
गुरुवाणी/ केन्द्र
समस्त कच्छ जैन समाज ने युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमणजी को "सवाया कच्छी पूज" अलंकरण से किया विभूषित
दो दिवसीय प्रवास पर रापर पधारे श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्म संघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी का स्वागत समारोह श्री वर्धमान जैन श्रावक संघ आराधना भवन परिसर स्थित वर्धमान समवसरण में आयोजित किया गया। युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण के स्वागत समारोह में पूर्व विधायक पंकजभाई मेहता ने अपने विचार रखते हुए कहा - ''भुज मर्यादा महोत्सव के अवसर पर कच्छी पूज समवसरण में आचार्य प्रवर ने पूज्य डालगणी के कच्छ प्रवास की जानकारी दी थी। कच्छ में अमूर्तिपूजक परंपरा के जितने भी जैन संप्रदाय हैं, उनके आचार्य भी कच्छ के ही हुए हैं। आप तो राजस्थान से हैं फिर भी दूसरी बार कच्छ का दौरा कर आपने हम पर बड़ी कृपा की है। कच्छ की 10 में 7 तहसील और 6 में से 5 विधानसभा क्षेत्र का आपने स्पर्श किया। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी कहते हैं मुझे बार-बार कच्छ में आने का मन होता है। हम उनको 'सवाया कच्छी' के रूप में पुकारते हैं। हम कच्छवासी सौभाग्यशाली हैं आपका यहाँ दो बार पधारना हुआ। संपूर्ण कच्छ क्षेत्र को आचार्यश्री का आशीर्वाद प्राप्त है, आचार्य श्री ने सवाया काम किया है, इसलिए आज से हम कच्छ के पूरे जैन समाज की ओर से आपको 'सवाया कच्छी पूज' के रूप में अलंकृत करने की घोषणा करते हैं।'' 'सवाया कच्छी पूज' अलंकरण के संदर्भ में पूर्व विधायक पंकजभाई मेहता, आराधना भवन के ट्रस्टी वाडीलाल सावला (सुवई), श्री वर्धमान जैन श्रावकसंघ रापर के अध्यक्ष डॉ. रमेश डोशी, सइ जैन संघ के अध्यक्ष नवीनभाई वोरा, त्रम्बो जैन संघ के शांतिलालभाई शाह, श्री कच्छ वागड़ बे चौबीसी स्थानकवासी जैन समाज के अध्यक्ष कीर्तिभाई संघवी, जैन जागृति केंद्र रापर के अध्यक्ष विनोदभाई डोशी, जैन सोशल ग्रुप रापर के अध्यक्ष अशोकभाई कुबडिया, महिला मंडल की अध्यक्ष सुषमा बहन मोरबिया, छ: कोटी संघ के अध्यक्ष कीर्तिभाई मोरबिया, आठ कोटि संघ के अध्यक्ष नवीन वोरा, तेरापंथ संघ रापर के अध्यक्ष रमणीकभाई खंडोर, डॉ. मठ साहब बेला के लक्ष्मणसिंह वाघेला, भाजपा नेता केशुभाई वाघेला, एकता नगर सम्मान संघ के अध्यक्ष बलवंतभाई ठक्कर आदि उपस्थित थे। समस्त जैन समाज द्वारा अलंकरण का बड़े हर्ष के साथ स्वागत किया गया।
चतुर्दशी होने के कारण शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी के पावन सान्निध्य में आयोजित मंगल प्रवचन में गुरुकुलवासी साधु-साध्वियों की विशेष उपस्थिति रही। साथ ही रापर जैन समाज के अन्य गणमान्य लोग भी उपस्थित थे। आचार्यप्रवर ने अपनी अमृत देशना में पवित्र उपदेश देते हुए कहा कि जीवन में शरीर, वाणी और मन तीन क्रियाशील साधन हैं। जीव के पास तीन कर्मचारी हैं। शरीर के माध्यम से व्यक्ति चलता है, घूमता है, खड़ा होता है, बैठता है, खाता-पीता है और यात्रा करता है। मनुष्य वाणी से बोलता है और मन से चिंतन, कल्पना, स्मरण, विचार और समीक्षा करता है। मन एक ऐसा तत्व है जिसे कुटिल घोड़ा भी कहा गया है। वह एक कुलीन घोड़ा भी बन सकता है। कहा भी जाता है- 'मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।'
