संयम से आत्मा को भावित करने का पर्व है पर्युषण

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संयम से आत्मा को भावित करने का पर्व है पर्युषण

सेवा केंद्र व्यवस्थापिका 'शासनश्री' साध्वी कुंथुश्रीजी ने पर्युषण महापर्व के प्रथम दिन उपस्थित श्रावक-श्राविका समाज को प्रेरणा देते हुए कहा कि मनुष्य को जीने के लिए खाना चाहिए न की खाने के लिए जीना चाहिए। खान-पान पर संयम अति आवश्यक है, स्वास्थ्य की दृष्टि से भी और आध्यात्मिक दृष्टि से भी। साध्वी सुमंगलाश्रीजी, साध्वी जीतयशा जी, साध्वी ललिताश्री जी और साध्वी सरसप्रभा जी ने खाद्य संयम दिवस पर भावपूर्ण अभिव्यक्ति दी। श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा द्वारा जैन विद्या कार्यशाला के बैनर का अनावरण कर पिछले वर्ष की परीक्षाओं के प्रमाण पत्र भी वितरित किए गए।
स्वाध्याय दिवस पर साध्वीश्री ने कहा कि पर्वाधिराज पर्युषण आत्मावलोकन का पर्व है, आत्मा के विषय में अनुप्रेक्षा, चिंतन-मनन करना स्वाध्याय है। स्वाध्याय करने से ज्ञान का विकास होता है, नए-नए रत्न प्राप्त होते हैं। स्वाध्याय से जहां ज्ञानावरणीय कर्म क्षीण होते हैं वही मानसिक संबल प्राप्त होता है। स्वाध्याय से हमारा दृष्टिकोण सकारात्मक होता है और भावों में पवित्रता आती है। अभातेयुप के निर्देशन में तेरापंथ युवक परिषद श्रीडूंगरगढ़ द्वारा अभिनव सामायिक का आयोजन किया गया। तेयुप अध्यक्ष मनीष नौलखा, पूर्व अध्यक्ष प्रदीप पुगलिया, सह मंत्री विवेक भंसाली ने विजय गीत द्वारा मंगलाचरण किया।
साध्वी श्री ने कहा- भगवान महावीर ने बताया सामायिक का अर्थ है समता की साधना, आत्मा में रहना और अपनी आत्मा में स्थिर होने का अभ्यास करना। सुख-दु:ख में, लाभ-हानि में, जीवन-मरण में, निंदा-प्रशंसा में, अनुकूल-विषम परिस्थितियों में, सम भाव से रहना, यही समता भाव सामायिक है। साध्वीश्री ने अत्यंत रोचक रूप से भगवान महावीर के जीवन वृतांत के अंतर्गत मरीचि के भव को बताते हुए अहंकार के स्वरूप को व्याख्यायित किया। साध्वी सुमंगलाश्री जी ने उत्तराध्ययन सूत्र का वाचन किया और अभिनव सामायिक का सुंदर प्रयोग त्रिपदी वंदना, जप, स्वाध्याय आदि से करवाया। साध्वी ऋजुप्रज्ञा जी और साध्वी सम्यक्त्वप्रभा जी ने सामायिक दिवस पर अपने सारगर्भित विचार प्रस्तुत किये। वाणी संयम की महत्ता बताते हुए साध्वी श्री ने कहा कि मौन सोना और बोलना चांदी है। मौन से ऊर्जा का संचार होता है। हर समय मौन करना संभव नहीं है, बोलना भी आवश्यक है। कब बोलें, कैसे बोलें, कितना बोलें इन सब का प्रशिक्षण अवश्य लें। साध्वीश्री ने भगवान महावीर का पूर्व भवों का चित्रण किया। साध्वी सरसप्रभा जी ने 'मधुर भाषी बनना होगा' गीत का सुमधुर संगान किया। साध्वी ललितरेखा जी और साध्वी सुमंगलाश्री जी ने वाणी संयम दिवस पर अपने सारगर्भित विचार रखे।
अणुव्रत चेतना दिवस कार्यक्रम की शुरुआत अणुव्रत गीत के संगान से साध्वी समयक्त्वप्रभा जी ने की। साध्वी सुमंगलाश्री जी ने आगम वाणी के वाचन से जन-जन को आप्लावित किया और भगवान ऋषभ देव के पूर्व भव पर प्रकाश डाला। साध्वी कुंथुश्रीजी ने बताया कि छोटे-छोटे नियमों से व्यक्ति संयम के पथ पर अग्रसर हो सकता है। इस अवसर पर साध्वी श्री जी ने उपस्थित जनमानस को अणुव्रत संकल्प स्वीकार करने की प्रेरणा दी। जप दिवस पर साध्वी श्री ने कहा कि जप साधना मार्ग का एक सोपान है। जप से ज्ञान, दर्शन व चारित्र की प्राप्ति होती है। साध्वी श्री ने कहा कि तन्मयता, एकाग्रता, विधि सहित जप करने से ऊर्जा प्राप्त होती है और मनोवांछित कार्य भी सिद्ध हो जाते हैं। इस अवसर पर साध्वी श्री ने भगवान पार्श्वनाथ के जीवन वृत्त को रोचक रूप से प्रस्तुत किया। साध्वी दीपयशाजी ने जप दिवस की महत्ता बताते हुए सुमधुर गीत प्रस्तुत किया। साध्वी पुनीतप्रभाजी ने अपने विचार रखे। साध्वी सुमंगलाश्री जी ने भगवान पार्श्वनाथ के पूर्व भवों का विस्तार से विवेचन किया।
