डिजिटल उपकरणों की मर्यादा

संपादकीय

डिजिटल उपकरणों की मर्यादा

राजस्थान पत्रिका के अंतिम पृष्ठ के अंतिम कॉलम की अंतिम न्यूज ने सहज ही ध्यान आकृषित किया। लिखा था कि बोहरा समाज के सैयदना साहब की अपील पर बच्चे फोन से दूरी बनाने लगे हैं, अखबार और किताबों को पढ़ने लगे हैं, शारीरिक स्वास्थ्य की गतिविधियों में रुचि लेने लगे हैं।
वर्तमान में सब कुछ ऑनलाइन मिल रहा है। खाद्य सामग्री हो या पाठ्य सामग्री, शरीर से लेकर घर तक को सजाने के सामान हो, डॉक्टर हो या घरों में काम करने वाली आया, किताब हो या अखबार, जिस किसी का नाम लो सब ऑनलाइन मिल जाता है। जहां एक और पूरी दुनिया डिजिटल हो रही है, अपने और अपनों के लिए वक्त खो रही है तो दूसरी ओर विभिन्न धर्म गुरु अपने-अपने अनुयायियों को डिजिटल डिटॉक्स की प्रेरणा भी दे रहे हैं। परम पावन आचार्य श्री महाश्रमण जी भी अपने प्रवचन के माध्यम से भोजन के समय, वाहन चलाते समय, रात के समय मोबाइल आदि डिजिटल उपकरणों के अति आवश्यक उपयोग के अलावा संयम की प्रेरणा दे रहे हैं।
आज हर संस्था अपनी डिजिटल प्रेसेंस चाहती है, होनी भी चाहिए। इससे कम समय में जनता को स्पष्ट, आवश्यक और शीघ्र जानकारी प्राप्त होने की संभावना रहती है। परंतु सामाजिक, राजनीतिक, व्यापारिक, पारिवारिक हर किसी क्षेत्र से जुड़ा व्यक्ति मोबाइल से बहुत अधिक चिपका हुआ है। हम आवश्यक जानकारी के लिए तो डिजिटल मार्ग को चुनें पर हर कार्य के लिए डिजिटल डिवाइसेज पर डिपेंड होना आने वाली पीढ़ी में विसंगतियां भी ला सकता है। विगत कुछ वर्षों से चारित्रात्माएं अपने चातुर्मासिक क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की तपस्याओं के साथ मोबाइल आदि के संयम की तपस्या भी करवा रहे हैं, जो एक कठिन और सराहनीय प्रयास है।
हमारे धर्म संघ की भी हर गतिविधि तकनीक से जुड़ती जा रही है। चाहे सामायिक हो, जाप हो, त्याग हो, धर्मसंघ के समाचार हो या स्वाध्याय हो, सब कुछ ऑनलाइन हो रहे हैं। अनेकानेक व्हाट्सएप ग्रुप्स में एक ही मैसेज का आना और एक ही ग्रुप में अनेकों मैसेज का आना न केवल समय और ऊर्जा की बर्बादी कर रहा है, अपितु आवश्यक और विशेष संदेशों को उनकी ही भीड़ में कहीं छिपा देता है। आवश्यकता है कि हमारे कार्यों की समीक्षा भी हो कि कौनसा कार्य ऑनलाइन होना चाहिए, कौनसा किसी के सान्निध्य या निर्देशन में, कौनसा एकांत या अपनी आत्मा के सान्निध्य में।
आज का व्यक्ति व्यापारिक, सरकारी और अन्य बहुत सारे कार्यों के साथ 'धर्म' भी ऑनलाइन कर रहा है। यदि यह ऑनलाइन धर्म हमें आत्मा से जोड़ने में सहयोगी बनता हो तब तो ठीक है अन्यथा कम से कम धर्म और धार्मिक कार्यों को हम आत्मा की लाइन पर करने का प्रयास करें। डिजिटल डिटॉक्स को न केवल व्यापकता से देखें अपितु उसे अपनाएं भी। इससे आपका और आपके परिवार का मानसिक, वाचिक और शारीरिक सभी व्यवहारों में सुधार हो सकेगा। पारिवारिक सदस्यों में प्रेम, सौहार्द और आत्मीयता बढ़ पाएगी, एक-दूसरे को समझ पाएंगे, पुनः पारिवारिक मूल्यों की महत्ता विकास कर पाएगी। आंखों, दिमाग आदि के रोग भी कम होंगे, और उतना ही खर्च भी कम हो पाएगा। कुल मिलाकर दौड़ भाग वाली इस जिंदगी में कुछ कदम धीमे भी चल लेंगे तो नुकसान नहीं होगा। यह जन्म तो सुधरेगा ही, संयम होगा तो आगे की गति भी सुधरेगी।
श्रावक-श्राविका और साधु-साध्वी सभी डिजिटल डिटॉक्स के प्रति सजग रहें और एक दूसरे को सजग करते रहें। केवल मर्यादा महोत्सव के अवसर पर ही नहीं, हम हमेशा मर्यादाओं गुणगान करते रहें और उन्हें आत्मसात करने का भी प्रयास करें।