विनय और स्थिरता हैं ज्ञान प्राप्ति में साधक : आचार्यश्री महाश्रमण
तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्य श्री महाश्रमणजी ने लगभग 14 किमी का विहार कर देथाण प्राथमिक मिश्रशाला में पधारकर मंगल प्रेरणा प्रदान की। ज्योतिचरण ने फरमाया कि उत्तराध्ययन सूत्र में शिक्षा प्राप्ति में बाधक पांच कारण बताए गए हैं। इनमें पहला तत्व है - अहंकार। जिस प्रकार एक खंभा नहीं झुकता, उसी प्रकार अहंकारी व्यक्ति भी नहीं झुकता। हालांकि खंभा अच्छा भी होता है, जिस पर पूरा प्रासाद टिका रहता है। अलग-अलग संदर्भों में इसके भाव भिन्न हो सकते हैं। गुरुदेव श्री तुलसी ने 'शासन स्तंभ' अलंकरण प्रदान करना शुरू किया था। 'शासन स्तंभ' अलंकरण, 'शासनश्री' और 'शासन गौरव' से भी बड़ा सम्मान है। गुरुदेव श्री तुलसी ने अनेकों मुनियों को इस अलंकरण से विभूषित किया था। मैंने भी कई मुनियों को यह सम्मान प्रदान किया है।
जहाँ झुकना उचित लगे, वहाँ झुकना चाहिए; और जहाँ अनुचित लगे, वहाँ झुकना नहीं चाहिए। ज्ञान प्राप्ति में अहंकार बाधा बनता है। ज्ञानदाता के सामने झुकने से ही ज्ञान प्राप्ति संभव है। 'विनय' ज्ञान प्राप्ति का महत्वपूर्ण साधक तत्व है। दूसरा बाधक तत्व है - क्रोध। ज्ञानदाता के प्रति क्रोध नहीं होना चाहिए। अहंकार और क्रोध ज्ञान प्राप्ति में ढक्कन की तरह काम करते हैं। तीसरा बाधक तत्व है - प्रमाद। प्रमाद के कारण यदि विद्यार्थी नशे में डूब जाए तो विद्या का सम्यक अर्जन संभव नहीं हो सकता। चौथा बाधक तत्व है - रोग। यदि कोई व्यक्ति बीमार हो, तो अध्ययन, स्वाध्याय, सीखने और परिवर्तित होने जैसे कार्य भी अधूरे रह जाते हैं। पाँचवां बाधक तत्व है - आलस्य। यह मानव शरीर में रहने वाला सबसे बड़ा शत्रु है। आलस्य के शिकार विद्यार्थी के लिए शिक्षा प्राप्त करना कठिन हो जाता है। व्यक्ति को इन पाँच तत्वों से बचना चाहिए।
आचार्य श्री ने कहा कि अध्यात्म विद्या का ज्ञान अत्यंत महत्वपूर्ण है। ज्ञान प्राप्त करने के बाद भी उसका अहंकार नहीं होना चाहिए। ज्ञानदाता कोई पक्षपात नहीं करता। अहंकार और चित्त की अस्थिरता ज्ञान में बाधा उत्पन्न करती है। वहीं, विनय और स्थिरता ज्ञान प्राप्ति के लिए सहायक होते हैं। किसी भी बात का सोच-समझकर जवाब देना चाहिए। हर जगह जल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिए। ज्ञानदाता के प्रति विनय और कृतज्ञता का भाव होना चाहिए। यदि ज्ञान की गहराई में जाया जाए और विनय व स्थिरता बनाए रखी जाए, तो सफलता निश्चित है। उद्यम अच्छा हो और इन पाँच बाधक तत्वों से बचा जाए, तो अच्छा ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। पूज्यवर के स्वागत में प्राथमिक मिश्रशाला की शिक्षिका सोनल चौहान ने अपनी भावना व्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।