संयम से आत्मा को भावित करने का पर्व है पर्युषण

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संयम से आत्मा को भावित करने का पर्व है पर्युषण

युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी की सुशिष्या 'शासनश्री' साध्वी मानकुमारी जी ठाणा 7 के सान्निध्य में महापर्व पर्युषण का मंगल महामंत्रोच्चार के साथ आध्यात्मिक रूप में शुभारम्भ हुआ। साध्वीश्री ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा पर्वों की परंपरा भारतीय संस्कृति में ही नहीं विश्व की समग्र संस्कृति में अपना विशेष महत्व रखती है। पर्व का अर्थ है आनंद का अवतरण। पर्व का अर्थ है संस्कृति की साक्षात अवगति। पर्युषण महापर्व सब पर्वों का राजा होने के कारण पर्वाधिराज महापर्व कहलाता है। यहआध्यात्मिक पर्व है। इस आराधनाकाल में चारित्रात्माओं का ही नहीं, श्रावक-श्राविकाओं का भी विशेष सहभाग होता है। यों तो आदमी प्रतिदिन धर्माराधना करता है, किन्तु सामूहिक और समयानुकूल धर्माराधना का यह विशेष अवसर होता है। प्रथम दिन खाद्य संयम दिवस के रूप में समायोज्य है। भोजन करने के दौरान संयम रखना अति आवश्यक है। खाद्य संयम की प्राणशक्ति है अनासक्ति। अनासक्ति के साथ और स्वास्थ्य के अनुकूल भोजन हो तो अच्छा रह सकता है। इस अवसर पर खाद्य संयम गीत का संगान किया गया।
स्वाध्याय दिवस का शुभारंभ साध्वी कमलयशा जी व साध्वी चैत्यप्रभा जी के मंगलाचरण से हुआ। साध्वी मानकुमारी जी ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा निर्जरा के बारह भेदों में एक भेद स्वाध्याय है। स्वाध्याय को सभी धर्मों में महत्व दिया है। जैसे शरीर के लिए भोजन आवश्यक है वैसे ही आत्मा के लिए स्वाध्याय आवश्यक है। स्वाध्याय करते-करते व्यक्ति अपनी आत्मा को उज्ज्वल बना लेता है। स्वाध्याय के लिए तीन बातें आवश्यक हैं एकाग्रता, नियमितता व निर्विकारिता। साध्वी कमलयशा जी ने विषय की प्रस्तुति करते हुए स्वाध्याय की महत्ता बतायी। साध्वी स्नेहप्रभा जी ने भगवान सुमतिनाथ के जीवन पर प्रकाश डाला। सामायिक दिवस के अवसर पर अभिनव सामायिक का क्रम नियोजित किया गया।
वाणी संयम दिवस पर साध्वी कीर्तिरेखा जी ने भगवान महावीर की भव परंपरा बताते हुए 'नयसार' के भव में सम्यक्त्व प्राप्ति की सरस प्रस्तुति दी। साध्वी मानकुमारी जी ने कहा वाणी संयम जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। व्यक्ति को मुरली सम बनना चाहिए। बिना बुलाए ना बोले, बोले तो मधुर बोले व सरलता से बोले। साध्वी इन्दुयशा जी ने 'वाणी वीणा बने' विषय पर अपने विचार व्यक्त किए। साध्वी कुशलप्रज्ञा जी ने तीर्थंकर धर्मनाथ पर सारगर्भित प्रस्तुति दी।
अणुव्रत चेतना दिवस के अवसर पर साध्वीश्री ने कहा कि व्यक्ति के भीतर व्रत की चेतना जागे। व्रत हमारे जीवन को बुराइयों से उबार लेता है। एक छोटा सा नियम भी हमारे जीवन में आमूल चूल परिवर्तन कर देता है। कार्यक्रम का शुभारंभ महिला मंडल के मंगलाचरण से हुआ। साध्वी कीर्तिरेखा जी ने अणुव्रत के नियमों की व्याख्या करते हुए सभी को अणुव्रती बनने का आह्वान किया। साध्वी इन्दुयशा जी ने 'मानव की पहचान मानवता से' विषय पर प्रस्तुति दी। साध्वी चैत्यप्रभाजी व साध्वी कमलयशा जी ने सुमधुर गीत का संगान किया।