ध्यान दिवस पर साध्वी कुंथुश्री जी ने कहा कि एक आलंबन पर चित्त को एकाग्र करना ध्यान है, आत्मा के द्वारा आत्मा को देखना ध्यान है। ध्यान के चार प्रकारों का विवेचन करते हुए साध्वी श्री जी ने कहा कि प्रथम दो ध्यान-आर्त्त व रौद्र ध्यान अप्रशस्त ध्यान हैं, धर्म व शुक्ल ध्यान प्रशस्त ध्यान हैं। प्रशस्त ध्यान से जीव सद्गति को प्राप्त करता है और अप्रशस्त ध्यान से दुर्गति प्राप्त होती है। ध्यान की एकाग्रता के लिए श्वास का आलंबन लिया जा सकता है। जिसकी श्वास प्रेक्षा सध जाती है उसका मन एकाग्र हो जाता है। प्रतिदिन ध्यान के प्रयोग की प्रेरणा के पश्चात पंचम आरे का विवेचन करते हुए साध्वीश्री ने भगवान महावीर के 19वें भव से 25वें भव तक की यात्रा करवाई। साध्वी सुमंगलाश्री जी ने उत्तराध्ययन सूत्र का वाचन कर आचार्य महाप्रज्ञ जी द्वारा रचित गीत 'आत्म साक्षात्कार प्रेक्षा ध्यान के द्वारा' का संगान किया। साध्वी सुलेखाश्री जी ने ध्यान दिवस की महत्ता पर अपने सारगर्भित विचार रखे।
संवत्सरी महापर्व के दिन साध्वी श्री ने कहा कि आज का दिन शलाका का दिन है, जैन इतिहास के अनुसार यह अहिंसा की प्रतिष्ठा का दिन है। यह अध्यात्म का शिरोमणि पर्व है, मैत्री की पावन गंगा का अवतरण है। यह पर्व मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा, साधना, धर्म आराधना, कषाय पर विजय का पर्व है। इस पर्व को मनाने की यही सार्थकता है कि हम सबके प्रति मैत्री का भाव रखें। साध्वी श्री ने आज के दिन को पूर्ण रूप से लौकिक कार्यों से निवृत्त होकर आध्यात्मिकता से मनाने की प्रेरणा दी। प्रवचन कार्यक्रम में भगवान महावीर के जन्म से लेकर दीक्षा और निर्वाण तक के जीवन चरित्र का वाचन किया गया।
क्षमापना दिवस- क्षमा याचना दिवस पर क्षमा रुपी अमृत से सिंचित धर्म परिषद को संबोधित करते हुए साध्वी श्री ने अपने उद्बोधन में कहा- क्षमा वीरों का आभूषण है। कायर व्यक्ति क्षमा की गरिमा से मंडित नहीं हो सकता। क्षमा वही कर सकता है जिसका हृदय विशाल हो, जिसमें सहजता हो, सरलता हो। साध्वी श्री ने सभी को प्रेरित करते हुए कहा - जिसके प्रति यत्किंचत मन में तनाव, मनमुटाव हो, उससे अंतःकरण से क्षमा याचना करें, क्षमा के आदान-प्रदान से मैत्री पर्व में हल्के, ऋजु बनें और कषायों का अल्पीकरण करें। साध्वीश्री ने सर्वप्रथम श्रद्धास्पद आचार्य प्रवर, श्रद्धेया साध्वी प्रमुखा श्री जी सहित पूरे धर्मसंघ से खमत खामणा किया।
तत्पश्चात सभी संस्थाओं के पदाधिकारियों, समस्त श्रावक समाज से हार्दिक से खमत खामणा किया। श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा के मंत्री प्रदीप पुगलिया ने सभी संस्थाओं के पदाधिकारी, सदस्यगणों, संपूर्ण श्रावक समाज, उपस्थित भाइयों-बहनों, संस्था के कर्मचारियों एवं संस्था को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग करने वाले सभी से बारंबार क्षमा याचना की। तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष मनीष नौलखा, महिला मंडल की मंत्री संगीता बोथरा ने भी उपस्थित महानुभावों से हार्दिक क्षमा याचना की एवं अपने विचार अभिव्यक्त किये।