मार्ग सेवा यहां महान
हाल ही में आचार्य प्रवर की सेवा उपासना में जाने का अवसर मिला। उनके पवित्र आभा मंडल, करुणामयी दृष्टि और आशीर्वाद से नव ऊर्जा का संचार हुआ। पूज्य प्रवर के आशीर्वाद एवं अभातेयुप पर्यवेक्षक मुनि श्री योगेशकुमार जी तथा मुनि श्री नयकुमार जी के मार्ग दर्शन से संघीय समाचारों के मुखपत्र 'अखिल भारतीय तेरापंथ टाइम्स' के कार्यकारी सम्पादकीय दायित्व का एक वर्ष पूर्ण हुआ। इस एक वर्ष में बहुत कुछ जानने और सीखने का अवसर प्राप्त हुआ। आदरणीय अध्यक्ष श्री रमेश डागा एवं पूर्व सम्पादक श्री दिनेश मरोठी के सुझावों से किंचित कार्य करने का प्रयास किया है। मेरा प्रयास है कि आने वाले समय में इसे और अधिक प्रभावी बनाया जाए।
इस बार जब पूज्य प्रवर की सेवा में उपस्थित हुआ तब मार्ग में साध्वियों के विभिन्न सिंघाड़ों को विहार करते देखा, पर एक को भी बिना किसी श्रावक के चलते नहीं देखा। मर्यादा महोत्सव व्यवस्था समिति भुज के अंतर्गत भुज एवं नजदीकी क्षेत्रों के श्रावक-श्राविकाओं ने दायित्व हस्तांतरण के तुरंत बाद ही सेवा का अच्छा उदाहरण प्रस्तुत किया है।
चातुर्मास काल का समय पूर्ण हुआ और देश विदेश में प्रवासित सैकड़ों साधु-साध्वियों ने गुरु आज्ञा अनुसार विहार चर्या प्रारंभ कर दी। वीतराग भगवान की वाणी को शिरोधार्य कर, तिन्नाणं तारयाणं के लक्ष्य के साथ चारित्रात्माएं जन कल्याण के लिए विहार करते हैं। इसमें उन्हें स्वयं तो निर्जरा का लाभ मिलता ही है, श्रावक-श्राविकाओं को भी दर्शन, प्रवचन, शय्यातर, बारहवां व्रत पूर्ण करने, रास्ते की सेवा आदि का लाभ सहज प्राप्त हो जाता है।
अक्सर जयनाद किया जाता है -
तेरापंथ की क्या पहचान - एक गुरु और एक विधान।
तेरापंथ की क्या पहचान - धर्म अहिंसा त्याग प्रधान।
इसी के साथ शायद यह भी कहा जा सकता है -
तेरापंथ की क्या पहचान - मार्ग सेवा यहां महान।
प्रायः तेरापंथ सभा के निर्देशन में तेरापंथ युवक परिषद्, तेरापंथ महिला मंडल एवं अन्य सहयोगी संस्थाएं विहार सेवा में अपनी शक्ति नियोजित करते हैं। पैदल विहार में अधिकांशतः युवक परिषद् के सदस्य श्वेत वस्त्र धारियों के साथ-साथ चलते नजर आते हैं। अन्य जैन धर्माचार्य भी हमारे धर्म संघ की रास्ते की सेवा से प्रेरणा लेने का यदा-कदा उल्लेख भी करते हैं। यह रास्ते की सेवा हमारे धर्मसंघ की एक पहचान है। देश-विदेश में कहीं भी प्रायः विहार के समय तेरापंथ धर्म संघ के साधु-साध्वियां अकेले नजर नहीं आएंगे, चाहे वे आचार्य हो, पदासीन चारित्रात्मा हो, गुरुकुलवासी या बहिर्विहारी हो, दीक्षा पर्याय में ज्येष्ठ हो या नव दीक्षित साधु-साध्वी। छोटा था तब सिखाया गया था कि साधु-साध्वी आएं तो उन्हें लेने सामने जाना चाहिए, प्रस्थान करें तो कुछ दूरी तक उन्हें पहुंचाने भी जाना चाहिएं। ये संस्कार युवक परिषद् और महिला मंडल में तो दिख जाते हैं, पर ये संस्कार धर्म संघ के हर श्रावक-श्राविका में आए और आगे से आगे पीढ़ी दर पीढ़ी संक्रांत होते रहें यह काम्य है।
अभिभावक GenNext में इन संस्कारों का बीजारोपण करे। जब कहीं चारित्रात्माओं के दर्शन सेवा के लिए जाएं और यदि संभव हो तो अपने पारिवारिक सदस्यों, विशेषकर बच्चों को अवश्य ले जाएं। इससे उनके भीतर भी संस्कार पुष्ट होंगें। गोचरी, साधु चर्या, श्रावक चर्या, सामायिक, भावना भाना आदि अनेक विषयों की जानकारी हमारी आने वाली पीढ़ी को भी हो, तभी हम अपने कर्तव्य का सम्यक निर्वहन कर पाएंगे। आइए, हम सभी अपने स्तर पर चारित्रात्माओं की मार्ग सेवा को प्राथमिकता दें और धर्मसंघ की इस उज्ज्वल परंपरा को सुदृढ़ करें।- संपादक