संयम और साधना की यात्रा है अंतर्यात्रा :आचार्यश्री महाश्रमण
जन-जन के नारायण, आचार्य श्री महाश्रमणजी पोरगांव के श्रीनारायण ग्लोबल स्कूल में पधारे। पूज्यवर ने अपने पावन प्रवचन में अंतर्यात्रा और बाह्ययात्रा के गहरे महत्व को समझाते हुए कहा कि हमारी यात्राएँ विभिन्न नामों से चलती हैं—कभी अहिंसा यात्रा, कभी अणुव्रत यात्रा, और कभी बिना किसी नाम के भी। आचार्यश्री ने बताया कि यात्रा दो प्रकार की होती है—अंतर्यात्रा और बाह्ययात्रा। अंतर्यात्रा आत्मा के भीतर की यात्रा है। प्रेक्षाध्यान पद्धति का दूसरा चरण अंतर्यात्रा का ही एक प्रयोग है। प्रतिक्रमण में 'खमासमणो' का 'जत्ता' शब्द अंतर्यात्रा का परिचायक है। यह संयम और साधना की यात्रा है।
बहिर्यात्रा तो भले ही सक्षम साधु या व्यक्ति करते हैं किन्तु अंतर्यात्रा को तो कोई अक्षम साधु भी कर सकता है। बाह्ययात्रा में पदयात्रा और ग्रामानुग्राम यात्रा सम्मिलित होती है। बाह्ययात्रा के साथ अंतर्यात्रा को भी जीवनभर अपनाया जा सकता है। बाह्ययात्रा में विश्राम लिया जा सकता है, लेकिन अंतर्यात्रा, जो अध्यात्म और धर्म के उद्देश्य से की जाती है, जीवनभर निरंतर चलने वाली यात्रा है।
पूज्यवर ने अपने प्रवचन में नशामुक्ति के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि नशे का सेवन करने से चित्त भ्रमित हो सकता है, पापाचार की ओर झुकाव हो सकता है और व्यक्ति के वर्तमान जीवन और अगले जन्म में भी दुर्गति हो सकती है।
पूज्यवर ने कहा कि आजकल मोबाइल फोन भी एक प्रकार का नशा बन गया है। बच्चों में भी मोबाइल का अत्यधिक प्रभाव देखा जा रहा है। मोबाइल एक सीमा तक उपयोगी है तो उससे अधिक की स्थिति में सजा भी बन सकती है। इसका उपयोग केवल आवश्यकता और उपयोगिता के अनुसार होना चाहिए। आधुनिक यंत्रों का उजला पक्ष है तो उसका अंधेरा पक्ष भी है। डिजिटल डिटॉक्स के रूप में इनके अत्यधिक प्रयोग से बचने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने कहा कि शिक्षा के साथ-साथ विद्यार्थियों में विनय और संस्कार भी आने चाहिए। यह शिक्षा के वास्तविक उद्देश्य को पूरा करता है। उन्होंने विद्यार्थियों को नशामुक्ति के संकल्प करने और पुरुषार्थ के प्रति जागरूक होने की प्रेरणा दी। पूज्यवर के स्वागत में स्कूल के प्रिंसिपल और ट्रस्टी अश्विनभाई पटेल ने अपनी भावना व्यक्त की। तेरापंथ महिला मंडल, बड़ौदा ने गीत का संगान किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।