संयोग और वियोग में बनाए रखें मानसिक संतुलन : आचार्यश्री महाश्रमण
महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी ने जनमेदिनी को शांति का संदेश देते हुए फरमाया कि आयारो आगम में कहा गया है कि आदमी के जीवन में कभी अरति का प्रसंग आ सकता है, तो कभी आनंद की स्थिति भी उपस्थित हो सकती है। अरति कभी साधु के जीवन में भी आ सकती है। अरति का अर्थ है - व्यक्ति किसी वस्तु की चाह रखता है, लेकिन वह उसे प्राप्त नहीं होती, या प्राप्त होने के बाद उसका वियोग हो जाता है। यह दुःख का भाव है, जिसे अरति का भाव माना जाता है।
इसके विपरीत, प्रिय या इष्ट व्यक्तियों और वस्तुओं का संयोग होने पर खुशी का भाव उत्पन्न होता है, जिसे आनंद कहा जा सकता है। आनंद दो प्रकार का होता है: 1. एक आनंद वह है, जो अपनी साधना से, भीतर से प्राप्त होता है। यह आध्यात्मिक और पवित्र आनंद होता है। 2. दूसरा आनंद वह है, जो पदार्थों के संयोग से मिलता है। इसे बाह्य आनंद कहा जाता है। साधु के जीवन में बाह्य आनंद भी आ सकता है। मनोनुकूल वस्तु से खुशी का भाव उत्पन्न हो सकता है, और प्रतिकूल वस्तु से दुःख का भाव भी। ऐसी स्थिति में भी अरति का ग्रहण नहीं करना चाहिए। गृहस्थ अपने सांसारिक कार्यों में सलंग्न रहते हैं। इन संदर्भों में कभी मन के अनुकूल या प्रतिकूल स्थितियां आ सकती हैं, लेकिन उनमें मानसिक संतुलन बनाए रखना चाहिए। जो दूसरों के लिए कार्य करता है, वह सच्चा कार्यकर्ता होता है।
कार्यकर्ता के सामने कठिनाइयां भी आ सकती हैं, लेकिन उसे शांति बनाए रखनी चाहिए। उसे सहनशील और विनम्र रहना चाहिए। परंतु समयानुसार उचित बात कहना भी आवश्यक होता है। सहनशीलता से सफलता प्राप्त होती है। साधु को संयम और अनुशासन बनाए रखना चाहिए। हंसी-मजाक में भी विवेक रहना चाहिए। साधु को प्रमाद से बचना चाहिए और मन, वचन, और काय का संयम रखना चाहिए। यह आत्मानुशासन का प्रतीक है। अणुव्रत लेखक पुरस्कार पूज्यवर ने आशीर्वचन में कहा कि अणुव्रत किसी धर्म विशेष की बात नहीं करता। यह मानव जीवन को श्रेष्ठ बनाने का मार्ग है। जीवन में अहिंसा और संयम के भाव आने चाहिए। एक अच्छा लेखक वह है, जिसकी रचनाएं सोचने पर मजबूर करें। लेखन में मौलिकता और श्रेष्ठता होनी चाहिए। साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभाजी ने कहा कि जैसे तालाब के किनारे हर कोई व्यक्ति आ सकता है, वैसे ही अणुव्रत को पूरी मानव जाति अपना सकती है। गुरुदेव तुलसी ने अणुव्रत को व्यापक स्वरूप दिया। अणुव्रत मानव जाति को एक सूत्र में बांधने वाला है। इसके छोटे-छोटे नियम व्यक्ति के जीवन में रूपांतरण ला सकते हैं।
पद्मश्री कुमारपाल भाई देसाई को अणुविभा द्वारा वर्ष 2024 का 'अणुव्रत लेखक पुरस्कार' प्रदान किया गया। कुमारपाल भाई देसाई ने कहा कि अणुव्रत अनिष्ट का विनाश और नए इष्ट का निर्माण करता है। उन्होंने कहा कि भारत को अध्यात्म गुरु अणुव्रत के माध्यम से ही बनाया जा सकता है। सघन साधना शिविर के समापन पर आयोजित कार्यक्रम में मुख्य वक्ताओं ने शिविर की उपयोगिता बताई, शिविरार्थियों ने अपने अनुभव साझा किए और समूह गीत प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।