मन को निर्मल बनाए रखने का प्रयास करें : आचार्यश्री महाश्रमण
भीलवाड़ा, 21 अक्टूबर, 2021
महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि हम मनुष्य हैं। मनुष्यों में भी हम संज्ञी मनुष्य हैं। सिद्धांत है कि मनुष्य दो प्रकार के होते हैंअसंज्ञी मनुष्य और संज्ञी मनुष्य। समुर्च्छिम मनुष्य या गर्भज मनुष्य। जिन मनुष्यों के मन नहीं होता वे असंज्ञी मनुष्य होते हैं। जिनके मन होता है, वे संज्ञी या गर्भज मनुष्य होते हैं। मन एक ऐसा तत्त्व है, वो अपने आपमें एक लब्धि है, शक्ति है। मनन से ऐसा निष्कर्ष सामने आ रहा है कि बहुत बढ़िया काम मन वाला प्राणी ही कर सकता है। बहुत घटिया काम भी मन वाला प्राणी ही कर सकता है। जिन प्राणियों के मन नहीं होता वे बड़ा पाप भी नहीं कर सकते और बड़ा धर्म या पुण्य का बंध भी नहीं कर सकते। इसलिए मन एक बहुत महत्त्वपूर्ण शक्ति होती है। विचारणीय बात है कि आदमी कैसे मन का बढ़िया उपयोग करे। मन ही मन चिंतन करके प्राणी सप्तम नरक योग्य आयुष्य का बंध कर लेता है। मन ही मन चिंतन करते-करते एक प्राणी देवगति में जाने योग्य आयुष्य का बंध कर लेता है। मन को सुमन या दुर्मन भी बनाया जा सकता है।नारकीय जीवों में भी मन होता है। तिर्यन्च के भी दो प्रकार हैंसंज्ञी और असंज्ञी तिर्यन्च। मनुष्यों और तिर्यन्चों में ये दो प्रकार हैं, परंतु नारकीय जीव के दो भेद नहीं होते। देवगति में भी सिर्फ संज्ञी ही होते हैं। नारकीय और देव संज्ञी तो हैं, पर संज्ञी होने पर भी नारकीय जीव इतना पुण्य बंध नहीं कर सकते कि वे देवगति में चले जाएँ। देव इतना पाप नहीं कर सकते कि वे सीधे नरक में चले जाएँ। तिर्यन्च और मनुष्य ऐसे प्राणी हैं, जो अपने मन के द्वारा चारों गति में जा सकते हैं।
मन एक ऐसा तत्त्व है, जो हमारे उत्थान और पतन का एक कारण बनता है। हम अपने मन को उत्थान का कारण बनाए रखें न कि पतन का। जब-जब हमारे मन में शुभ परिणाम रहते हैं, तो ये परिणाम उत्थान की ओर ले जाने वाले बन जाते हैं। जब-जब हमारे मन में अशुभ परिणाम रहते हैं, ये परिणाम हमें पतन की ओर ले जाने वाले बन सकते हैं।
चार गतियों के आयुष्य बंध के जो कारण हैं, हम उनमें देख लें। नरक और तिर्यन्च आयुष्य के जो चार-चार कारण हैं, वे अशुभ परिणाम वाले कारण हैं। मनुष्य और देवगति आयुष्य बंध के जो चार-चार कारण हैं, वे शुभ परिणामों वाले कारण हैं। हिंसा और परिग्रह की तीव्रता है, वो नरक गति में ले जाने वाले हैं। छल-कपट के परिणाम तिर्यन्च गति के कारण हैं। जहाँ विनम्रता, अनिर्ष्या है, वे मनुष्य गति के आयुष्य के कारण हैं। जहाँ त्याग-तपस्या के कारण हैं, वे देवगति के कारण बन जाते हैं। हमारे में शुभ परिणाम रहे, ऐसा हमारा प्रयास रहे। कर्मों के उदय से मन में खराब परिणाम आ सकते हैं, हम उनसे मुकाबला करें। अच्छे मंत्र का पाठ करें तथा मन ही मन ये घोषणा कर दें कि ये विचार मेरे नहीं हैं। मैं खराब विचारों की निंदा करता हूँ। तो दुर्मन को परास्त करने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। साधना करते-करते आदमी मन से पार होने का भी अभ्यास कर ले। अपने मन में राग-द्वेष युक्त दूषित विचार न आए। अध्यवसाय, लेश्या, ध्यान, परिणाम ये गहरे विचार मन का परिवार है। सारे शुभ विचार कल्याणकारी हैं। मन हमारा निर्मल-शुभ रहे। शुभ है, तो शांति का अनुभव हो सकेगा। अब चातुर्मास का अंतिम महीना है। श्रावक-श्राविकाएँ इसका अधिक से अधिक लाभ उठा सके, ऐसा प्रयास करें। हम सभी मन को निर्मल बनाए रखने का प्रयास करें। मन निर्मल हो तो कल्याण हो सकता है, मन और भावों को शुद्ध बनाने से ही पाप दूर हो सकते हैं। आत्मा की नदी में नहाने से हमारी चेतना शुद्ध हो सकेगी।
मन रूपी जल में मोहनीय कर्म रूपी कीचड़ पड़ जाता है, तो मन गंदा बन जाता है। हम मन की निर्मलता को साधने का, प्राप्त करने का प्रयास करते रहें, भाव शुद्ध रहें तो हम उत्थान की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।
पूज्यप्रवर ने आज प्रात: भीलवाड़ा शहर भ्रमण हेतु चतुर्मास स्थान से विहार किया। मार्ग में स्थानकवासी वर्धमान संघ की साध्वियों ने दर्शन किए। पूज्यप्रवर नागौरी गार्डन तेरापंथ भवन पधारे। थाना कोतवाली में पूज्यप्रवर का पदार्पण हुआ। अणुव्रत साधना स्कूल पधारे। वहाँ पर अमृत प्रेरणा प्रदान करवाई। मुनि दिनेश कुमार जी ने बताया कि हम मूल को छोड़कर नश्वर हैं, उसके लिए समय लगता है, तो व्यक्ति अपने साथ में न्याय नहीं करता। हमें आत्मा के लिए समय निकालना चाहिए।