अनुशासन, सेवा और साधना की दृष्टि से धर्मसंघ होता रहे वर्धमान : आचार्य श्री महाश्रमण
राजकोट में आयोजित त्रि-दिवसीय वर्धमान महोत्सव का अंतिम दिन। भिक्षु शासन के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने सम्पूर्ण चतुर्विध धर्म संघ को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि वर्धमान होना अभिष्ट है। जब तक व्यक्ति विकास की पराकाष्ठा तक न पहुंचे, तब तक उसे वर्धमान रहना चाहिए। वर्धमान रहने के लिए परिश्रमवान रहना भी अपेक्षित होता है। आलस्य को महारिपु कहा गया है, जो व्यक्ति के शरीर में रहकर उसका महाशत्रु बन जाता है। उद्यम के समान कोई भाई नहीं है। जो पुरूषार्थ-परिश्रम की शरण में रहता है, उसे कभी अवसन्न नहीं होना पड़ता। भाग्य के प्रति अधिक चिंता करना उचित नहीं है। पुरूषार्थ और परिश्रम का चिन्तन करें। भाग्य ज्ञातव्य हो सकता है, लेकिन हमें अपने कर्तव्यों और पुरूषार्थ में लगे रहना चाहिए। अच्छे पुरूषार्थ का फल अवश्य मिलेगा, चाहे वह आज मिले, कल या परसों।
आचार्यश्री ने कहा कि हमारा धर्म संघ तेरापंथ धर्म संघ है। इसके आद्य प्रवर्तक आचार्य भिक्षु के जीवन से हमें पुरूषार्थ और परिश्रम की शिक्षा मिलती है। सफलता के पौधे को विकसित करने के लिए परिश्रम रूपी जल का सिंचन आवश्यक है। गुरुदेव श्री तुलसी और आचार्य श्री महाप्रज्ञजी के जीवन में परिश्रम और पुरूषार्थ के असाधारण उदाहरण देखने को मिलते हैं। गुरुदेव ने लंबी यात्राएं कीं और आचार्य श्री महाप्रज्ञजी ने अहिंसा यात्रा के साथ आगम साहित्य के संपादन और बौद्धिक श्रम से भी योगदान दिया। हम सभी में वर्धमानता के लिए पुरूषार्थ की लौ जलती रहनी चाहिए। आगम साहित्य का कार्य चल रहा है, संभवतः वह शीघ्र ही सम्पन्न हो सकेगा। अनेक साधु-साध्वियां उस कार्य से संपृष्ट हैं, निष्ठा से प्रयास करते रहें। आचार्य भिक्षु और श्रीमज्जयाचार्य के साहित्य का अनुवाद भी किया जा रहा है। आचार्यश्री ने कहा कि सेवा में भी पुरूषार्थ का योगदान है। बौद्धिकता के साथ सेवा करने का अपना महत्व है। गृहस्थ लोग भी यात्रा में भाग लेकर तपस्या और सेवा का योगदान देते हैं। व्यवस्था में श्रम करने वाले लोग वर्धमानता के लिए प्रेरणा देते हैं।
परिश्रम के लिए शारीरिक हित भी आवश्यक है। तीन प्रकार के हित हैं:
1. आत्म हित : संयम और तप से आत्मा को उन्नत करना।
2. संघ हित : धर्म संघ के विकास के लिए कार्य करना।
3. शरीर हित : शरीर को स्वस्थ और संयमित रखना।
आचार्यश्री ने संघ हित के लिए मुनिश्री कालूजी और मुनिश्री मगनलालजी के योगदान का उल्लेख किया। सेवा में उपेक्षा करना विकृति है, साझ की सेवा करना प्रवृत्ति है और दूसरों की सेवा करना संस्कृति है। सेवा हमारा धर्म है। वर्धमानता के लिए हम में सेवा की भावना बनी रहे। वर्धमान महोत्सव की संपन्नता पर पूज्य प्रवर ने फरमाया कि हमारा धर्म संघ अनुशासन की दृष्टि से, साधना और सेवा की दृष्टि से वर्धमान होता रहे। संघ सेवा के साथ, जैन शासन और मानव जाति की भी सेवा करते रहे। सब जीवों के प्रति हमारी मैत्री रहे। विशिष्ट चारित्रात्माएं भी सेवा का कार्य व विकास के लिए सेवा कराते रहें। बाह्य व्यवस्था में भी कई संत लगे हैं। हमारे सभी कार्य सुरूपेण चलते रहे। बहिर्विहार में भी चारित्रात्माएं, समणियां भी यथावसर, यथायोग्य सेवा कार्य करते रहें। सभी संस्थाएं भी आध्यात्मिक कार्य करती रहें। सभी में वर्धमानता बनी रहे।
पूज्य श्री ने आगे कहा कि हमें रहने के लिए राजकोट में आत्मीय युनिवर्सिटी का स्थान मिला। इनके संतों से भी काफी वार्तालाप हुआ। ये भी खूब आध्यात्मिक-धार्मिक विकास करते हुए अच्छी सेवा करते रहें। त्रि-दिवसीय वर्धमान महोत्सव का समापन दिवस पर साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने कहा कि 57 वर्ष पूर्व गुरूदेव श्री तुलसी ने राजकोट में दीक्षा महोत्सव का आयोजन किया था, पूज्यवर ने वर्धमान महोत्सव का आयोजन करवाया है। तेरापंथ धर्म संघ उत्तरोत्तर वर्धमानता की ओर अग्रसर है। तेज संख्या से नहीं तप की शक्ति से बढ़ता है। वर्धमानता का हेतु है कि वर्तमान आचार्य अपने पूर्ववर्ती आचार्यों को बहुमान देते हैं, उनके कार्य को आगे बढ़ाते हैं। आचार्य भिक्षु ने जो मर्यादाएं हमारे धर्म संघ हित के लिए स्थापित की, उनका हमारे उत्तरवर्ती आचार्यों ने अनुगमन किया है, कर रहें हैं। तेरापंथ में अनुशासन की एक ऐसी सुवास है जो दूसरे भी ग्रहण करना चाहते हैं। हमारे धर्म संघ में आचार्य स्वयं अनुशासित हैं और दूसरों को भी अनुशासित रखने का प्रयास करते हैं। अनुशासन के दो रूप हैं - विधि और निषेध। अनुशासन में रहने वाला विकास कर सकता है। कार्यक्रम के शुभारम्भ में मुनिवृंद ने गीत का संगान किया। राजकोट की विधायक दर्शना शाह ने श्री चरणों में अपनी भावना अभिव्यक्त की। स्वामी त्यागवल्लभ जी ने अपने गुरु प्रेमरत्न महाराज का संदेश वाचन कर अपनी भावना व्यक्त की। राजकोट ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी प्रस्तुति दी। राजकोट की मेयर नयनाबेन पढरिया ने आचार्यश्री के दर्शन कर मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। सादर उपाश्रय के अध्यक्ष किशोर भाई
डोसी, रजनी मालू, कृतिका जैन गोंडल, मीनाक्षी चौपड़ा व योगेन्द्र मालू ने भावाभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।