संयम और तप के द्वारा अनुशासन कर बनें आत्म-अनुशासी : आचार्य श्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

संयम और तप के द्वारा अनुशासन कर बनें आत्म-अनुशासी : आचार्य श्री महाश्रमण

भैक्षव शासन सरताज ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि आत्मानुशासन बहुत महत्वपूर्ण तत्व है। अपने आप पर अनुशासन करना चाहिए। दुनिया में दूसरों का अनुशासन भी चलता है। कोई उच्छृंखलता करता है, तो उस पर कठोर अनुशासन किया जाता है, करना पड़ता है। अनुशासन करना बुरा नहीं है, लेकिन उच्छृंखलता करना अवांछनीय हो जाता है। अनुशासन व्यवस्था हर जगह अपेक्षित होती है। स्वर्ग में देवता रहते हैं, वहां भी अनुशासन होता है। इंद्र की व्यवस्था होती है। कुल 64 इंद्र बताए गए हैं, लेकिन नौ ग्रैवेयक और पांच अनुत्तर विमानों में सभी अहमिन्द्र होते हैं, वहां अनुशासन की अपेक्षा नहीं होती। भवनपति, व्यंतर, ज्योतिष्क और बारह वैमानिक देवों में यह व्यवस्था रहती है।
सामान्यतः हर जगह मुखिया की व्यवस्था होती है। किसी के अनुशासन में समुदाय चलता है। यदि अनुशासन न हो, तो अव्यवस्था और अराजकता उत्पन्न हो सकती है। लोकतंत्र में न्यायपालिका होती है। यदि कहीं कोई उच्छृंखलता की बात हो, तो वह दंड दे सकती है। भले ही हमारा देश स्वतंत्र है, लेकिन देश को चलाने के लिए और कर्तव्यनिष्ठा के लिए यह नागरिकों से भी अपेक्षित होता है। यदि कहीं अनुशासन नहीं है, तो यह लोकतंत्र को मृत्यु और विनाश की ओर ले जा सकता है। लोकतंत्र में जनता पर जनता का शासन चलता है, लेकिन अनुशासन सामान्यतः सर्वत्र अपेक्षित होता है।
शास्त्रकार ने बताया है कि तुम स्वयं पर अनुशासन कर लो। संयम और तप के द्वारा अपना अनुशासन कर स्व-अनुशासी और आत्म-अनुशासी बन जाओ। फिर दूसरों को अनुशासन करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। यदि तुम स्वयं अनुशासन नहीं रखोगे, तो दूसरों का कठोर अनुशासन आ सकता है। अणुव्रत में भी आत्मानुशासन है। अपने आप से अपना अनुशासन रखना ही अणुव्रत की परिभाषा है। हम वाणी, मन, शरीर और इंद्रियों पर संयम रखें। बुरे कार्य न करें, अच्छे कार्य करें। प्रेक्षाध्यान के द्वारा आत्मा से आत्मा को देखा जा सकता है।
आचार्यश्री भिक्षु ने भी अनुशासन का महत्व बताया था। समुदाय अनुशासित हो, तो मुखिया को ज्यादा कुछ करने की आवश्यकता नहीं होती। अनुशासन करने की भी योग्यता होनी चाहिए। यही सर्वश्रेष्ठ है कि मैं अपनी आत्मा का दमन कर आत्म-अनुशासी बनूं। पूज्यवर के स्वागत में डायमंड पार्टी प्लॉट के मालिक जयंति भाई ने अपनी भावनाएं व्यक्त कीं। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।