जीवन के लिए जितना श्वास जरूरी है, उतना ही ध्यान

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जीवन के लिए जितना श्वास जरूरी है, उतना ही ध्यान

तेरापंथ भवन में साध्वी उदितयशाजी के सान्निध्य में 50वें प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष के शुभारंभ के अवसर पर साध्वी उदितयशाजी ने ध्यान की प्राचीनता की व्याख्या करते हुए कहा कि ध्यान की गहराई में जाने वालों को कभी समस्या दु:खी नहीं कर सकती। जीवन के लिए जितना श्वास जरूरी है, उतना ही ध्यान जरूरी है। ध्यानी व्यक्ति अभाव में भी दु:खी नहीं होता, क्योंकि उसकी ऊर्जा का ऊर्ध्वारोहण हो जाता है। ज्योति का ध्यान करने वाला अंधकार को दूर भगा देता है। ज्ञान की चाबी हमें आचार्य श्री महाप्रज्ञजी ने प्रदान की है, जिससे हम आनंद का ताला खोल सकते हैं।
साध्वी संगीतप्रभाजी ने 'आत्म साक्षात्कार प्रेक्षाध्यान के द्वारा' गीत का संगान कर कहा कि पूर्वजन्मों की विशिष्ट साधना के अपने चेतसिक अनुभवों को कई वर्षों तक कसौटी पर कसने के बाद एक अनुभूत पद्धति प्रेक्षाध्यान का आविष्कार करने वाले आचार्य महाप्रज्ञ एक विशिष्ट योगी थे। साध्वी भव्ययशाजी ने 'आनन्दो मे वर्षति-वर्षति' भावना से साधकों को भावित किया। सभा मंत्री विनोद छाजेड़ ने आचार्य श्री महाश्रमण जी के प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष के उपलक्ष में प्रदत्त संदेश का वाचन किया। प्रेक्षा फाउंडेशन व प्रेक्षा इंटरनेशनल से जुड़ी प्रेक्षाध्यान प्रशिक्षिका रेणु कोठारी ने प्रेक्षा ध्यान शिविर एवं संबंधित ऐप की जानकारी दी। कार्यक्रम का संचालन साध्वी संगीतप्रभाजी ने किया।