महावीर निर्वाण दिवस है - दीपावली
भगवान महावीर ने कार्तिक कृष्णा अमावस्या की रात्रि में निर्वाण प्राप्त किया। तब से उस उत्सव को जैन लोग दीपावली पर्व के रूप में निरंतर मनाते आ रहे हैं। जैन धर्म में तीर्थंकरों के पाँच कल्याणक माने गए हैंच्यवन, जन्म, दीक्षा, केवल ज्ञान और निर्वाण। इन पाँचों समय देवता भी उत्सव मनाते हैं। देवताओं ने रत्नों की वर्षा करके उस अमावस्या की अंधेरी रात को पूर्णिमा से ज्यादा जगमगा दिया था। पावापुरी के लोगों ने उस समय घर-घर घी के दीपक जलाए, जिससे अंधेरे से राहत पाई जाए। क्योंकि उस समय बिजली का प्रकाश नहीं था, चारों ओर अंधेरा छाया हुआ था। भगवान के अंतिम दर्शन करने लोगों का आना प्रारंभ हो गया। अंधेरे में कोई दुर्घटना न घट जाए इसलिए लोगों ने दीपक जलाकर प्रकाश किया। उस समय राजपथ सड़कों का अभाव था इसलिए प्रकाश के लिए दीपक जलाए गए। क्योंकि मैं दीक्षित हुआ उस समय भी गाँवों में अधिकतर लालटेन, मोमबत्ती का ही प्रकाश देखने में आता था। अब समय बदल गया है। वैज्ञानिक युग में शहरों में ही नहीं गाँवों में भी लालटेन, मोमबत्तियों की जगह बिजली का प्रकाश नजर आता है। इसलिए दीपावली पर्व पर अनर्थ हिंसा से बचने के लिए दीपक-मोमबत्तियों को जलाने की आवश्यकता नहीं है। दीपक जलाने से तैजसकाय, वायुकाय के जीवों की तो हिंसा होती ही है, परंतु दीपक में कई मच्छर भी गिरते हैं, जिससे त्रसकायिक जीवों की हिंसा भी हो सकती है। हम जैन हैं, हमें हिंसा से अहिंसा के पथ को, असंयम से संयम को अपनाना चाहिए तभी हम अनंत संसारी से परित संसारी बन सकते हैं। दीपावली पर्व पर तेला या उपवास बेला कर जाप, ध्यान, स्वाध्याय, पौषध आदि करके हम अपनी आत्मा का उत्थान कर सकते हैं। पटाखों का प्रचलन भी प्रदूषण और अपव्यय बढ़ाने वाला है जिससे कई बार जनहानि का प्रसंग भी देखने में आता है। हमें अपने विवेक का परिचय देते हुए अहिंसा, संयम, तप बढ़े ऐसा प्रयास करना चाहिए। जिससे भगवान का निर्वाण दिवस दीपावली पर्व पर कर्मों की निर्जरा हो सके और जीवन में उन्नति हो। इससे देव दुर्लभ मनुष्य जन्म सफल हो सकेगा।