जप दिवस पर साध्वी मानकुमारी जी ने श्रावक समाज को संबोधित करते हुए कहा- सभी धर्मों में जप को महत्व दिया गया है। जप उच्चारणपूर्वक किया जाता है और मानसिक जप भी होता है। मंत्रों का महत्व बहुत है, साथ में बीजाक्षर जुड़ जाए तो वह मंत्र और अधिक शक्तिशाली बन जाता है। वही जप परिणाम देता है जो अर्थ, बोधपूर्वक किया जाता है। उसी जप में आनंद की अनुभूति होती है। साध्वी कीर्तिरेखा जी व साध्वी चैत्यप्रभा जी ने जप पर अपने विचार व्यक्त किए। मंजू देवी बाफना ने सुमधुर गीत का संगान किया। इससे पूर्व साध्वी कीर्तिरेखा जी ने भगवान महावीर की २७ भव परंपरा के अन्तर्गत विश्वभूति के निदान की व्याख्या की।
साध्वी मानकुमारीजी ने ध्यान दिवस पर संबोधित करते हुए कहा- ध्यान चित्त की एकाग्रता से है। ध्यान में व्यक्ति को संकल्प- विकल्पों से रहित होकर आत्मावलोकन करना होता है। ध्याता, ध्येय और ध्यान इन तीन शब्दों का सारगर्भित विश्लेषण करते हुए साध्वीश्री जी ने कहा ध्यान केवल आंख मूंदना नहीं, आत्मा रूपी खजाने को प्राप्त करना है। कार्यक्रम का शुभारंभ साध्वी कमलयशाजी व साध्वी चैत्यप्रभाजी द्वारा 'प्रेक्षा ध्यान में डुबकी लगा' गीत के मंगलाचरण से हुआ।
साध्वी स्नेहप्रभा जी ने 'ध्यान जीवन का आनंद' विषय पर सुन्दर अभिव्यक्ति दी। इस अवसर पर साध्वी कीर्तिरेखा जी ने भगवान महावीर की भव
परंपरा में 'त्रिपृष्ठ वासुदेव' के जीवन की सरस प्रस्तुति करते हुए भव परंपरा के बारे में बताया।
संवत्सरी महापर्व के सुअवसर पर साध्वी मानकुमारी जी ने उपस्थित धर्म परिषद् को संबोधित करते हुए कहा- संवत्सरी आत्मावलोकन का पर्व है, यह हमें भीतर झांकने की प्रेरणा देता है। राग-द्वेष की ग्रंथियों को तोड़, मैत्री मंदार का आनंद लें। हमें त्याग व संयम का पुरुषार्थ कर अपने भीतर जमी हुई वासनाओं को उखाड़ कर अपनी आत्मा का कल्याण करना है। संवत्सरी क्यों? कब? और कैसे मनाएं? विषय पर सारगर्भित विचार व्यक्त करते हुए शासनश्री साध्वीश्री ने संवत्सरी के महत्व को बताया। कार्यक्रम में साध्वी स्नेहप्रभा जी ने आगम वाणी का आस्वादन कराया। साध्वी इन्दुयशा जी ने भगवान महावीर के जन्मोत्सव से दीक्षोत्सव तक की सरस प्रस्तुति दी। साध्वी कीर्तिरेखा जी ने भगवान महावीर के साधना काल का रोमांचक वर्णन किया। साध्वी चैत्यप्रभा जी ने चंदनबाला की झांकी सुमधुर रागिनी में सुनाई। साध्वी स्नेहप्रभा जी ने प्रभावक आचार्य व साध्वी कमलयशा जी ने तेरापंथ के आचार्यों की यशस्वी परंपरा की सुन्दर प्रस्तुति दी। महिला मंडल ने सुमधुर गीत का संगान किया। संवत्सरी महापर्व पर अच्छी संख्या में उपवास, पौषध कर धार्मिक आराधना की गई।
क्षमापना दिवस कार्यक्रम का शुभारंभ साध्वीवृंद के मैत्रीगीत के साथ हुआ। इस अवसर पर साध्वी मानकुमारीजी ने कहा- हमने आठ दिन पर्युषण महापर्व की आराधना की। आठ दिन का निचोड़ है- क्षमापर्व। सरलमना होकर हमने राग-द्वेष को कितना कम किया है। किसी के साथ मनमुटाव यदि हुआ है तो आज के दिन खमतखामणा करके अपने मन को हल्का बना ले। आज के दिन खमतखामणा न करने का अर्थ है अपने सम्यक्त्व रूपी रत्न को खो देना।
साध्वी कुशलप्रज्ञा जी ने क्षमा पर्व पर अपने विचार रखते हुए सबके साथ मैत्री भाव रखने की प्रेरणा दी। श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा राजलदेसर के अध्यक्ष राजकुमार बिनायक ने विराजित सभी साध्वी वृंद से खमतखामणा करते हुए श्रावक समाज से सरलमना क्षमायाचना की। सभा के न्यासी पन्नालाल दुगड़, महिला मंडल मंत्री रीना बैद, युवक परिषद् अध्यक्ष मुकेश श्रीमाल ने क्षमा पर्व पर अपने सारगर्भित विचार व्यक्त किए। संचालन सभा के मंत्री कमल दुगड़ ने किया।