आत्म युद्ध से पाएं मोहनीय कर्म पर विजय : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

आत्म युद्ध से पाएं मोहनीय कर्म पर विजय : आचार्यश्री महाश्रमण

भैक्षवगण सरताज आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ अरणेज के मेरू मानतुंग भव्य धाम में पधारे। तेरापंथ के अधिशास्ता ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि शास्त्रों में अनेक प्रकार की बातें कही गई हैं। आध्यात्मिक ग्रंथों में हमें आत्मा के मार्गदर्शन का अवसर मिलता है। संसार में युद्ध की चर्चा सामान्य है, परंतु धर्मशास्त्र में आत्म-युद्ध करने का निर्देश दिया गया है और बाह्य युद्ध से निवृत्ति का संदेश दिया गया है। पूज्यवर ने कहा - बाह्य युद्ध से हमारा कोई प्रयोजन नहीं। भीतर का युद्ध करें। तीर्थंकरों ने आत्म साधना के द्वारा ही विजय प्राप्त की है। भगवान ऋषभ ने सांसारिक जीवन जीते हुए समाज को दिशा दी। एक राजनेता के रूप में कार्य करते हुए, वे धर्म नेता-तीर्थंकर बन गए। तीर्थंकरों की देशना हमें मार्गदर्शन और संदेश प्रदान करती है।
तीर्थंकर तो वर्तमान में नहीं हैं, लेकिन आगम वांग्मय और ग्रंथों के माध्यम से उनकी वाणी उपलब्ध है। उत्तराध्ययन सूत्र में कहा गया है कि अपने से युद्ध करो। आत्मा पर कर्मों का कब्जा है, और इन कर्मों से युद्ध करना आवश्यक है। विशेष रूप से मोहनीय कर्म, जो आठ कर्मों में सेनापति है, से संघर्ष करना चाहिए। मोहनीय कर्म से लड़ने के लिए आध्यात्मिक साधनों की आवश्यकता है। क्रोध, मान, माया और लोभ मोहनीय कर्म के अंग हैं। इनको जीतने के लिए चार शस्त्र बताए गए हैं:
1. उपशम से गुस्से को शांत करें।
2. मार्दव से अहंकार को समाप्त करें।
3. आर्जव से छल-कपट को त्यागें।
4. संतोष से लोभ को जीतें।
पूज्यवर ने समझाया कि इन चार शस्त्रों का उपयोग कर मोहनीय कर्म पर विजय प्राप्त की जा सकती है। आत्म-युद्ध का यह प्रयास इस जन्म में पूरी सफलता न भी लाए, तो अगले जन्म में इसका परिणाम मिल सकता है। वर्तमान मनुष्य जन्म में धर्म की साधना करें। संवर, निर्जरा, जप, तप, त्याग और प्रत्याख्यान मोहनीय कर्म को हल्का करने के प्रमुख साधन हैं। जब तक सफलता न मिले, आत्म-युद्ध जारी रखना चाहिए। पूज्यवर के स्वागत में खेड़ ब्रह्मा से परेशभाई पटेल ने अपनी भावना व्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।