सम्यक्त्व युक्त चारित्र है सर्वश्रेष्ठ : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

सम्यक्त्व युक्त चारित्र है सर्वश्रेष्ठ : आचार्यश्री महाश्रमण

मर्यादा पुरुषोत्तम आचार्यश्री महाश्रमणजी लीमड़ी से लगभग बारह किलोमीटर का विहार कर बलडाना में स्थित सरकारी माध्यमिक शाला में पधारे। मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए पूज्यवर ने फरमाया कि व्यक्ति के भीतर अनेक वृत्तियां होती हैं, और इन्हीं वृत्तियों से प्रवृत्तियां भी उत्पन्न होती हैं। जब मन, वचन और काय में दुष्प्रवृत्तियां प्रकट होती हैं, तो उनकी जड़ में राग-द्वेष, क्रोध, मान, माया, लोभ जैसी वृत्तियां होती हैं। वृत्ति, प्रवृत्ति और उसके आगे निवृत्ति का महत्व है। अशुभ प्रवृत्तियों से निवृत्ति का प्रयास करना चाहिए। जब मन, वचन और काय के योग मोहनीय कर्म से संयुक्त होते हैं, तो ये योग अशुभ बन जाते हैं। वहीं, जब मोहनीय कर्म से वियुक्त रहते हैं, तो ये योग शुभ बन सकते हैं। मोहनीय कर्म का उदय निरंतर चलता रहता है। आदमी स्वाध्याय करे, ध्यान में बैठ जाए, फिर भी मोहनीय कर्म का उदय चालू ही रहता है।
मोहनीय कर्म का उदय दो प्रकार का होता है—सुप्त अवस्था और जागृत अवस्था। जब यह जागृत होता है, तो योग अशुभ बन जाते हैं। कषाय जब योग के साथ मिलते हैं तो मलिनता की बात आती है। सहज रूप से मोहनीय कर्म का उदय दिन-रात चालू रहता है, लेकिन यदि यह शांत स्थिति में है, तो योग अशुभ नहीं बनते। पूज्यवर ने इसे एक उदाहरण से समझाया कि जैसे भोजन अन्न नली में जाए, तो कोई समस्या नहीं होती, परंतु यदि वह श्वास नली में चला जाए, तो परेशानी हो सकती है। इसी प्रकार कषाय यदि आश्रव के मार्ग पर जाए, तो योग अशुभ नहीं बनते, लेकिन यदि कषाय योग वाले मार्ग में आ जाए, तो योग मलिन हो सकते हैं। साधुत्व और संन्यास संसार की बहुत बड़ी उपलब्धि है। वर्तमान में सम्यक्त्व युक्त चारित्र से अधिक श्रेष्ठ कुछ नहीं। विद्यालयों में भौतिक शिक्षा के साथ-साथ त्याग, संयम, नैतिकता और अहिंसा की शिक्षा भी दी जानी चाहिए। ज्ञान और आचार दोनों जीवन का आधार हैं। इसलिए ज्ञान और आचार का समन्वय होना चाहिए। इसी प्रकार साधुत्व में श्रुत और शील दोनों का होना बहुत आवश्यक है। जीवन में कषाय पतला रहे तो सम्यक्त्व भी निर्मल रह सकता है।
चतुर्दशी के उपलक्ष में पूज्यवर ने हाजरी का वाचन कर आचार व चर्या संबंधी प्रेरणा प्रदान करवाई। उन्होंने कहा कि हम पूज्य डालगणी की प्रवासित भूमि में विचरण कर रहे हैं। कच्छी पूज के रूप में उनकी ख्याति थी। उनका अनुशासन तेजस्वी था। गुरुदेव तुलसी का अनुशासन भी तेजस्वी था। हमें निर्मल साधुपणा बनाए रखना चाहिए। विद्यालय प्राचार्य बिपिन भाई ने स्वागत करते हुए अपनी भावना प्रकट की। अणुव्रत विश्व भारती एवं तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के पदाधिकारियों द्वारा पृथक्-पृथक रूप में सन् 2025 का कैलेंडर पूज्यवर को समर्पित किया गया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।