एक बेटी को नहीं

एक बेटी को नहीं

साध्वी धैर्यप्रभाजी के जीवन में अनेक विशेषताएं थी। वे बहुत सहनशील थी। वे दृढ़ सकंल्पी और मजबूत मनोबली थी। शरीरबल भले ही उनका कमजोर हो गया, किन्तु मनोबल कभी कमजोर नहीं हुआ। मैं उनकी समझदारी का एक प्रसंग बता रही हूं। उनकी दीक्षा परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी के चेन्नै पावस प्रवास के दौरान सन् 2018 में हुई। लगभग एक वर्ष से कुछ अधिक समय तक उनको गुरूकुलवास में रहने का अवसर मिला। सन् 2019 के बेंगलूरू चतुर्मास के बाद आचार्यप्रवर ने उनको बहिर्विहार में जाने का निर्देश प्रदान किया। इस सन्दर्भ में एक दिन साध्वी प्रमुखाश्री कनकप्रभाजी ने साध्वी धैर्यप्रभाजी से कहा- अब तुम न्यारा में जाने वाली हो। तुम्हारी दो-दो बेटियां धर्मसंघ में साधनारत है। तुम चाहो तो आचार्यप्रवर को निवेदन कर एक बेटी को तुम्हारे साथ भेज दें।
उन्होंने बहुत ही समझदारी के साथ निवेदन किया- साध्वी प्रमुखाश्रीजी ! अभी तो मैं पूर्ण स्वस्थ हूं, पूर्ण सक्षम हूं। इसलिए आप जहां और जिनके साथ भिजवाएंगे मैं अकेली चली जाऊंगी। मेरी दोनों बेटियों को आप अपनी सन्निधि में रखने की कृपा करें, किन्तु जब कभी मैं अक्षम हो जाऊं और आपश्री को निवेदन कराऊं, तब आप मेरी एक बेटी को नहीं, दोनो बेटियों को भिजवाने की कृपा कराना। साध्वी धैर्यप्रभाजी इस मायने में बड़ी भाग्यशाली साध्वी थी कि वे कभी अक्षम बनी ही नहीं। मात्र अन्तिम 8-10 दिनों को छोड़कर वे प्रायः सक्षम अवस्था में ही प्रयाण को प्राप्त हो गई। उनकी आत्मा के प्रति आध्यात्मिक विकास की मंगल कामना।