
हंस-हंस कर बांधे कर्म रोने पर भी नहीं छूटते : आचार्यश्री महाश्रमण
भैक्षव गण के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि आयारो आगम में कहा गया है—आदमी साधना करे। कोई साधु बनकर साधना करता है, तो कोई गृहस्थ जीवन में यथा संभव साधना करता है। प्रश्न हो सकता है कि यह साधना क्यों की जाए? इसका उत्तर यह है कि अतीत में जीव ने बहुत पाप कर्म किए हैं। उनमें तारतम्य हो सकता है। बंधे हुए कर्मों को तोड़कर क्षय करना है। तपस्या और साधना के माध्यम से यह संभव है। भगवान महावीर ने भी साढ़े बारह वर्षों तक साधना की थी। अनाहार की तपस्या की, उपसर्गों का सामना किया, और ध्यान में लीन रहे। यह सब पूर्ववर्ती कर्मों को काटने के लिए ही किया गया था। हंस-हंस कर कर्म बांध लिए जाते हैं, जो रोने पर भी नहीं छूटते। 'राजा राणा छत्रपति हाथिन के असवार। मरना सबको एक दिन अपनी-अपनी बार।'
मौत इतनी निष्पक्ष है कि किसी को छोड़ती नहीं। मौत ईमानदारी का एक उदाहरण है—चाहे तीर्थंकर हों, चक्रवर्ती राजा हो, या साधारण आदमी। यह सबके लिए समान और निर्विकल्प नियम है।
आदमी को सोचना चाहिए कि वह यहां स्थायी नहीं है, वह राही है। जीव ने बहुत पाप कर्म किए हैं। अब साधना करके उन पाप कर्मों का प्रक्षालन करने का प्रयास करना चाहिए। तीर्थंकर मार्गदर्शन देने वाले होते हैं, पर पुरुषार्थ तो हमें ही करना पड़ेगा। धर्म जबरदस्ती नहीं कराया जा सकता। यदि स्वयं की भावना से धर्म करें तो उसका महत्व है। अपनी समता में रहना और दूसरों को संयम में रखना कठिन हो सकता है। कर्म को तोड़ने के लिए धर्म और अध्यात्म की साधना आवश्यक है।
प्रतिक्रिया न करें। प्रतिक्रिया-विरक्ति की साधना करें। हर स्थिति में समता रखना ही साधना है। संस्कार निर्माण शिविर भी चल रहा है। साथ ही सघन साधना शिविर भी संचालित हो रहा है। मुमुक्षु भाई-बहनें इन शिविरों में भाग ले रहे हैं। ये शिविर अध्यात्म का मार्ग बताने और प्रेरणा देने वाले हो सकते हैं। साधुपन तो आजीवन साधना का शिविर है। इस संयम शिविर में भर्ती होना एक बड़ी बात है। इसके शिविरार्थी धन्य हो जाते हैं। इस शिविर का समापन मृत्यु के साथ अंतिम श्वास के साथ होता है। संवर-निर्जरा की साधना के माध्यम से हम कर्म-मुक्ति की ओर बढ़ सकते हैं।
जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित साहित्य, 'आचार्य तुलसी का समाज दर्शन' (लेखिका : समणी डॉ. हिमप्रज्ञा जी), 'तेरापंथ का यशस्वी साध्वी समाज भाग-6' और 'संयम की राही' (लेखिका : साध्वी कल्पलता जी), 'वाव का पहला पुण्य - साध्वी भाग्यवतीजी' (लेखिका : डॉ. साध्वी योगक्षेमप्रभाजी) को पूज्यवर को समर्पित किया गया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।
अभातेयुप के निर्देशन में जैन तेरापंथ न्यूज के सप्तम राष्ट्रीय प्रतिनिधि सम्मेलन का मंचीय कार्यक्रम आयोजित हुआ। राष्ट्रीय अध्यक्ष रमेश डागा एवं संपादक पवन फूलफगर ने अपनी भावना व्यक्त की। और प्रगति प्रतिवेदन पूज्यवर को समर्पित किया। पूज्यवर ने आशीर्वचन प्रदान किया। आचार्यश्री ने इस संदर्भ में आशीष प्रदान करते हुए कहा कि अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के तत्त्वावधान में जैन तेरापंथ न्यूज कार्य करने वाला एक उपक्रम है। आज सोशियल मीडिया का बहुत उपयोग किया जाता होगा। कितना जल्दी संवाद संप्रेषण किया जाना, वैज्ञानिक युग की देन है। खबर में प्रमाणिक हो और खबर को प्रसारित करने में विवेक हो। प्रमाणिकता तो मिडिया के बहुत आवश्यक है।
जेटीएन से जुड़े कार्यकर्ताओं में नशामुक्तता रहे, धर्म की साधना करते रहें। आज तक के संवाददाता संजयसिंह राठौड़, एबीपी न्यूज के संवाददाता धनराज वागले तथा गुजरात गार्डियन के मनोज मिस्त्री ने आचार्यश्री के दर्शन कर अशीर्वाद प्राप्त किया। सम्मेलन कार्यक्रम का संचालन अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के महामंत्री अमित नाहटा ने किया।