समता की साधना और आत्मविकास द्वारा प्राप्त हो सकती है चित्त की प्रसन्नता : आचार्यश्री महाश्रमण
अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि आयारो आगम में कहा गया है - चित्त की प्रसन्नता जीवन की एक उत्कृष्ट स्थिति होती है। व्यक्ति को शांति में रहना चाहिए और शांति में जीना चाहिए। यह शांति और चित्त की प्रसन्नता कैसे प्राप्त हो सकती है? इसे समता की साधना करके और आत्मविकास द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। जीवन में अनुकूलता-प्रतिकूलता, लाभ-अलाभ, सुख-दुःख जैसी स्थितियां आ सकती हैं। यदि व्यक्ति सुख में अधिक आनंदित होता है, तो कठिन परिस्थितियों में उसे गहरी उदासी हो सकती है। इन दोनों अवस्थाओं में जितनी अधिक समानता होगी, उतना ही बेहतर रहेगा। जब व्यक्ति के चारों ओर अनुकूलता होती है, तो यह उसके पुण्य का उदय दर्शाती है। हालांकि, पुण्य धीरे-धीरे समाप्त हो सकता है। ऐसे में यह विचार करना आवश्यक है कि क्या हमने भविष्य के लिए कुछ संचय किया है या नहीं?
आचार्यों ने कहा है कि यदि व्यक्ति के पास संपत्ति, धन, प्रतिष्ठा और अनुकूलता है, तो भी मन में समता का भाव रहना चाहिए। प्रतिकूल परिस्थितियों में भी यही भाव बनाए रखना चाहिए। समय हमेशा एक समान नहीं रहता; जीवन में उतार-चढ़ाव आते हैं। यदि समता का भाव बना रहे, तो चित्त में प्रसन्नता भी बनी रह सकती है। अनित्य स्थितियों का घमंड नहीं करना चाहिए। ज्ञान, शक्ति, दान, और त्याग का भी अहंकार नहीं करना चाहिए।
हमारे जीवन की अवधि हमारे नियंत्रण में नहीं हो सकती, लेकिन जीवन को कैसे जीना है, यह हमारे हाथ में होता है। परोपकार पुण्य का कारण बनता है, जबकि दूसरों को दुःख देना पाप का। धार्मिक परोपकार करें और निर्जरा की साधना करें। यदि पुण्य बंध होता है, तो वह मुक्ति की ओर ले जाता है। हमें पुण्य की इच्छा नहीं करनी चाहिए, बल्कि संवर और निर्जरा की साधना पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। योग्य व्यक्ति को यदि पद मिलता है, तो पद की प्रतिष्ठा होती है। धर्मसंघ में अधिक पद नहीं होते। हमारे धर्म संघ में प्रवर्तक या उपाध्याय जैसे पद आज तक नहीं बनाए गए हैं। पद के योग्य व्यक्ति को तैयार होना चाहिए।
अणुव्रत अधिवेशन
अणुविभा द्वारा 75वां अणुव्रत अधिवेशन पूज्य सन्निधि ने आयोजित किया गया। इस अवसर पर गीत की प्रस्तुति दी गई। पूज्यवर को प्रतिवेदन समर्पित किया गया। अणुविभा के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि मननकुमारजी ने अपनी भावनाएं व्यक्त की। राष्ट्रीय अध्यक्ष अविनाश नाहर ने भी अपने विचार रखे। के. एल. जैन को अणुव्रत गौरव से सम्मानित किया गया, उन्होंने इस विषय में अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमारजी ने किया। प्रेक्षा इंटरनेशनल के नवनिर्वाचित चेयरमैन अरविंद संचेती ने भी अपनी भावना व्यक्त की।