अल्प संयम पर्याय-बहुनिर्जरा
जीना एक बात है। साध्वी धैर्यप्रभा जी ने एक सफल गृहिणी का जीवन जिया तो हम यह भी कह सकते हैं कि उन्होंने अपने संयम जीवन को भी सफल बनाने का भरपूर प्रयास किया। साध्वी धैर्यप्रभाजी के छह साल के संयमी जीवन में उन्हें लगभग 3 साल गुरुकुलवास में रहने का सुअवसर प्राप्त हुआ। उनकी तीन विशेषताओं ने मुझे प्रभावित किया।
1.अल्पोपधि-
उनके पास अत्यन्त अल्प उपकरण थे। भौतिक वस्तुओं के प्रति उनका आकर्षण न के बराबर था। दीक्षा के बाद चाहे गर्मी हो या सर्दी उन्होंने गत्ते का उपयोग नहीं किया। चाहे मच्छरों की बारिश ही हो रही हो किंतु कभी मच्छरदानी का उपयोग नहीं किया। सर्दी के दिनों में ओढ़ने व बिछाने के लिए ऊनी वस्त्रों का उपयोग नहीं किया। उन्होंने उपाधि को ही अल्प नहीं किया बल्कि शरीर को भी अल्प बना लिया।
2. अल्पभाषी-
बहुभाषी से अल्पभाषी बनना एक बहुत बड़ी साधना है। साध्वी धैर्यप्रभा जी ने इस साधना को जीया है। उन्होंने अपने ढंग से तप के विभिन्न प्रयोग किए। जिस दिन किसी भी प्रकार की तपस्या होती उस दिन प्राय: मौन रहने का प्रयास करती। अंतिम समय में भी 4-6 दिन का तप किया। इस दौरान भी प्राय: मौन रही। केवल साध्वी प्रमुखा श्री व आचार्य श्री का ही आगार रखा था।
3. अल्पाहारी-
जो महिला गृहस्थावस्था में खाना खाने, बनाने व खिलाने की इतनी शौकीन थी। दीक्षा लेने के बाद हमने देखा उन्होंने अपनी रुचि, विचार, भावधारा सबकुछ बदल दिया। आहार में उनके लिए पसंद-नापसंद कुछ भी नहीं रहा। दीक्षा के कुछ समय बाद ही उन्होंने बियासणा के क्रम को अपना लिया। धीरे-धीरे तप के क्षेत्र में कदम बढ़ते गए।
एक समय ऐसा भी आया जब नीरस आहार को ही अपना लक्ष्य बना लिया। संयम पर्याय के इतने छोटे से काल में रसनेन्द्रिय पर इतना जबर्दस्त संयम अपने आप में एक विलक्षण बात लगती है।
साध्वी धैर्यप्रभाजी ने अल्प संयम पयार्य में बहुनिर्जरा के लक्ष्य को अपनाने का प्रयास किया।
तेरापंथ धर्मसंघ में जिन माता-पिता ने अपने तीन संतानों का दान दिया है उन्हें आचार्य प्रवर द्वारा महादानी का अलंकरण दिया जाता है। इस मायने में साध्वी धैर्यप्रभाजी व मुनिश्री अनिकेत कुमार जी भी इसी कोटी में आ सकते हैं। ऐसी महादानी मां साध्वी धैर्यप्रभा जी की स्मृति में यह मंगलकामना करते हैं आप जैसी संयम चेतना हम सबके भीतर भी अवतरित हो।