भोग पर रहे योग का अंकुश :आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

भोग पर रहे योग का अंकुश :आचार्यश्री महाश्रमण

युगप्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी मीठापुर से विहार कर एक्युरेट इंफ्रा इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड फैक्ट्री, पंछिना गांव में पधारे। अमृत देशना प्रदान करते हुए पूज्यवर ने फरमाया कि मनुष्य का जीवन अनेक तत्वों का समवाय है। इसमें चेतन और अचेतन दोनों जुड़े हुए हैं। शरीर अपने आप में पुद्गल है, लेकिन उसमें चैतन्य भी विद्यमान है। चैतन्ययुक्त शरीर होने के कारण भोजन, पानी, हवा, मकान और चिकित्सा जैसी कई आवश्यकताएं होती हैं, जिनकी पूर्ति अपेक्षित है। हवा, पानी और भोजन तीन ऐसी चीजें हैं जो जीवन के लिए अत्यधिक आवश्यक हैं। जल, अन्न और सुभाषित को तीन रत्नों के रूप में बताया गया है। आवश्यकता के समय दो गिलास पानी का भी बड़ा महत्व होता है।
पृथ्वी पर सहजता के साथ उपलब्ध इन रत्नों का दुरुपयोग करने से बचने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने दो कथानकों के माध्यम से प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी को कभी भी अनावश्यक रूप से जल का अपव्यय नहीं करना चाहिए। इसी प्रकार अन्न के अपव्यय से बचने का प्रयास करना चाहिए। शादी, विवाह आदि-आदि विशेष अवसरों पर अति उत्साह के साथ बनाने वाले और खाने वाले दोनों को अन्न की उपयोगिता को समझने का प्रयास करना चाहिए और अन्न, जल की अनावश्यक बर्बादी से बचने का प्रयास करना चाहिए। बनाने वाले यदि सौ से अधिक आइटम बना भी दें तो खाने वाले को इसका ध्यान रखना चाहिए। मनुष्य को घमंड नहीं करना चाहिए। किसी बात का गौरव हो सकता है, लेकिन पदार्थों का भोग सीमित होना चाहिए। अत्यधिक भोग से रोग उत्पन्न हो सकता है। इसलिए मनुष्य को योग और धर्म की साधना भी करनी चाहिए। भोग पर योग का अंकुश आवश्यक है।
गृहस्थ जीवन में अर्थ और काम पर धर्म का अंकुश रहेगा तो जीवन की गाड़ी सही दिशा में चल सकती है। असंयम से नुकसान हो सकता है। धर्म का अंकुश इस जीवन और आगामी जीवन, दोनों के लिए कल्याणकारी है। धन-सम्पत्ति साथ नहीं जाती, लेकिन धर्म का प्रभाव साथ जाता है। धर्म की साधना जीवन में कल्याणकारी बन सकती है। राजूभाई ने पूज्यवर के स्वागत में अपनी भावनाएं व्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया। पूज्य प्रवर ने आज तीन चरणों में 20 किमी का विहार किया। सांयकालीन विहार कर पूज्य प्रवर टोकरला पधारे।