जिनमें हिम्मत होती है, वे थोड़ी कठिनाई और मुश्किल में भी हिम्मत के साथ आगे बढ़ते हैं। यदि जीवन में मन की स्थिति अच्छी हो तो जीवन अधिक आनंददायक हो सकता है। अच्छी मनःस्थिति के लिए सबसे पहले मन में प्रसन्नता और शांति होनी चाहिए, दूसरा मन में शक्ति और साहस होना चाहिए और तीसरी बात जब हम सोचें तो केवल अच्छे विचार ही सोचें। अगर ये तीनों चीजें मन से जुड़ जाएं तो मन खुश रह सकता है। मनुष्य के मन में प्रसन्नता होनी चाहिए। यदि मन खुश है तो व्यक्ति अच्छे काम कर सकता है और कड़ी मेहनत कर सकता है। यदि मन उदास और अप्रसन्न है तो वह आर्त्त ध्यान की ओर जा सकता है। जीवन को अनुकूल और प्रतिकूल दोनों ही परिस्थितियों में समता के मार्ग पर बने रहने का प्रयास करना चाहिए।
जीवन में कठिनाइयाँ आना स्वाभाविक है – कभी व्यावसायिक कठिनाइयाँ, कभी सामाजिक कठिनाइयाँ, तो कभी पारिवारिक कठिनाइयाँ। कभी-कभी अपमान, विरोध सहना पड़ सकता है तो कभी-कभी धमकियाँ भी मिल सकती हैं। हालाँकि, अगर किसी व्यक्ति में मन की शक्ति है, मनोबल ऊंचा है तो वह समस्याओं का सामना आसानी से कर सकता है। आचार्यश्री ने उदाहरण देते हुए कहा - विरोध होने पर भी व्यक्ति को शांति और समता बनाए रखनी चाहिए। मन में शांति, अच्छे विचार और मन की शक्ति हो तो मन का घोड़ा श्रेष्ठ घोड़ा बन सकता है। पूज्यप्रवर ने उपस्थित चारित्रात्माओं को मुमुक्षु तैयार करने की प्रेरणा प्रदान की। चतुर्दशी के अवसर पर पूज्यवर ने हाजरी वाचन कराते हुए प्रेरणाएं प्रदान करवायी। आचार्य प्रवर की अनुज्ञा से साध्वी देवार्यप्रभाजी एवं साध्वी धन्यप्रभाजी ने लेखपत्र का वाचन किया। आचार्य श्री ने उन्हें दो- दो कल्याणक बक्सीस दिराए। उपस्थित साधु-साध्वियों ने अपने स्थान पर खड़े होकर लेख पत्र का समुच्चारण किया। आचार्यवर के मंगल प्रवचन के पश्चात साध्वीवर्या श्री संबुद्धयशाजी ने रापरवासियों को संबोधित करते हुए कहा कि कि दुनिया में अनेक प्रकार से व्यक्ति दुःखी हो सकता है। दुनिया का यह सत्य है कि दुःख है, दुःख का हेतु भी है। संसार दुःख बहुल है। यहां कभी संयोग का, तो कभी वियोग का दुःख होता है। अनेक कारण से व्यक्ति संतृप्त बन जाता है। संसार में जन्म, मरण, बुढ़ापा और रोगों का दुःख है। कामनाओं से दुःख हो सकता है। जीवन में संयम रुपी ब्रेक हो। इच्छाओं का सीमाकरण करें। अनन्त के त्याग से अनन्त की प्राप्ति हो सकती है।
स्वागत समारोह में पंकजभाई मेहता, छ कोटि संघ के अध्यक्ष कीर्तिभाई मोरबिया, आठ कोटि संघ के अध्यक्ष नवीनभाई वोरा, वागड़ बे चौबीसी संघ के अध्यक्ष अशोकभाई, राजा भाई, भचाऊ पूर्व प्रमुख विरेन्द्र सिंह, बाबु भाई शाह, ‘बेटी तेरापंथ की' से छाया विपुल बाबरिया, बालिका खुशी शाह, रमेशभाई डोशी और कच्छ-भुज के अध्यक्ष वाड़ीभाई मेहता आदि व्यक्तियों ने अपनी भावनाएं व्यक्त कीं। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।