जो मस्तक झुकाते, वो ज्ञान प्राप्त कर मुस्कराते

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जो मस्तक झुकाते, वो ज्ञान प्राप्त कर मुस्कराते

मदुरै
मुनि अर्हत कुमार जी के सान्‍निध्य में बचपन में कैसे करें जीवन का विकास कार्यशाला का आयोजन तेरापंथ भवन में किया गया। मुनि अर्हत कुमार जी ने कहा कि व्यक्‍ति की सही पहचान उसके रंग-रूप या जाति से नहीं वरन उसके जीवनगत संस्कार से होती है। बचपन के संस्कार पचपन तक रहते हैं। यह सुखी जीवन की नींव है। संस्कारों के बिना कोई भी व्यक्‍ति पूर्ण नहीं है।
मुनिश्री ने आगे कहा कि सबसे कठिन कार्य होता है अपने आपको बदलना, जब तक अपने स्वभाव को, अपनी आदत को नहीं बदलेंगे तो संस्कारों को अर्जित नहीं कर पाएँगे। संस्कारों को अर्जित करने के लिए अपना व्यवहार प्रभावशाली रहे। हमें दूसरों के दिलों में स्थान जमाना चाहिए। माता-पिता स्वयं अच्छे संस्कारों में ढलें, फिर भावी पीढ़ी को अच्छे संस्कारों में ढालने का प्रयास करें। मुनिश्री की प्रेरणा से सभी ने दिवाली के अवसर पर एक साल के पटाखे नहीं जलाने के संकल्प लिए। मुनि भरत कुमार जी ने कहा कि शिष्ट आचार और व्यवहार से बनता शिष्टाचार, बड़ों का आदर-सत्कार मर्यादित जीने का आधार। बाल मुनि जयदीप कुमार जी ने गीतिका का संगान किया। कार्यक्रम में तिरुचि से ज्योति सुराणा, तेयुप अध्यक्ष संदीप बोकाड़िया, तेयुप मंत्री राजकुमार नाहटा, महिला मंडल अध्यक्ष नयना पारख आदि ने विचार व्यक्‍त किए। कार्यक्रम के अंत में जैन विद्या कार्यशाला ‘तीन बातें ज्ञान की’ के प्रमाण पत्र वितरित किए गए।