स्वस्थ, उदार और सहनशील हो मुखिया : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

स्वस्थ, उदार और सहनशील हो मुखिया : आचार्यश्री महाश्रमण

जिनशासन के कुशल प्रहरी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आगमवाणी की अमृतवर्षा करते हुए फरमाया कि जो शीत और उष्ण को सहन करता है वह निर्ग्रन्थ होता है। सामान्यतः ठंडक शीत होती है। सर्दी को सहन करना भी धर्म है, और गर्मी को सहन करना भी साधु का धर्म है। शीत का एक और अर्थ यह है कि वह अनुकूल परिस्थिति को दर्शाता है, जबकि उष्ण प्रतिकूल परिस्थिति को दर्शाता है। संत वह होता है जो शांत होता है। गुस्से के सन्दर्भ में व्यक्ति चार प्रकार का हो सकता है - उत्तम, मध्यम, अधम, और अधमाधम। उत्तम व्यक्ति को गुस्सा आता है और चला जाता है। जिसका गुस्सा थोड़ी देर रहता है, वह मध्यम है। जिस व्यक्ति को दिन-रात पर्यन्त गुस्सा रहता है वह अधम है और जीवनभर रहने वाला गुस्सा अधमाधम व्यक्ति के होता है। साधु को शांति का साधक होना चाहिए। गृहस्थ के लिए भी ज्यादा गुस्सा लाभकारी नहीं होता। 
मुखिया के लिए यह आवश्यक है कि उसका स्वभाव कैसा है, चाहे वह मुखिया परिवार, समाज, या राष्ट्र का हो। मुखिया स्वस्थ, उदार, और अनुकूलता-प्रतिकूलता को सहन करने वाला होना चाहिए, साथ ही उसे धैर्यवान और ईमानदार भी होना चाहिए। कार्यकर्ता में भी सहनशक्ति और समय का समर्पण करने की क्षमता होनी चाहिए। चतुर्मास की व्यवस्था के लिए एक व्यापक प्रबंधन तंत्र की आवश्यकता होती है। मुखिया को अवसर पर मौन रहना चाहिए। कहा जाये तो सहा भी जाना चाहिए। जयपुर का संघ पूज्यवर की उपासना में पहुंचा। पूज्यवर ने कृपा करते हुए फरमाया कि आज कार्तिक कृष्णा तृतीया है, जो कि पूज्य आचार्यश्री माणकगणी का महाप्रयाण दिवस है। माणकगणी के संदर्भ में पूज्यवर ने बताया कि वे जयपुर से थे, और पूज्य जयाचार्य का जन्म और महाप्रयाण भी जयपुर में हुआ था। पूज्यवर ने जयपुर की जनता को तृप्त करते हुए फ़रमाया - 'सन् 2030 में बृहत्तर जयपुर में यथासंभवतया कम से कम तीन महिनों का प्रवास करने का भाव है।' आचार्यश्री की इस घोषणा से जयपुरवासी आह्लादित हो कर जयघोष करने लगे। शांतिलाल गोलेछा ने अपने हृदयोद्गार व्यक्त किए। जयपुर से सम्बद्ध महिलाओं ने अपनी प्रस्तुति दी।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि सुख और दुःख का कर्ता कौन है, भोक्ता कौन है, देने वाला कौन है, और समाप्त करने वाला कौन है? ईश्वरवादी परम्परा में ईश्वर को कर्ता माना जाता है, जबकि आत्मवादी परम्परा आत्मा को ही सुख-दुःख का कर्ता और भोक्ता मानती है। सुख को लौकिक-लोकोत्तर, शाश्वत-अशाश्वत, भौतिक-आध्यात्मिक, और शारीरिक-मानसिक के रूप में बताया गया है। सुख के दस प्रकार भी बताए गए हैं। सबसे बड़ा सुख संतोष का है, और उससे भी बड़ा अनाबाध सुख मोक्ष का सुख होता है। प्रशम सुख पदार्थों के माध्यम से प्राप्त नहीं होता; यह कषायों के मंद पड़ने से मिलता है। किशोर मंडल द्वारा चौबीसी गीत का संगान हुआ। डीसा (गुजरात) के समाज ने सन् 2025 अक्षय तृतीया का लोगो अनावरण परम पूज्य की सन्निधि में किया। गुजरात के प्रतिपक्ष नेता अमित भाई चावड़ा ने अपनी भावना व्यक्त की। डीसा समाज ने गीत की प्रस्तुति दी। 1 से 49 तक की लड़ी करने वाले मुनि पारसकुमार ने अपनी भावनाएं व्यक्त की। जीवन काल के 106 वर्ष पूर्ण कर 107वें वर्ष में प्रवेश कर रही साध्वी बिदामांजी के प्रति पूज्यवर ने मंगलभावना व्यक्त की। गांधीधाम ज्ञानशाला की सुंदर प्रस्तुति हुई। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।