मासखमण तप प्रत्याख्यान का आयोजन
जैन धर्म में तप को मंगल कहा गया है। तपस्या के द्वारा शरीर, मन, बुद्धि, आत्मा को मंगलमय बनाया जा सकता है। इंद्रियों का संयम तप की चाबी है। साहसी व्यक्ति ही तप का दीप जला सकता है। तपस्या कर्म निर्जरा का बहुत बड़ा साधन है। उपरोक्त उद्गार साध्वी काव्यलताजी ने 17 वर्षीय कन्या हितांशी के 32 की तपस्या के उपलक्ष में कहे। साध्वी श्री ने आगे कहा कि तपस्या कर हितांशी ने जिन शासन का मान बढ़ाया है, कुल पर कलश चढ़ाया है। साध्वी वृंद ने 'तपरी चुनरी ओढ़ हितांशी आई है' सुमधुर गीत से जनता को भाव विभोर कर दिया। साध्वी मधुस्मिताजी द्वारा प्रदत्त शुभकामना पत्रक का वाचन साध्वी सुरभिप्रभाजी ने किया। साध्वी राहतप्रभा जी ने अपनी संसारपक्षीय छोटी बहन हितांशी को ढेर सारी बधाई दी। सुनीता ध्रुव नाहर ने भी 8 की तपस्या का प्रत्याखान किया। टीपीएफ के सदस्यों ने मधुर गीत से मंगलाचरण प्रस्तुत किया। परिवार की ओर से रेशम लालवानी ने अपने उद्गार व्यक्त किए। कार्यक्रम का कुशल संचालन साध्वी ज्योतियशा जी ने किया।