रमणीय बने हैं और रमणीय बनकर ही रहें : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

रमणीय बने हैं और रमणीय बनकर ही रहें : आचार्यश्री महाश्रमण

महान यायावर आचार्यश्री महाश्रमण जी के सन् 2024 के सूरत चतुर्मास का अन्तिम दिवसीय प्रवास और समग्र सूरत वासियों द्वारा मंगलभावना अभिव्यक्ति का प्रसंग। महातपस्वी परम पूज्यवर ने जनमेदिनी को पावन प्रेरणा प्रदान कराते हुए फरमाया- हमारी दुनिया में दो तत्व हैं। एक है आत्मा यानि जीव और दूसरा तत्व है अजीव। पच्चीस बोल में 21वां बोल है- राशि दो - जीव राशि, अजीव राशि। यह सबसे छोटा बोल है, परन्तु इस छोटे से बोल में सारी दुनिया समाविष्ट हो गई कि जीव और अजीव के सिवाय हमारी दुनिया कुछ भी नहीं है। हमारे जीवन में भी दो तत्वों का योग है-जीव और अजीव या आत्मा और शरीर। एक सिद्धान्त यह रहा है- कि जीव अलग है, शरीर अलग है। दोनों का अस्तित्व अलग है, इसे भेद विज्ञान का सिद्धान्त माना जा सकता है। दूसरा सिद्धान्त यह रहा कि जीव और शरीर अलग नहीं एक ही है। दोनों मान्यताएं एक दूसरे से विरूद्ध है। अन्य जीव अन्य शरीर वाद आस्तिकवाद की मान्यता है तो तद्-जीव-तद् शरीरवाद नास्तिकवाद की मान्यता है। हमारी धरती पर आस्तिकवाद की धारा है तो कोई नास्तिक विचारधारा वाला भी मिल सकता है। नास्तिकवाद भी एक दर्शन है। छः दर्शनों में यह चार्वाकवाद का नास्तिक दर्शन है। अध्यात्म की धारा का सारा तंत्र आस्तिकवाद के आधार पर मुख्यतया टिका हुआ है। नास्तिकवाद भौतिकता पर टिका हुआ है। जहां आत्मा को शाश्वत माना गया है वहां अध्यात्म है। जहां आत्मा नाम की चीज ही नहीं वहां अध्यात्म की कोई उपयोगिता नहीं है।
आज कार्तिक शुक्ला पूर्णिमा इस चतुर्मास का अन्तिम दिन है। पूज्य प्रवर ने कुमार श्रमण केशी और राजा प्रदेशी के घटनाक्रम को समझाते हुए फरमाया कि कुमार श्रमण केशी ने राजा प्रदेशी को नास्तिक से आस्तिक बना दिया। राजा व्रत स्वीकार कर रमणीय बन गया। आत्मा अलग और शरीर अलग इस सिद्धान्त को राजा प्रदेशी ने समझ लिया था। आप लोग मुझे कुमार श्रमण केशी की परंपरा से मान लें और आप लोगों को राजा प्रदेशी की तरह मान लेते हैं तो सूरत के लोगों ने जो भी त्याग, नियम, व्रत लिए हैं, उनमें दृढ़ रहें। हमारे जाते ही उन नियमों को तोड़ नहीं दें। रमणीय बने हैं और रमणीय बनकर ही रहें। आपके जीवन में धर्म बना रहे। मेरा संदेश है कि मैं भी रमणीय बना रहूं और आप लोग गृहस्थ जीवन में नियमों के अनुसार रमणीय बने रहना। आपके चित्त में खूब समाधि रहे। जितनी धार्मिक-आध्यात्मिक सेवा बन सके उसका लक्ष्य रहे। सूरत में खूब धार्मिक भावना बनी रहे। आज हमारा ये विदाई का, मंगल भावना का, इस बार के चतुर्मास का अन्तिम प्रवचन है। सभी से मेरी खमत-खामणा है। आप लोग आध्यात्मिक सुख में रहते हुए धर्म ध्यान करते रहें। जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित भगवई भाष्य खंड आठ पूज्यवर को समर्पित कर लोकार्पित किया गया। मुनि अभिजीत कुमार जी ने भगवई भाष्य खंड आठ के विषय में अभिव्यक्ति दी। पूज्यवर के प्रति अनेक लोगों ने मंगल भावनाएं अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।