महावीर निर्वाणोत्सव पर उनके प्रतिनिधि ने दिखलाई राग-द्वेष को छिन्न कर आत्मदर्शी बनने की राह : आचार्यश्री महाश्रमण
कार्तिक कृष्ण अमावस्या, भगवान महावीर का 2551वां निर्वाण दिवस। तीर्थंकर के प्रतिनिधि, जन-जन के भाग्य विधाता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आर्हत वाणी की व्याख्या करते हुए फरमाया कि 'आयारो' आगम में एक शब्द आया है - 'निष्कर्मदर्शी'। प्राणी कर्म यानी प्रवृत्ति करता है। वह मन, वाणी, और शरीर से प्रवृत्ति करता है। मन योग, वचन योग और काय योग - यह योगत्रयी है। जो प्रवृत्तिमान है, वह सकर्मा है। चौदहवें गुणस्थान में व्यक्ति अकर्मा बन जाता है। यह अयोगी अवस्था है, जिसमें प्रवृत्ति नहीं होती। परंतु चार कर्मों के संदर्भ में बात करें तो वह सकर्मा भी होता है।
मोक्ष को प्राप्त हो जाने वाली आत्मा पूर्णतया अकर्मा हो जाती है। अकर्मा और निष्कर्मा बनने के लिए राग-द्वेष का छिन्न-नाश आवश्यक होता है। आज कार्तिकी अमावस्या है, यह तिथि एक ऐसी आत्मा के साथ जुड़ी है जिसने इस दिन परमात्मा पद को प्राप्त किया था। भगवान महावीर का निर्वाण दिवस है; वे आज सिद्ध बने थे। सिद्धात्मा बनने के लिए कितनी घाटियों को पार करना होता है। भगवान महावीर के पूर्व भवों को देखें तो कितनी साधना, कितने कर्मों का अर्जन, सातवें नरक तक की गति आदि भी हुई। अंत में तीर्थंकर नाम गोत्र का बंध कर लिया और वे मोक्ष को भी प्राप्त हुए। जिसने तीर्थंकर नाम गोत्र का बंधन कर लिया, उसका तीर्थंकर बनना भी निश्चित है। आज की तिथि गौतम स्वामी के साथ भी जुड़ी हुई है। भगवान महावीर और गौतम स्वामी का चिरकाल से संबंध रहा है। वासुदेव त्रिपृष्ठ के सारथी के रूप में भी गौतम स्वामी की आत्मा रही है।
इंद्रभूति गौतम ने भगवान से कितने ही प्रश्न किए हैं; इसका उल्लेख आगमों में मिलता है। गणधर गौतम स्वामी भगवान के अंतेवासी रहे थे। आज की तिथि चार अघाति कर्मों के क्षय की तिथि है और चार घाति कर्मों के क्षय की भी तिथि है। भगवान का 2550वां निर्वाण दिवस संपन्न हो रहा है। भगवान की देशना राग-द्वेष को जीतने की साधना है। पुरुष संयम और तप के द्वारा राग-द्वेष को छिन्न कर आत्मदर्शी बनता है। भगवान महावीर ने राग-द्वेष छिन्न करने की साधना की और परम पद को प्राप्त किया।
अध्यात्म का एक सूर्य जो दुनिया में था, आज की रात में अदृश्य हो गया। अंधेरा है तो दीपक भी अपना काम कर सकता है। दीपकों ने थोड़ा-थोड़ा प्रकाश किया, जो बाहरी प्रकाश है। अध्यात्म और केवल ज्ञान का जो प्रकाश है, वह विशिष्ट आंतरिक और आध्यात्मिक प्रकाश होता है। दुनिया में महापुरुष आते हैं, तो लोगों में चाह जागृत हो जाती है; वे राह भी दिखा देते हैं और फिर अंततः अलविदा कह जाते हैं। आज की तिथि विदाई और मंगल भावना की तिथि है। पावापुरी में हस्तिपाल राजा की रथशाला में प्रभु ने निर्वाण को प्राप्त किया था। जो स्थान भी महापुरुषों से जुड़ जाते हैं, उनका नाम हो जाता है।
हम जैन शासन के अंतर्गत भगवान महावीर की परंपरा में आचार्य भिक्षु के भैक्षव शासन, तेरापंथ शासन में हैं। हम भगवान महावीर की आत्मा की अभिवंदना करें। राग-द्वेष का छेदन करने की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करते रहें। बहुश्रुत परिषद के सदस्य मुनि उदितकुमारजी के जन्मदिवस के संदर्भ में पूज्य प्रवर ने फ़रमाया कि आप भगवान महावीर के साथ जुड़े हुए हैं। आज आप 65वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। मुनिश्री ने धर्म संघ की सेवा के साथ-साथ औरों की भी खूब सेवा की है। अपनी साधना भी आगे बढ़ाते रहें। पूज्यप्रवर द्वारा तेले की तपस्या का प्रत्याख्यान करवाया गया। कार्यक्रम का संचालन मुनि कीर्तिकुमारजी ने किया।