धर्म है उत्कृष्ट मंगल

स्वाध्याय

धर्म है उत्कृष्ट मंगल

एक बार एक व्यक्ति उनकी दुकान पर कपड़ा खरीदने आया तो उसने उसको कपड़ा फाड़कर दे दिया और दाम ले लिये। जिस भाव से कपड़ा दिया गया था वह भाव दुकान के अनुकूल नहीं पड़ता था। रूपचन्दजी ने जब मुनीम से यह पूछा तो उसने बताया कि काफी देर तक समझाने पर भी जब वह ठीक भाव में लेने के लिए तैयार नहीं हुआ तो मैंने उसी के कहे हुए भाव पर कपड़ा फाड़ दिया किन्तु फाड़ने में लगभग दो गज कपड़ा बचा लिया अतः पड़ता बैठ जाएगा। रूपचन्दजी ने तत्काल एक आदमी को दौड़ाया और उस ग्राहक को वापस बुलवाया। उन्होंने उसके दो गज कपड़े की पूर्ति तो की ही, साथ ही पूर्वकृत भूल की क्षमा-याचना भी की। उसके जाते ही उन्होंने मुनीम को भी अपना हिसाब लेकर दुकान छोड़ने को कह दिया। श्रमण प्रतिक्रमण की अचौर्य भावना की निम्नांकित पंक्तियां मननीय हैं-
प्रामाणिकता की भावना से मेरा चित्त भावित रहे।
आज्ञा, अनुशासन और मर्यादा की भावना से मेरा चित्त भावित रहे।
अपने संविभाग से अधिक न लूं, इस भावना से मेरा चित्त भावित रहे।
अपने दायित्व के प्रति जागरूक रहूं, इस भावना से मेरा चित्त भावित रहे।
सिन्दूर प्रकर (सूक्ति मुक्तावली) एक संस्कृत भाषा का पद्यात्मक ग्रन्थ है। उसमें संस्कृत भाषा के सुन्दर प्रयोगों और कल्याणकारी शिक्षाओं से भरे-पूरे श्लोक हैं। अचौर्य का गुणवर्णन करने वाली उस ग्रन्थ की श्लोक चतुष्टयी मननीय है। उसका एक शलोक इस प्रकार है-
तमभिलषति सिद्विस्तं वृणीते समृद्धि।
स्तमभिसरति कीर्ति र्मुञ्चते तं भवार्तिः।
स्पृहयति सुगतिस्तं नेक्षते दुर्गतिस्तम्।
परिहरति विपत्तं यो न गहात्यदत्तम्।।
मनुष्य अदत्त का ग्रहण नहीं करता है। उसे सिद्धि चाहती है, समृद्धि उसका वरण करती है, कीर्ति उसके पास जाती है, जन्म-मरण का दुःख उसे मुक्त कर देता है, उसको सुगति पसन्द करती है, दुर्गति उसे देखती ही नहीं है, विपत्ति उससे दूर रहती है। प्रामाणिक व्यक्ति के लिए मिलावट, चोरी की वस्तु लेना, राजनिषिद्ध वस्तु का आयात-निर्यात, असली के बदले नकली माल बेचना, कूटतोल-माप व रिश्वत ग्रहण जैसे कार्य त्याज्य होते हैं।
वि. सं. १७४० में गुजरात सौराष्ट्र में भयानक दुर्भिक्ष पड़ा। पशु, पक्षी और मानव सभी तड़प रहे थे। राजा ने यज्ञ कराए, पर लाभ नहीं हुआ। एक व्यक्ति ने राजा को सलाह दी 'यदि व्यापारी गोकुल भाई संकल्प करे तो वर्षा हो सकती है।' राजा स्वयं उसके पास गया और राज्य की विकट स्थिति की ओर उसका ध्यान आकृष्ट करते हुए कोई उपाय करने के लिए उससे अनुरोध किया। व्यापारी ने प्रयास करने की भावना व्यक्त कर राजा को आश्वस्त किया। व्यापारी एकाग्रमना हो, प्रबल इच्छा शक्ति का प्रयोग करते हुए अपने हाथ में स्थित तराजू को आकाश की ओर ऊँचा करते हुए बोला 'देवता और लोकपाल साक्षी हैं, यदि मैंने इस तराजू से कम या अधिक न तोला हो, यदि तराजू सच्चा हो तो देवराज इन्द्र वर्षा करे।'
व्यापारी की बात पूरी होते ही आकाश में बादल घिर आए। शाम होते-होते बादलों ने सौराष्ट्र की भूमि पर बरसना शुरू कर दिया। हो सकता है व्यापारी की प्रामाणिकता से प्रभावित हो देव शक्ति ने वर्षा को हो। 'ठाणं' सूत्र में अल्पवृष्टि के तीन कारण बतलाए गए हैं। उनमें एक है - 'देव, नाग, यक्ष या भूत सम्यग् प्रकार से आराधित न होने पर उस देश में समुत्थित, वर्षा में परिणत तथा बरसने ही वाले मेघों का उनके द्वारा अन्य देश में संहरण होने से।' ठाणं में महावृष्टि होने के भी तीन कारण बतलाए गए हैं। उनमें एक है -'देव, नाग, यक्ष या भूत सम्यग् प्रकार से आराधित होने पर अन्यत्र समुत्थित वर्षा में परिणत तथा बरसने ही वाले मेघों का उनके द्वारा उस देश में संहरण होने से।'