
अप्रमत्त, जागृत और मित्र होता है वीर : आचार्यश्री महाश्रमण
धर्म चक्रवर्ती आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि आगम में वीर की एक परिभाषा बताई गई है। वीर कौन होता है? आमतौर पर, संग्राम में निडरता से लड़ने वाले को या बहादुरी का कार्य करने वाले को वीर कहा जाता है। जब अध्यात्म और धर्म की बात आती है, तो वीर की परिभाषा अलग होती है। वीर वह होता है जो जागृत रहता है। जहां सुप्तता होती है, वहां खतरा हो सकता है। जागरूक रहने वाला अप्रमत्त होता है। प्रमाद को छोड़ देना एक बड़ी बहादुरी का काम होता है। जो न मद्य का नशा करता है, न विषय कषाय के सेवन में संलग्न होता है और न विकथा में जाता है, अनावश्यक नींद भी नहीं लेता है तो वह जागरूक व्यक्ति वीर होता है। सबल व्यक्ति प्रमाद से मुक्त रह सकता है। जीता वही है जो जागता है। प्रवचन श्रवण के समय निद्रा में न जाएं। पूज्यवर ने आचार्य भिक्षु और आसोजी के प्रसंग से समझाया कि जागरूक रहकर व्याख्यान का लाभ लेना चाहिए। जिस समय जो कार्य करना उचित हो, वही कार्य करना चाहिए। व्याख्यान को ध्यान से सुनना बेहतर है। अगर वक्ता की बात समझ में नहीं आती, तो नींद आ सकती है। जो अप्रमत है और मूर्च्छा-आसक्ति से मुक्त है, वही वीर है। जो अप्रमत है, वह निर्भय रह सकता है।
वीरता का एक और लक्षण बताया गया कि वीर वैर से उपरत रहता है। बात-बात में गुस्सा करना एक कमजोरी है, गुस्सा न करना वीरता है। किसी से वैर नहीं करें, सभी प्राणियों के साथ हमारी मित्रता होनी चाहिए। चाहे सामने वाला हमारी कितनी भी निन्दा करे, पर वैर न रखें। तर्कहीन या नास्तिक से भी वैर नहीं रखें। वैचारिक भेद हो सकते हैं, पर सभी को अपना अच्छा कार्य करना चाहिए। वैर है तो अवीर है, अवैर है तो वीर है। हमारी मैत्री भावना सामने वाले को अपना बना सकती है, अहिंसा की प्रतिष्ठा हो जाती है। गृहस्थ भी परिवार और समाज में रहते हुए किसी से वैर भाव न रखें। सभी के साथ मैत्री भाव रखें; यह धर्म और अध्यात्म की बात है। अच्छा करने वाले के साथ अच्छा व्यवहार रखना अच्छा है, लेकिन बुरा करने वाले के साथ भी अच्छा व्यवहार रखना विशिष्टता है। प्रवचन के पश्चात पूज्यवर ने बोधार्थी बहनों को कुछ प्रश्न पूछे और प्रेरणाएं प्रदान की।
साध्वीवर्या संबुद्धयशाजी ने कहा कि मन साहसी, भयंकर और दुष्ट घोड़े की तरह दौड़ने वाला होता है। मन की गति सबसे तेज होती है। मन का सुख और दुःख के साथ संबंध होता है। मन की अपेक्षा से जीव तीन प्रकार के होते हैं - असंज्ञी, संज्ञी, और नो संज्ञी नो असंज्ञी। चतुरिन्द्रिय तक के जीव असंज्ञी होते हैं; उनमें मन नहीं होता। पंचेन्द्रिय जीव असंज्ञी और संज्ञी दोनों हो सकते हैं। वीतराग जीव नो संज्ञी नो असंज्ञी होते हैं। मन के तीन कार्य होते हैं - चिंतन, स्मृति, और कल्पना। संसार में सुख-दुःख साथ-साथ रह सकते हैं। असंज्ञी जीवों का दुःख अल्प समय के लिए होता है, जबकि संज्ञी मनुष्य का दुःख लम्बे समय तक रह सकता है। मन का विकास वरदान है, पर कभी-कभी यह अभिशाप भी बन सकता है। रचनात्मक और सकारात्मक सोच रहे तो मन का विकास वरदान बना रहता है।
अमृतवाणी के मंचीय कार्यक्रम में मंत्री अशोक पारख एवं निवर्तमान अध्यक्ष रूपचन्द दुगड़ ने अपनी भावनाएं व्यक्त की। नवनिर्वाचित अध्यक्ष ललित दुगड़ ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए अपनी टीम की घोषणा की। अमृतवाणी द्वारा आचार्यश्री तुलसी व आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की विडियो क्लिप प्रस्तुत की गई। आचार्यश्री ने नवनिर्वाचित टीम को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। सारिका नाहटा ने अपनी पुस्तक ‘ज्ञानकुंज’ को पूज्य चरणों में लोकार्पित किया। खेड़ब्रह्मा (गुजरात) से पटेल समाज के अनेक व्यक्ति पूज्यवर की पावन सन्निधि में पहुंचे। बसंत भाई पटेल ने अपनी भावनाएं व्यक्त की। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।