सम्यक् ज्ञान के साथ सम्यक् आचरण भी है आवश्यक : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

सम्यक् ज्ञान के साथ सम्यक् आचरण भी है आवश्यक : आचार्यश्री महाश्रमण

अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का अंतिम और सातवां दिवस "जीवन विज्ञान दिवस" के रूप में मनाया गया। आज के कार्यक्रम में मूर्तिपूजक संप्रदाय से मुनि भव्यकीर्ति सागरसूरी जी सहित अन्य संतों का भी आगमन हुआ। अध्यात्म शक्ति के पुरोधा आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आध्यात्मिक अनुष्ठान संपन्न करवाया। इसके साथ ही अष्ट दिवसीय प्रेक्षाध्यान शिविर का समापन भी हुआ। अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने "आयारो आगम" की वाणी का रसास्वादन कराते हुए कहा कि जिस व्यक्ति में कोई कमी होती है, जो नीच स्तर का होता है, हल्का होता है, वह तुच्छ होता है। जिसके पास धन नहीं होता, वह गृहस्थ धन की दृष्टि से तुच्छ हो सकता है। जिस साधु में साधना की कमी होती है, वह साधु भी साधना की दृष्टि से तुच्छ हो सकता है। जो तीर्थंकरों की आज्ञा का पालन नहीं करता और संयमित जीवन नहीं जीता, वह साधु भी तुच्छता की श्रेणी में आ जाता है।
ज्ञानी होना एक बात है, और साधक होना दूसरी बात, पर ज्ञानी और साधक होना विशेष बात है। जो तुच्छ और आचारहीन होता है, वह अपनी बात कहने में भी ग्लानि का अनुभव करता है। जीवन में सम्यक् ज्ञान और सम्यक् आचरण दोनों का होना आवश्यक है। सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान, सम्यक् चारित्र और सम्यक् तप को मोक्ष का मार्ग बताया गया है।व्यक्ति ज्ञान से भावों को समझता है, दर्शन से श्रद्धा करता है, चारित्र से निग्रह करता है, और तप से शुद्धिकरण करता है। उमास्वाति द्वारा रचित "तत्त्वार्थसूत्र" में जैन सिद्धांतों का सार समाहित है। यह ज्ञान से परिपूर्ण है। त्यागी साधु की बातें लोग श्रद्धा और सम्मान के साथ स्वीकारते हैं। साधु के पांच महाव्रत अमूल्य हीरे हैं। भौतिक हीरों की इनके सामने कोई तुलना नहीं हो सकती। संसार की भौतिक वस्तुओं में फंसे रहने से संसार का चक्र चलता रहता है, जबकि महाव्रत रूपी हीरों से संसार का मार्ग समाप्त होता है, और आत्मा मोक्ष की ओर अग्रसर होती है।
हमारे जीवन में शरीर के बल का महत्व है, तो मनोबल का भी। हमारे तीन योग—मन, वाणी और शरीर—हमारे कर्मचारी हैं। दो हाथ और दो पैर, हमारे नौकर हैं, और हमें इनका सही उपयोग करना चाहिए। व्यक्ति को परावलंबी नहीं, बल्कि स्वावलंबी होना चाहिए।
आज अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का सातवां और अंतिम दिन है। गुरुदेव तुलसी ने 75 वर्ष पहले अणुव्रत आंदोलन शुरू किया था। आज "जीवन विज्ञान दिवस" है, जो विशेष रूप से शिक्षा जगत के लिए महत्वपूर्ण है। शिक्षा में ज्ञान के साथ संस्कारों का समावेश होना चाहिए। विद्यार्थी नशामुक्त रहें, और उनकी जीवनशैली संस्कारयुक्त हो। विद्यार्थियों में शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक विकास होना चाहिए। आई.क्यू. के साथ ई.क्यू. भी जरूरी है। विद्यार्थियों के विचार और भाव अच्छे हों, सद्विचार और सदाचार जीवन में आ जाएं।
आज के कार्यक्रम में कई विद्यार्थी भी उपस्थित थे। पूज्यवर ने सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के तीन संकल्पों को विद्यार्थियों को समझाकर उन्हें ग्रहण करवाए। आचार्य प्रवर ने विद्यार्थियों को महाप्राण ध्वनि का अभ्यास भी करवाया।
प्रेक्षाध्यान शिविर से सुनील गुलगुलिया, श्वेता पीपाड़ा और रेणु नाहटा ने अपनी अनुभूतियां साझा की। पूज्यवर ने आशीर्वचन देते हुए कहा कि प्रेक्षाध्यान साधना का एक विशेष अंग है। ध्यान हर क्रिया के साथ जुड़ना चाहिए, ताकि वह भाव क्रिया हो। राग और द्वेष से मुक्त रहकर मन की एकाग्रता साधी जाए। इसे अपने नियमित जीवन क्रम में शामिल करें। धर्मेंद्र बोथरा ने अपनी भावनाएं व्यक्त की। संजय बोथरा ने सप्त दिवसीय अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह की रिपोर्ट प्रस्तुत की। अणुव्रत समिति-सूरत के अध्यक्ष विमल लोढ़ा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। भगवान महावीर इण्टरनेशनल स्कूल के विद्यार्थियों ने अपनी विभिन्न प्रस्तुतियां दी। भगवान महावीर युनिवर्सिटी के संजय जैन तथा अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी के अध्यक्ष अविनाश नाहर ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। मुनि दिनेशकुमारजी ने कार्यक्रम का कुशल संचालन किया।