की पक्की थी। किसी भी कार्य का प्रारंभ करने पर जब तक वह पूर्ण नहीं हो जाता, विराम नहीं लेती थी। गृहित संकल्पों के पालन में दृढ़ता थी। अनेक संकल्पों में एक संकल्प था कि मांगी वस्तु नहीं लेना। केशलुंचन का समय- मांगी राख से नहीं करना। जब सहजतया उपलब्ध हुई तभी लुंचन कराया। उनमें सेवाभावना भी अच्छी थी। स्वरों में मधुरता थी, जब परिषद् में वह गाती तो सबको मुग्ध कर देती थी। धन्य उनकी दृढ़ता! धन्य उनका संयम जीवन! साध्वी धैर्यप्रभाजी का परम सौभग्य रहा कि पूज्यप्रवर के श्रीचरणों में 46 दिन की तपस्या में संयम यात्रा संपन्न करने का दुर्लभतम अवसर भी प्राप्त हुआ। दिवंगत आत्मा के प्रति आध्यात्मिक मंगल कामना, शीघ्र ही परमलक्ष्य को प्राप्त करें।