जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्म संघ की सबसे वयोवृद्ध साध्वी सुदीर्घजीवी 'शासनश्री' साध्वी बिदामाजी का 107वें वर्ष में प्रवेश
तेरापंथ भवन कालू में साध्वी उज्जवलरेखा जी के सान्निध्य में सुदीर्घजीवी 'शासनश्री' साध्वी बिदामाजी के 107वें जन्म दिवस एवं संयम पर्याय के 84वें वर्ष प्रारंभ पर तप अनुष्ठान संपन्न हुआ। कार्यक्रम का प्रारंभ साध्वीश्री द्वारा नमस्कार महामंत्र से हुआ। साध्वीश्री ने कहा साध्वी बिदामाजी महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमण जी के युग का एक कीर्तिमान है। कीर्तिमानों की श्रृंखला में यह भी कड़ी जुड़ी हुई है। सुदीर्घजीवी 'शासनश्री' साध्वी बिदामाजी आज 107वें वर्ष में प्रवेश कर रही हैं, दिनांक 25 अक्टूबर को संयम पर्याय के 84वें वर्ष में प्रवेश कर लेंगे। साध्वी बिदामाजी दृढ मनोबल की धनी हैं। उम्र के इस पड़ाव में भी अपनी साधना के प्रति पूर्ण जागरुक हैं। ध्रुव योगों के प्रति सजग हैं। खाद्य संयम, मौन, स्वाध्याय आदि नियमित रूप से चलते हैं। कभी-कभी दर्शनार्थियों का तांता सा लगा रहता है, आने वालों को जिकारा देना, मंगल पाठ सुनाना, कुछ नियम दिलाना आदि क्रियाएं भी चलती रहती हैं।
लगभग 14 वर्ष की उम्र में ही आपका विवाह हो गया था। विवाह के छह माह पश्चात ही आपका जीवन साथी महामारी की चपेट में काल कवलित हो गया। उन्हीं दिनों में महामनस्वी अष्टम आचार्य कालूगणी का पीपली (मेवाड़) ग्राम में पदार्पण हुआ। भाग्योदय से सेवा उपासना का सौभाग्य पाकर आपका जीवन धन्य हो गया। कालूगणी की पावन प्रेरणा पाकर आपका मन वैराग्य रस से अप्लावित हो गया। आपने पंचवर्षीय जेठूती भीखीकुमारी को वैराग्य रस से भावित किया। विक्रम संवत 1998 कार्तिक कृष्ण नवमी को काकी जेठूती दोनों की दीक्षा गणाधिपति गुरूदेव श्री तुलसी के कर कमलों से राजलदेसर में संपन्न हुई।
यह इनकी पुण्यवता है कि इस नंदनवन जैसे भैक्षव शासन में दीक्षित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और आचार्य श्री महाश्रमण के युग में कीर्तिमानों की श्रृंखला में जुड़कर धन्य धन्य हो गई। इस युग की यह सबसे बड़ी बात है किसी भी प्रकार की औषधि का सेवन नहीं करना। बीमारी तो इनके शरीर में भी आती है पर इनका संकल्प बल बहुत मजबूत है। ये सहज, सरल, कर्मठ एवं सेवाभावी साध्वी हैं। सहिष्णुता, मिलनसारिता आपके नैसर्गिक गुण हैं। स्वाध्याय प्रियता, मधुरभाषिता, वाक् संयम, दृढ़ संकल्प आपके जीवन के अनुस्यूत गुण हैं। गुरु दृष्टि की आराधना आपके जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य रहा है। जीवन के ग्यारहवें दशक में चलते हुए भी आपकी ओजस्विता भीतरी शक्तियों और साधना के तपोबल को उजागर कर रही है। 98 वर्षों की उम्र तक आपने ग्रामानुग्राम विहरण किया है। 84 वर्षों की वय तक पाद विहार किया है। 98 वर्षों के पश्चात कालू धाम में स्थिर वास किया है। यहां पर हमें नौवां वर्ष चल रहा है फिर भी लोगों में इनके व्यक्तित्व के प्रति आकर्षण दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। कालू की धरा पर मां काली का ऐतिहासिक मंदिर है। मां काली के दर्शनार्थ आने वाले यात्रीगण भी इस युग के आठवें अजूबे को देखने आते रहते हैं। मातृ स्वरूप साध्वी बिदामाजी के दर्शन करके अहोभाव प्रकट करते हैं। उम्र के इस पड़ाव में भी आप प्रतिमाह 5 उपवास करती हैं, कभी-कभी बेला, तेला, चोला, पंचोला भी करती हैं। पूज्यप्रवर अपने मुखारविंद से कई बार आपका नामोल्लेख करवाने की कृपा करवाते हैं। आज के दिन आपके संयम साधना की मंगल कामना करती हुई मैं यही कहना चाहती हूं कि आप स्वस्थ रहें, आपकी आत्मा का उर्ध्वारोहण होता रहे, आप अपनी लक्षित मंजिल को प्राप्त करें।
साध्वी वृंद ने का सामूहिक संगान किया। युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी द्वारा साध्वी बिदामाजी के लिए फरमाए गए आशीर्वचनों को सुनाया गया। साध्वी स्मितप्रभाजी ने साध्वीप्रमुखाश्री के संदेश का वाचन किया। सुदीर्घजीवी शासनश्री साध्वी बिदामाजी के 107 वें जन्म प्रवेश पर 135 एकासन हुए। महिला मंडल, कन्या मंडल, नाथूलाल चावत, पूनम चंद मांडोत, प्रेमचंद चावत, सभा अध्यक्ष बुद्धमल लोढ़ा, पड़िहारा महिला मंडल ने गीतिका एवं वक्तव्य के माध्यम से अपनी भावनाएं व्यक्त की।